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गुरुकुल मुर्शदपुर में चतुर्वेद पारायण यज्ञ के बीच धूमधाम से मनाया गया शिक्षक दिवस

21 दिवसीय चतुर्वेद पारायण महायज्ञ के पांचवे दिवस के 9 वे सत्र में आज गुरुकुल मुर्शदपुर ग्रेटर नोएडा में ब्रह्मचारीयो व उनके अभिभावकों के समक्ष शिक्षक दिवस को धूमधाम से मनाया गया। सभी अध्ययनरत छात्राओं को अनुशासन कर्मठता का संकल्प दिलवाया गया। गुरुकुल के आचार्य महायज्ञ के ब्रह्म विद्या देव जी ने कहा कि शिक्षक राष्ट्र कि नीव होता है। शिक्षक अपने विद्यार्थी की सभी कमजोरियों को दूर कर सशक्त समाज देश के प्रति जिम्मेदार बनाता है। गुरुकुल के आचार्य दुष्यंत जी ने कहा कि भारत की शिक्षा पद्धति में वैदिक नैतिक मूल्यों को भी स्थान मिलना चाहिए ।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए आचार्य विद्या देव जी ने कहा कि प्राचीन काल में हमारे गुरुजन प्रातः काल में स्वयं जल्दी उठते थे और अपने विद्यार्थियों को भी जल्दी उठा कर उन्हें बौद्धिक संपदा करधनी बनाया करते थे।आज का मेडिकल साईंस का कोई विद्यार्थी ऐसा नहीं होगा जो प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त्त में उठने का अभ्यासी हो, ईश्वर भजन करता हो, प्रात:योगादि करता हो, स्नान कर यज्ञादि करता हो और अपनी जीवन चर्या को कठोर व्रत साधना में व्यतीत करने का अभ्यासी हो। इसके विपरीत वह आलसी मिलेगा और देर तक सोता रहेगा। यह स्थिति उस विद्यार्थी की ही नहीं है-हममें से अधिकांश लोगों की है। वर्तमान चिकित्सा शास्त्र इस स्थिति को सुधारना नही चाहता वह उपचार देना चाहता है और उपचार से पैसा कमाना चाहता है। लोग मरें तो मरें इससे उसे कोई लेना देना नहीं, उसे तो अपनी दवा बेचनी है। इसके चलते यह वर्तमान चिकित्सा प्रणाली अर्थात एलोपैथी विश्व के लिए खतरनाक सिद्घ हो चुकी है। हर व्यक्ति घुट-घुटकर मर रहा है। वह जीवित तो है पर स्वयं को एक ‘जिंदा लाश’ सी मानता है, कारण कि भीतर से वह प्रसन्न नहीं है।
आचार्य श्री ने कहा कि भारत की आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली मनुष्य को प्रात:शीघ्र उठने, भ्रमण करने, योग करने, स्नान करने व या दैनिक यज्ञ करने की शिक्षा देती है, साथ ही ध्यान के माध्यम से रोगी के मन को नियंत्रित कराने का उपाय बताती है। इस प्रकार भारत का आयुर्वेद व्यक्ति को प्रात:काल से ही पकड़ लेता है और उसके अदृश्य जगत को झाडू-पोंछा लगाकर स्वस्थ और स्वच्छ करने का प्रयास करता है। आयुर्वेद का मानना है कि मानव स्वास्थ्य और मनोविज्ञान का गहरा संबंध है। जिससे वह प्रात:काल में लोगों में अच्छे संस्कार डालने का प्रयास करता है। मन स्वस्थ है और प्रसन्न है तो मनुष्य आधा स्वस्थ अपने आप ही हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि-‘मन के हारे हार है, मनके जीते जीत है।’ इस प्रकार आयुर्वेद मनुष्य को नियम और व्रतों से बंधी हुई कठोर जीवन-चर्या जीने के लिए प्रेरित करता है।
आचार्य श्री ने कहा कि गुरु की महत्ता को भारत ने प्राचीन काल से स्वीकार किया है। आज इसे सही संदर्भ में समझने की आवश्यकता है।
हमारी संस्कृति में शिक्षक का मुख्य स्थान है माता-पिता शिक्षक जनों का किसी भी विद्यार्थी के जीवन में अमूल्य योगदान होता है। जो भी महापुरुष हुए हैं वह अपनी शिक्षकों की आज्ञा का पूरी तरह पालन करते थे। आचार्य विद्या देव जी ने कहा कि महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित शिक्षा पद्धति लगी शिक्षा पद्धति के मूल में वेद है संस्कारों की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए स्कूल में वह संस्कार और अधिक मजबूत होते हैं। नौजवान ओजस्वी सन्यासी प्राण देव जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें आत्मा परमात्मा को जानने वाले शिक्षकों से ही शिक्षा अर्जित करनी चाहिए शिक्षा का बहुत महान उद्देश्य वैदिक संस्कृति में निर्धारित है। इस अवसर पर गुरुकुल के 30 विद्यार्थी सभी आचार्य आमंत्रित अतिथि आयोजक मंडल की ओर से देव मुनि आर्य सागर खारी कमल आर्य जी रामअवतार आर्य जी दिवाकर आर्य जी जीता आर्य जी बाबूराम आर्य जी स्वामी प्राण देव जी आचार्य रिंकू, आचार्य शिवांशु ओम मुनि जी शिव मुनि जी ऋषिराज लोहिया अरविंद चंदेला आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

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