आज आवश्यकता है स्वामी दयानंद के राष्ट्रवादी चिंतन को प्रस्तुत करने की : आचार्य विद्या देव
ग्रेनो। ( विशेष संवाददाता ) चतुर्वेद पारायण यज्ञ में अपने विचार व्यक्त करते हुए आर्य समाज के महान विद्वान आचार्य विद्या देव ने कहा कि महाभारत काल के बाद देश में अज्ञानता के कारण अन्धविश्वास व कुरीतियां उत्पन्न होने से देश निर्बल हुआ। जिस कारण समय समय पर उसके कुछ भाग पराधीन होते रहे। देश में अनेक मत पंथ संप्रदाय जन्म में जिन्होंने हमारे भीतर कुरीतियों और सूट के बीच डाले।
आचार्य श्री ने कहा कि पराधीनता का शिंकजा दिन प्रतिदिन अपनी जकड़ बढ़ाता गया। देश अशिक्षा, अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड व सामाजिक विषमताओं से ग्रस्त होने के कारण पराधीनता का प्रतिकार करने में असमर्थ था। सौभाग्य से इसी समय गुजरात में महर्षि दयानन्द का जन्म होता है। लगभग 22 वर्ष तक अपने माता-पिता की छत्र-छाया में उन्होंने संस्कृत भाषा व शास्त्रीय विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। इससे उनकी तृप्ति नहीं हुई। ईश्वर के सच्चे स्वरूप का ज्ञान और मृत्यु पर विजय कैसे प्राप्त की जा सकती है, इसके उपाय ढूंढने के लिये वह घर से निकल गये और लगभग 13 वर्षों तक धार्मिक विद्वानों व योगियों आदि की संगति तथा धर्म ग्रन्थों का अनुसंधान करते रहे।
इसी बीच सन् 1857 ईस्वी का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम भी हुआ जिसे अंग्रेजों ने कुचल दिया। इसमें महर्षि दयानन्द की सक्रिय भूमिका रही। परन्तु इससे सम्बन्धित जानकारियां उन्होंने विदेशी राज्य होने के कारण न तो बताई और न ही उनका किसी ने अनुसंधान किया। इसके बाद सन् 1860 में मथुरा में दण्डी गुरू स्वामी विरजानन्द के वह अन्तेवासी शिष्य बने और उनसे आर्ष संस्कृत व्याकरण और वेदादि शास्त्रों का अध्ययन किया। गुरु व शिष्य धार्मिक अन्धविश्वासों, देश के स्वर्णिम इतिहास व पराधीनता आदि विषयों पर परस्पर चर्चा किये करते थे। अध्ययन पूरा करने पर गुरु ने स्वामी दयानन्द को देश से अज्ञान, अन्धविश्वास, सामाजिक असमानता व विषमता दूर करने का आग्रह किया। गुरु विरजानन्द ने सभी समस्याओं वा बुराईयों की जड़ अविद्या अर्थात् विपरीत ज्ञान को दूर करने के लिए ईश्वरीय ज्ञान वेद का प्रचार करने का मन्त्र भी स्वामी दयानन्द जी को दिया था। स्वामी दयानन्द जी ने गुरु को इस कार्य को प्राणपण से करने का वचन दिया और सन् 1863 में इस कार्य को आरम्भ कर दिया।
आचार्य श्री ने कहा कि आज स्वामी जी महाराज के राष्ट्रवादी चिंतन को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। क्योंकि आज भी देश के लिए भयंकर परिस्थितियां पैदा हो गई हैं। इन सारी परिस्थितियों का विनाश केवल स्वामी जी महाराज के राष्ट्रवादी चिंतन से होना ही संभव है। इस यज्ञ के प्रत्येक सत्र के कार्यक्रम की प्रस्तुति और मंच संचालन का कार्य आर्य समाज के युवा नेता आर्य सागर खारी द्वारा किया जा रहा है।
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