ग्रेनो ( विशेष संवाददाता) गुरुकुल मुर्शदपुर में चल रहे कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे आर्य युवा नेता आर्य सागर खारी ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा के उद्देश्य आज भी हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली ज्ञान विज्ञान पर आधारित होती थी जिसमें शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता था । उस समय पर आ और अपरा विद्या को सिखा कर बच्चे को इस लोक का और परलोक का दोनों का ज्ञान कराया जाता था। इसी के आधार पर कौन से पुण्य कार्यों को करने से धर्म लाभ होता है और कौन से पाप कार्यों को करने से परलोक बिगड़ता है, इस पर भी बच्चों को जागृत किया जाता था। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली से धर्म की रक्षा होती थी और लोक में सह सरिया का भाव उत्पन्न होता था। जिससे सद्भाव और करना जैसे मानवीय मूल्यों की रक्षा होती थी। उस समय जाति संप्रदाय लिंग के आधार पर छात्रों के मध्य किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था। राजा और रंक दोनों के बच्चे एक साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण किया करते थे। इस प्रकार गुरुकुल में जाकर ऊंच-नीच का भेदभाव समाप्त हो जाता था और समान शिक्षा व संस्कार लेकर संसार के लिए समान उद्देश्य से प्रेरित होकर छात्र-छात्राएं निकलते थे। जब वह गुरुकुल से बाहर आते थे तो समाज के लोग उन्हें द्विज कहकर सम्मानित करते थे। इसके पश्चात ही ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी यू का विवाह संस्कार संपन्न होता था। इस प्रकार उस समय समाज की यह व्यवस्था थी कि जो युवा समाज व संसार के लिए उपयोगी हो गया है और उसके उपयोगी हो जाने का प्रमाण पत्र गुरुकुल से प्राप्त हो गया है उसका ही विवाह संस्कार किया जाता था।
श्री आर्य ने कहा कि इस शिक्षा प्रणाली से मिले निर्देश छात्रों को अपनी तरह की जिन्दगी बनाने में मदद करते थे। इस तरह से छात्र को जीवन के कठिन समय में भी खुद को दृढ़ता से खड़े रखने में मदद मिलती थी। उन्होंने कहा कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज की शिक्षा प्रणाली इस प्रकार की सामाजिक संरचना के निर्माण पर ध्यान नहीं दे रही है। शिक्षक दिवस के विशिष्ट दिवस पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमें शिक्षक दिवस केवल औपचारिकता के लिए नहीं मनाना चाहिए बल्कि इसकी संजीदगी को गहराई से समझना चाहिए। आज के शिक्षक भी अपनी मर्यादा को समझें और अपने धर्म का पालन करते हुए छात्र निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण के गंभीर प्रश्न को समझाने की ओर काम करें तो राष्ट्र का कायाकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश ने विश्व का नेतृत्व किया है। तीज का उपासक होने के कारण तेज अर्थात ऊर्जा का आविष्कार भी सबसे पहले इसी ने किया और संसार को तेजस्वी बनाने के लिए दिन-रात परिश्रम किया। यदि भारत वास्तव में फिर से विश्व गुरु बनना चाहता है तो उसे अपने आपको इसी प्रकार के परिश्रम के प्रति समर्पित करना होगा।
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