जयश्री शर्मा ‘ ज्योति ‘
राजस्थान के मेवाड़ की पावन धरती ने कई महान एवं वीर पराक्रमी योद्धाओं को जन्म दिया है । गोरा एवं बादल उन्हीं वीर योद्धाओं में से है । यह धरती हमेशा उनकी कृतज्ञ रहेगी । इन दोनों महान योद्धाओं के बारे में यह कहा जाता है कि ‘ जिनका शीश कट जाए फिर भी धड़ दुश्मनों से लड़ता रहे वह है राजपूत । ‘
दोनों के साहस , बल एवं पुरुषार्थ से सारे शत्रु डरते थे । गोरा और बादल इतिहास के उन गिने – चुने लड़ाकुओं में से थे जिनके पास बाहुबल के साथ – साथ तीव्र बुद्धि भी थी । इनकी बुद्धि व वीरता ने उस असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाया जिसे कोई शायद ही कर पाता ।
चित्तौड़गढ़ का इतिहास राजपूतानी मिसालों से भरा हुआ है परंतु वहाँ के राजा रावल रतन सिंह के सेनापति गोरा और बादल की कहानी कई महायुद्धों पर भारी पड़ने वाली कहानी है । गोरा – बादल ना तो राजा थे , ना ही कोई सम्राट और ना ही कोई बादशाह , परंतु उनकी वीरता की कहानी अमर हो गई । वे जालौर के चौहान वंश से संबंध रखते थे । चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा जिन सात अभेद दरवाजों पर टिकी हुई थी उनमें से दो गोरा और बादल भी थे ।
गोरा चित्तौड़गढ़ की सेना के सेनापति थे और बादल उनके भतीजे थे । युद्ध की रणनीति बनाने में भी वे निपुण थे । इतिहास दोनों चाचा – भतीजों को आज भी गर्व से याद करता है । बादल भी अपने चाचा गोरा की तरह युद्ध कला में माहिर थे । सिर्फ 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी थी । इतनी कम उम्र में उनकी ख्याति दूर – दूर तक फैली ।
अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की सुंदरता को शीशे में देखकर उन्हें पाने के लिए आतुर हो गया था । उसने रावल रतन सिंह को कैंप में बुलवाकर धोखे से बंदी बना लिया और उसके बाद उसने रानी को संदेश पहुँचाया कि यदि वह उसकी खिदमत में हाजिर नहीं होंगी तो राजा का कटा हुआ सिर ही उनके पास पहुँचेगा ।
रानी ने गोरा – बादल से मदद की गुहार लगाई और तब गोरा और बादल राजपूतानी शान की रक्षा करने के लिए तुरंत तैयार हो गए । उन्होंने राजा को छुड़ाने हेतु एक रणनीति तैयार की । गोरा ने 700 डोलियाँ बनवाकर उसमें उतने ही सैनिक स्त्रियों की वेशभूषा में बैठा दिये । हर डोली में चार कहारों को मिलाकर लगभग तीन हजार वीर राजपूत जवानों ने खिलजी पर सर्जिकल स्ट्राईक करने की तैयारी की । गोरा ने रानी के नाम से खिलजी को संदेश पहुँचाया की महारानी उनके पास आने को तैयार है पर वे एक बार महाराजा रतन सिंह से मिलना चाहती हैं । खिलजी ने खुश होकर तुरंत उनकी यह शर्त मान ली । पद्मिनी के भेष में डोली में बैठे लोहार को बंदीगृह में भेजकर राजा की बेड़ियाँ कटवा कर गोरा ने उन्हें मुक्त करवा लिया । गोरा और बादल रण का आभूषण पहने राजपूत सैनिकों के साथ खिलजी की सेना पर टूट पड़े । दोनों सेनाओं का भीषण मुकाबला हुआ और सैकड़ों की संख्या में आए हुए राजपूत सैनिक असंख्य मुगल शत्रुओं पर भारी पड़ने लगे । गोरा खिलजी के तंबू तक पहुँच कर उसे मारने ही वाले थे तभी खिलजी अपनी पत्नी के पीछे छुप गया ।
गोरा एक सच्चे राजपूत थे और राजपूत , महिलाओं को नहीं मारते , इसलिए उन्होंने महिला पर हाथ नहीं उठाया और खिलजी बच गया । परंतु उसी खिलजी के सेनापति ने धोखे से गोरा पर प्राणघातक वार किया । गोरा खिलजी की सेना का संहार कर ही रहे थे तभी खिलजी के एक सेनापति ने पीछे से धोखे से आकर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया । सिर कटने के पश्चात भी गोरा का घड़ खिलजी की सेना से लड़ता रहा और अंत में उन्होंने उस सेनापति जफर का सिर काट कर जमीन पर ला दिया और उसके बाद ही इस महान राजपूत योद्धा के प्राण निकले । चाचा गोरा के धड़ को लड़ता देख बादल ने और भी पराक्रम के साथ खिलजी की सेना का संहार किया । फिर अंत में राजस्थान के सम्मान की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए । इस प्रकार गोरा और बादल की यह रणनीति खिलजी पर भारी पड़ी और राजा रतन सिंह सकुशल चित्तौड़ वापस पहुँच सके ।
12 वर्षीय बादल की वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया है-
” बादल बारह बरस से , लड़ियों लाखा साथ ।
सारी दुनिया पेखियो , वो खांडा वै हाथ ।। ”
इन दोनों चाचा – भतीजे की वीरता की कहानी आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को गौरवपूर्ण आत्मबलिदान की प्रेरणा देती रहेगी । गोरा और बादल की वीरता व शीर्य की अद्भुत कहानी राजस्थान के कण – कण में अमर हो गई । गोरा और बादल की स्मृति में चित्तौड़गढ़ के किले में रानी पद्मावती के महल के दक्षिण में गुंबद के आकार के दो घर बनवाए गए हैं जिन्हें गोरा – बादल के महलों का नाम दिया गया है । भारतमाता के इन दोनों वीर सपूतों की कहानी युगों – युगों तक नवयुवकों में आजादी , अस्मिता और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा भरती रहेगी ।