हिंदू महासभा की गौरव गाथा इस देश के लिए आजादी का कारण बनी थी
देश में कांग्रेस से भी पहले हिंदू महासभा ने अपने अस्तित्व को खोजना आरंभ किया था। वास्तव में हिंदू महासभा हिंदू सभा के रूप में पंजाब और बंगाल में जब जमी तो इसमें हिंदू की अस्मिता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। इस क्रांतिकारी संगठन को रोकने के लिए अंग्रेजों ने 18 85 में कांग्रेस की स्थापना की थी। यही कारण है कि हिंदू महासभा के राष्ट्रवादी चिंतन से कांग्रेस का प्रारंभ से ही 36 का आंकड़ा रहा है। कांग्रेस जहां छद्म राष्ट्रवाद की बात करती रही वही हिंदू महासभा ने प्रारंभ से ही प्रखर राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी।
मुस्लिम लीग की १९०६ में स्थापना के ६ वर्ष बाद मुस्लिम लीग़ की तरफ़ से मोहम्मद अली ने माँग उठाई कि भारत का विभाजन करके उत्तर भारत मुसलमानो को दे दिया जाये व दक्षिण भारत हिंदूवो को दे दिया जाय। मुस्लिम लीग़ की इस घोषणा के बाद हिन्दु समाज को संगठित कर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय ने १९१३ में अखिल भारत हिंदू महासभा की व इसका पहला अधिवेशन हरिद्वार में महाराजा मनीनद्र चंद्र नन्दी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुवा।
इसके बाद कांग्रेस के जितने भी हिन्दु अध्यक्ष होते थे वे हिन्दु महासभा के भी अध्यक्ष होते थे। जिस पंडाल में कांग्रेस का अधिवेशन होता था उसी पण्डाल में एक दिन हिन्दु महासभा का सम्मेलन होता था। हिन्दु महासभा के कई नामी अध्यक्ष इस प्रकार हुवे। यथा महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय, स्वामी श्रधानंद,लाला लाजपत राय. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद,जगजीवन राम इसके अध्यक्ष रह चुके है। अंडमान के काले पानी की सजाकाटे भायी परमानंद भी हिन्दुमहासभा के अध्यक्ष रह चुके है। १९३७ में ज़िला बन्दी व राजनीति करने पर बन्दी हठ जाने के बाद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के शिष्य वीर सावरकर ने तिलक स्वराज पार्टी में काम किया फिर हिन्दु महासभा के अध्यक्ष बन गए,वीर सावरकर के अध्यक्ष बनने पर डॉक्टर हेडगेवार हिन्दु महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बने जो वे अपनी मृत्यु पर्यन्तबने रहे। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, निर्मल चंद्र चैटर्जी आदि लोगों ने भूनहिन्दु महासभा की अध्यक्षता की पूरी मठ के जगतगुरु शंकराचार्य भी हिन्दु महासभा के अध्यक्ष बने। वीर सावरकर के पाँच वर्ष के अध्यक्ष काल में उन्होंने हिंदुवो का सैनिकीकरन व राजनीति का हिंदुकरन कार्यक्रम चलाया। जापान हिन्दु महासभा के अध्यक्ष क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने इंडिया इंडिपेंडेन्स लीग की स्थापना की व देश को स्वतंत्र कराने के लिये भारतीय राष्ट्रीय सेना का जापान में भारतीय युद्ध बंदियों लेकर निर्माण किया। रास बिहारी बोस ने वीर सावरकर जी से आग्रह किया था उनकी मदद करने के लिये भारत से एक नौजवान को भेजे। सुभाष चंद्र बोस ने सावरकर जी के परामर्श को मानते हुवे जर्मनी होते हुवे जापान पहुँचे व भारतीय राष्ट्रीय सेना की कमान रास बिहारी बोस से ली व देश को स्वाधीन किया।
वास्तव में एक से बढ़कर एक बेशकीमती हीरा हिंदू महासभा ने तलाश कर देश की आजादी के लिए दिया। हिंदू महासभा के अथक प्रयास के चलते क्रांतिकारियों ने जब धूम मचाई तो अंग्रेजों को यहां से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। यदि देश का इतिहास में निष्पक्षता से लिखा जाए तो हिंदू महासभा का क्रांतिकारी आंदोलन लोगों को यह कहने के लिए मजबूर कर देगा कि इस राष्ट्रवादी संगठन का देश की आजादी में अप्रतिम योगदान रहा है।
– इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामंत्री , अखिल भारतीय हिन्दु महासभा