2024 के चुनावों का खेल शुरू हो चुका है
लेखक – नरेंद्र नाथ
2024 आम चुनाव के अभी डेढ़ साल बाकी हैं। इतने वक्त में देश की सियासत कई करवटें ले सकती है। लेकिन चुनाव को लेकर पक्ष और विपक्ष अभी से अपने-अपने हिसाब से सियासी पिच तैयार करने में जुट गए हैं। अपनी मजबूती और कमजोरी को देखते हुए दोनों खेमे आम चुनाव का अजेंडा सेट करने की भी कोशिश में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने हालिया भाषण और रुख से साफ संदेश दे दिया है कि 2024 में गवर्नेंस और करप्शन के खिलाफ जंग को मुद्दा बनाकर अपने लिए तीसरा कार्यकाल मांगेंगे। वहीं, कांग्रेस ने भारत जोड़ो अभियान और दिल्ली में रैली करके यह संकेत दिया है कि वह महंगाई-बेरोजगारी को 2024 चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाएगी। ऐसे में अगले कुछ महीनों तक दोनों पक्षों की ओर से अपने अनुरूप नैरेटिव सेट करने की तमाम कोशिशें दिखेंगी। इनकी वजह से सियासी तापमान और बढ़ सकता है।
एक ओर विपक्षी एकता की नए सिरे से शुरू की गई कोशिशों के बीच करप्शन के मसले को केंद्र में लाने की पहल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने और उनकी विपक्षी दलों को एक करने के प्रयासों के बीच मोदी ने इसे करप्शन के खिलाफ गठबंधन बता डाला। पिछले दिनों केरल में आयोजित एक रैली में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैंने 15 अगस्त को लाल किले से एलान किया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का समय आ गया है। हम देख रहे हैं कि जैसे ही हमने भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की, राष्ट्रीय स्तर पर एक नया राजनीतिक ध्रुवीकरण शुरू हो गया। इन भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए कई राजनीतिक गुट खुलेआम एक-दूसरे के साथ आकर एकता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।’
विपक्षी गठबंधन पर साधा निशाना
यह नीतीश सहित तमाम विपक्षी दलों पर हाल के दिनों में सबसे बड़ा और सीधा प्रहार था। इसमें 2024 के लिए अजेंडा सेट करने का संदेश भी था। दरअसल, 2014 से लेकर अब तक पीएम मोदी के नेतृत्व में करप्शन और परिवारवाद को हमेशा बड़ा मुद्दा बनाया गया। 2014 में मोदी सरकार को करप्शन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की उम्मीद पर बड़ा बहुमत भी मिला था। हालांकि बाद में सरकार पर आरोप लगे कि इस मोर्चे पर वैसी कार्रवाई नहीं हुई, जैसी अपेक्षा थी। उलटे विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे वित्तीय फ्रॉड करने वाले जब देश छोड़कर भाग गए तो सरकार की फजीहत ही हुई। साथ ही 2019 में राहुल गांधी की अगुवाई में राफेल डील में घोटाले का आरोप लगाकर पीएम मोदी को उनके ही मजबूत किले में घेरने की असफल कोशिश भी हुई। बीजेपी और मोदी इसे अपना सबसे मजबूत पक्ष मानते हैं कि उनकी सरकार में करप्शन के कोई गंभीर आरोप नहीं लगे। 2019 में बड़ी जीत के बाद फिर पीएम ने 2024 में आजमाए फॉर्म्युले से ही आगे बढ़ने की जमीन तैयार कर दी।
इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए उनके भाषण को भी इसी संदर्भ में देखना होगा। उन्होंने करप्ट नेताओं के महिमामंडन की प्रवृत्ति पर चिंता जताई। पीमोदी ने संकेत दिया कि विपक्षी हमले के बीच वह करप्शन पर अपने स्टैंड को नहीं बदलेंगे और अगले आम चुनाव में भी इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करेंगे। करप्शन के आरोप में सजा पाए नेताओं को जनता पसंद न करे, इसकी भी मांग कर एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की गई। दरअसल, पीएम मोदी ने लाल किले से करप्शन पर तब सख्त तेवर दिखाए, जब विपक्षी दलों ने जांच एजेंसियों पर राजनीतिक अजेंडा के हिसाब से कार्रवाई करने का आरोप लगाया और इस पर खूब राजनीति की। पिछले कुछ महीनों में करप्शन को लेकर जांच के दायरे में विपक्ष के कई नेता आए हैं। विपक्ष का कहना है कि उनके नेताओं पर दबाव बनाने के लिए इस तरह की कार्रवाई हो रही है। पिछले दिनों एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय एजेंसी के दुरुपयोग के विपक्ष के आरोप पर पीएम मोदी ने कहा था कि हिंदुस्तान में हमेशा चुनाव चलता रहता है तो क्या सरकार और उसकी एजेंसियां काम ना करें?
विपक्ष को जनता पर भरोसा
वहीं विपक्ष को लगता है कि बीजेपी का दांव इस बार सही नहीं लगने वाला। उसका तर्क है कि हाल में जिस तरह एकतरफा कार्रवाई हुई है उससे न सिर्फ बीजेपी की, बल्कि जांच एजेंसियों की भी विश्वसनीयता पूरी तरह समाप्त हो गई है। अब विपक्षी दल जांच एजेंसियों पर सीधा हमला कर रहे हैं। एक वर्ग का मानना है कि जांच एजेंसियों ने एक के बाद एक लगातार विपक्षी दलों पर हमला कर इस नैरेटिव को बनाने में विपक्ष की मदद भी कर दी। लगभग सभी विपक्षी दल जांच एजेंसियों के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। ईडी को मिले असीमित अधिकार को जब सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया तो लगभग सभी दलों ने इसके खिलाफ अपील करने की बात की और उनकी अपील को स्वीकार भी किया गया।
विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार के आठ वर्षों में जांच एजेंसियां अपनी कार्रवाई को कोर्ट में सही साबित करने में पूरी तरह विफल रहीं। विपक्षी दलों का यह भी तर्क है कि आम लोगों के सामने महंगाई और बेरोजगारी बड़ी समस्या है। अगर वे इन मुद्दों पर सरकार को घेरेंगे, तो न सिर्फ लोगों का साथ मिलेगा, बल्कि करप्शन के नाम पर होने वाली कार्रवाई से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिलेगी। वे एनडीए सरकार की करप्शन पर बेदाग छवि पर भी सवाल उठाते हैं। विपक्ष लोगों के बीच संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि चंद बड़े उद्योगपतियों को हर संसाधन सरकार के संरक्षण में दिलाना भी एक बड़ा करप्शन है। वे इसे 2024 में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं। जाहिर है, विपक्ष के सवाल तीखे हैं तो पीएम की बातें भी धारदार हैं। अगले कुछ दिनों में संकेत मिलने लगेगा कि किसके नैरेटिव को अधिक सफलता मिल रही है।
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