ग्रेनो ( विशेष संवाददाता) गुरुकुल मुर्शदपुर में चल रहे यज्ञ पर उपस्थित लोगों को यज्ञ के प्रति समर्पित भाव रखने के लिए प्रेरित करते हुए आर्य समाज जनपद गौतम बुद्ध नगर के स्तंभ देव मुनि जी ने कहा कि जब हम परमपिता परमेश्वर की गोद में बैठें तो उससे अपना सीधा और सरल संवाद स्थापित करें। ऐसा अनुभव करें कि जैसे हम अपने पिता की शरण में आकर उससे उसका आश्रय या संरक्षण मांग रहे हैं और मां की गोद जैसी अविचल शांति का अनुभव कर रहे हैं। वहां कोई न हो, केवल मैं और मेरा पिता हो। कोई मध्यस्थ न हो, कोई बिचौलिया न हो। न कोई मूर्ति हो और न कोई अन्य ऐसा माध्यम हो जो मेरे और उनके बीच में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न करे। सीधा हृदय से निकलने वाला संवाद हो, हृदय की बात हो।
देव मुनि जी ने आगे कहा कि वेद, ज्ञान हमारे रोम-रोम में तू बसा हो पर वह भी प्यारे पिता और हमारे बीच में कोई दीवार न बन जाए। मेरे आनंद में किसी प्रकार की औपचारिकता का खलल डालने वाला कोई न बन जाए। मैं अपनी मां से सीधे बात करूं। उसमें शब्दों की बनावट या किसी प्रकार की दिखावट या अनावश्यक शब्दाडंबर की सजावट ना हो। क्योंकि वह दयालु मेरे हृदय के सरल शब्दों को बड़े ध्यान से सुनता है, और यह सत्य है कि मैं उससे जो कुछ मांगता हूं वह उसे हर स्थिति में और हर परिस्थिति में पूर्ण करता है। इसीलिए वह पूजनीय है कि वह दयालु है, वह कृपालु है, वह हृदय से निकली हुई हर प्रार्थना को सुनता है, और अपने भक्त की झोली को भरकर ही उसे अपने दर से उठाता है। जो सच्चे हृदय से उसे पूजनीय प्रभो का ध्यान करते हैं उनके भावों में उज्ज्वलता का प्राकट्य होने लगता है, उनके शब्दों में सरलता, हृदय में पवित्रता और कर्म में शुचिता का प्रदर्शन स्पष्ट दीखने लगता है।
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