परमपिता परमेश्वर से भावों को उज्जवल करने की प्रार्थना नित्य करते रहो : स्वामी चित्तेश्वरानंद जी महाराज
ग्रेटर नोएडा। यहां पर गुरुकुल मुर्शदपुर में चल रहे 21 दिवसीय वेद पारायण यज्ञ में बोलते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान स्वामी चित्तेश्वरानंद जी महाराज ने उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि प्रतिदिन संध्या के उपरांत परम पिता परमेश्वर से भागों को उज्जवल करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए कि अपने हृदय की आसुरी प्रवृत्तियों के साथ युद्घ में विजय पाने के लिए हे प्रभो ! हम में सात्विक वृत्तियां जागृत हों। क्षमा, सरलता, स्थिरता, निर्भयता, अहंकार शून्यता इत्यादि शुभ भावनाएं हमारी संपत्ति हों। हमारे शरीर स्वस्थ तथा परिपुष्ट हों। मन सूक्ष्म तथा उन्नत हों , जीवात्मा पवित्र तथा सुंदर हों , तुम्हारे संस्पर्श से हमारी सारी शक्तियां विकसित हों। हृदय दया तथा सहानुभूति से भरा रहे। हमारी वाणी में मिठास हो तथा दृष्टि में प्यार हो। विद्या तथा ज्ञान से हम परिपूर्ण हों। हमारा व्यक्तित्व महान तथा विशाल हो।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि हे प्रभो! अपने आशीर्वादों की वर्षा करो, दीनातिदीनों के मध्य में विचरने वाले तुम्हारे चरणारविन्दों में हमारा जीवन समर्पित हो। इसे अपनी सेवा में लेकर हमें कृतार्थ करें। प्रात:काल की शुभबेला में हम आपके द्वार पर आये हैं, आपके बताये वेद मार्ग पर चलते हुए मोक्ष की ओर अग्रसर होते रहें, यही प्रार्थना है, इसे स्वीकार करो! स्वीकार करो!! स्वीकार करो!!! ओ३म् शांति: शांति: शांति:।
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध सन्यासी ने लोगों को अपनी उपरोक्त प्रार्थना के साथ जोड़ते हुए स्पष्ट किया कि इस प्रार्थना के शब्द जब किसी ईश्वरभक्त के हृदय से निकले होंगे तो निश्चय ही उस समय उस पर उस परमपिता परमेश्वर की कृपा की अमृतमयी वर्षा हो रही होगी। वह तृप्त हो गया होगा, उसकी वाणी मौन हो गयी होगी, उस समय केवल उसका हृदय ही परमपिता परमेश्वर से संवाद स्थापित कर रहा होगा। इसी को आनंद कहते हैं, और इसी को गूंगे व्यक्ति द्वारा गुड़ खाने की स्थिति कहा जाता है, जिसके मिठास को केवल वह गूंगा व्यक्ति ही जानता है, अन्य कोई नही। वह ईश्वर हमारे लिए पूज्यनीय है ही इसलिए कि उसके सान्निध्य को पाकर हमारा हृदय उसके आनंद की अनुभूति में डूब जाता है।
उस समय आनंद के अतिरिक्त अन्य कोई विषय न रहने से हमारे जीवन के वे क्षण हमारे लिए अनमोल बन जाते हैं और हम कह उठते हैं-‘हे सकल जगत के उत्पत्तिकर्त्ता परमात्मन ! इस अमृत बेला में आपकी कृपा और प्रेरणा से आपको श्रद्घा से नमस्कार करते हुए हम उपासना करते हैं कि हे दीनबंधु ! सर्वत्र आपकी पवित्र ज्योति जगमगा रही है। सूर्य, चंद्र, सितारे आपके प्रकाश से इस भूमंडल को प्रकाशित कर रहे हैं। भगवन ! आप हमारी सदा रक्षा करते हैं। आप एकरस हैं, आप दया के भंडार हैं, दयालु भी हैं, और न्यायकारी भी हैं। आप सब प्राणिमात्र को उनके कर्मों के अनुसार गति प्रदान करते हैं, हम आपको संसार के कार्य में फंसकर भूल जाते हैं, परंतु आप हमारा, कभी त्याग नही करते हो । हम यही प्रार्थना करते हैं कि मन, कर्म, वाणी से किसी को दुख न दें, हमारे संपूर्ण दुर्गुण एवं व्यसनों और दुखों को आप दूर करें और कल्याणकारक गुण-कर्म और शुभ विचार हमें प्राप्त करायें। हमारी वाणी में मिठास हो, हमारे आचार तथा विचार शुद्घ हों, हमारा सारा परिवार आपका बनकर रहे। आप हम सबको मेधाबुद्घि प्रदान करें, और दीर्घायु तक शुभ मार्ग पर हम चलते रहें, हम सुखी जीवन व्यतीत करें, हमें ऐसा सुंदर, सुव्यवस्थित और संतुलित जीवन व्यवहार और संसार प्रदान करो। हमारे कर्म भी उज्ज्वल और स्वच्छ हों।
सर्वपालक, सर्वपोषक, सारे जगत के रचने वाले पिता ! दुष्ट कर्मों से हमें बचाकर उत्तम बुद्घि और पराक्रम प्रदान कीजिए। हमको केवल आपका सहारा है, आपका आश्रय है, आपका संरक्षण है। हमारी कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियां शुभ देखें और शुभ मार्ग पर चलें, शुभ सोचें तथा निष्काम भाव से प्राणीमात्र की सेवा करते हुए अंत में आपकी ज्योति को प्राप्त हों, संसार के सारे बंधनों से मुक्त होकर वास्तविक मुक्ति वा मोक्ष के अधिकारी हों।