सांस्कृतिक प्रहार एक जिहादी मानसिकता
⭐चर्चित व विवादित फ़िल्म “पी. के.” में शिव जी को टॉयलेट में दिखाओ तो भावनाये आहत नहीं और आतंकवादियो को मॉकड्रिल में गोल टोपी (जो कि प्रायःसत्य है )में दिखाना अपराध हो गया ..?
⭐यह तो उसी प्रकार हुआ जब जून 2004 मे लश्करे-ए-तोइबा की आतंकी इशरत जहां व उसके गोल टोपी वाले साथी जब अहमदाबाद मे एक अति विशिष्ठ व्यक्ति ( कोड शब्द ..मछली न. 5 ) की हत्या के लक्ष्य से गये तब पूर्व सुचना के आधार पर पुलिस की सतर्कता से वे मुठभेड़ मे मारे गये , तो उनकी मौत पर राजनीति करने वाले आज तक चिल्ला रहे है।परंतु किसी ने सरकारी तंत्र की इस बड़ी सफलता की प्रशंसा न करके उल्टा उन्हे मुस्लिम पोषित राजनीति के कारण कटघरे मे खड़ा मे खड़ा किया गया।
⭐क्या एकतरफा हिन्दूओ व उनकी आस्थाओ पर धर्मनिरपेक्षता की आड़ व जिहाद के दबाब में प्रहार होता रहे ? क्या देश का बुद्धिजीवी वर्ग अपने ज्ञान से कभी ऐसे प्रहारो का प्रतिकार करेगा ? क्या ये राजनेता अपनी सत्तालोलुप राजनीति को कभी राष्ट्रनीति मे बदलेगे ?
⭐ मुस्लिम सम्प्रदाय को खुश रखने के लिए भारत का इस्लामीकरण क्यों किया जा रहा है? कहा गया राष्ट्रवाद ? क्या नेताओ के भाषणों मे भाषा की वाकपटुता को कार्य शैली मे परिवर्तित करने की सामर्थ नहीं ? कथनी और करनी का अन्तर कब मिटेगा ? भोली भाली जनता कब तक मूर्ख बनती रहेगी ? कब तक आँखो के अन्धो को दिखाई नहीं देगा व कान के बहरो को सुनायी नहीं देगा ?