ललित गर्ग
इस तरह ध्वस्त करने की बजाय क्या सरकार द्वारा जब्त कर उन्हें चिकित्सा, पर्यावरण, शिक्षा, रक्षा या किसी और रूप में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था? सब जानते हैं कि नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बनाई गई यह देश की इकलौती इमारत नहीं है।
हमारा भ्रष्ट चरित्र देश के समक्ष गंभीर समस्या बन चुका है। आजादी का अमृत महोत्सव मनाने तक की हमारी आजादी की यात्रा में पहली बार नोएडा में सन्नाटे के बीच हुए जोरदार धमाके के बीच साहसिक तरीके से ट्विन टावर रूपी भ्रष्टता के किले को ध्वस्त किया गया। इससे उठे धूल के गुबार के बीच भ्रष्टाचार की नींव पर बने अवैध ट्विन टावर को जमींदोज कर दिया गया। 3700 किलो विस्फोटक की मदद से यह इमारतें कुछ ही सेकेंड में ध्वस्त हो गईं। इस विस्फोट से उठे गुबार से ऐसी भ्रष्टता की ऊंचे किले गढ़ने वालों को कड़ा सबक मिला है। हजारों करोड़ की इस इमारत को जमींदोज करने का लक्ष्य भी यही है कि राजनीति से लेकर प्रशासन तक, समाजसेवियों से लेकर धर्मगुरुओं तक, व्यापारियों से लेकर उद्योगपतियों तक, डॉक्टरों से लेकर इंजीनियर, वकील, सीए, न्यायाधिपति तक, स्कूलों से लेकर अस्पतालों तक फैले भ्रष्टाचार के ऊंचे किलों को ध्वस्त करना राष्ट्र की सबसे जरूरी प्राथमिकताओं में एक है।
आजादी के 75 वर्षों में हमने नैतिक, ईमानदारी एवं चरित्र की धारणाओं को पुष्ट करने की बजाय देश में यह आम धारणा को पनपाया है कि अपने यहां सब चलता है। नियम-कानूनों को धता बताते हुए जैसे भी हो जमीन लेकर बिल्डिंग खड़ी कर दो, एक बार फ्लैट्स बिक गए, लोग उसमें रहने लगे तो फिर कुछ नहीं होता। भ्रष्टाचार का टावर कहे जाने वाले इस ट्विन टावर को गिराए जाने से इस धारणा को तोड़ने में थोड़ी मदद जरूर मिलेगी। लेकिन इस प्रकरण ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं। एक तो यही कि अवैध बिल्डिंग तो गिरी, पर बिल्डिंग बनाने वालों का क्या? आखिर बिना सरकारी, प्रशासनिक, न्यायिक संरक्षण, पुलिस के इतनी बड़ी बिल्डिंगें कैसे खड़ी हो जाती है? इस सिलसिले में पहली बात यह याद रखने की है कि बिल्डिंग को पूरी तरह से कंस्ट्रक्शन कंपनी के खर्च पर गिराया गया है। दूसरी और ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि इसे गलत तरीके से मंजूरी देने वाले भी कार्रवाई के दायरे में लिए गए हैं। कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है और जांच चल रही है। फिर भी यह बहस अपनी जगह है ही कि क्या पूरी तरह से तैयार ऐसी बिल्डिंगों को यों जमींदोज करना ही सबसे अच्छा विकल्प है? ऐसे ही अन्य भ्रष्ट टावरों का क्या हश्र होना चाहिए।
इस तरह ध्वस्त करने की बजाय क्या सरकार द्वारा जब्त कर उन्हें चिकित्सा, पर्यावरण, शिक्षा, रक्षा या किसी और रूप में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था? सब जानते हैं कि नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बनाई गई यह देश की इकलौती इमारत नहीं है। तो क्या बाकी इमारतों को भी इसी तरह ध्वस्त करना पड़ेगा? जाहिर है, ऐसी कार्रवाई सांकेतिक ही हो सकती है। सो इस ट्विन टावर के जरिए जो संदेश देना था, वह दिया जा चुका है। अब आगे का काम यह सुनिश्चित करना है कि इस संदेश को बिल्डर-अफसर-नेता बिरादरी गंभीरता से ग्रहण करे और अपने कार्य व्यवहार में आवश्यक बदलाव लाए। हमारी बन चुकी मानसिकता में आचरण की पैदा हुई बुराइयों ने पूरे तंत्र और पूरी व्यवस्था को प्रदूषित कर दिया है। स्वहित और स्वयं के लाभ में ही लोकहित है, यह सोच हमारे समाज में घर कर चुकी है। यह रोग मानव की वृत्ति को इस तरह जकड़ रहा है कि हर व्यक्ति लोक के बजाए स्वयं के लिए सब कुछ कर रहा है। देश के धन को जितना अधिक अपने लिए निचोड़ा जा सके, निचोड़ लो। देश के सौ रुपये का नुकसान हो रहा है और हमें एक रुपया प्राप्त हो रहा है तो बिना एक पल रुके ऐसा हम कर रहे हैं। भ्रष्ट आचरण और व्यवहार अब हमें पीड़ा नहीं देता। सबने अपने-अपने निजी सिद्धांत बना रखे हैं, भ्रष्टाचार की परिभाषा नई बना रखी है।
जब से नरेन्द्र मोदी एवं योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा है, उसका असर दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में जब से योगी सरकार आई है तब से बिल्डर माफिया का नौकरशाही से नेटवर्क काफी हद तक टूट चुका है। नोएडा एवं गाजियाबाद अथॉरिटी एक समय भ्रष्टाचार के बड़े अड्डे बन गये थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हजारों एकड़ सरकारी भूमि भूमाफिया के कब्जे से मुक्त कराई गई है। भूमाफिया और बाहुबलियों की लोगों को लूटकर बनाई गई संपत्तियों पर बुल्डोजर चल रहे हैं। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे कदमों की सराहना हो रही है। ट्विन टॉवर तो ध्वस्त हो गए लेकिन यहां रहने वालों के सपने भी धूल में मिल गए। यद्यपि उन्हें पैसे लौटा दिए गए हैं लेकिन अपने आशियाने को सुंदर और सुविधाजनक बनाने के लिए खर्च किया गया धन व्यर्थ ही गया। नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करना आज के दौर में आसान नहीं है। उनके सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। नोएडा का विकास इसलिए किया गया था कि आम आदमी को एक अदद छत नसीब हो सके। बेहतर यही होगा कि सरकार बिल्डर बायर्स को लेकर के सख्त कानून बनाए ताकि किसी का घर उजड़ने की नौबत न आए, घर बनाने के सपनों पर ऐसे काले धब्बे न हों, संकट के बादल न हों। सरकार कोई ऐसी नीति बनाये जिससे वर्षों से पैसे देने के बावजूद लोगों को घर नहीं मिल पा रहे हैं, उन्हें उनका धन वापस दिलाये।
एक बिल्डर कंपनी ने नहीं लगभग सभी बिल्डरों ने खुली लूट मचाई और बुकिंग के नाम पर करोड़ों की उगाही की। एक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ कि दूसरे प्रोजेक्ट का ऐलान कर दिया गया। नामी खिलाड़ियों और फिल्मी सितारों के चेहरों का सहारा लेकर पब्लिसिटी का ऐसा जाल बुना गया कि बिल्डर कंपनियों के बुने जाल में आम आदमी फंसता ही चला गया, उन्हें आज तक न आशियाना मिला और न अपनी मेहनत की कमाई। अनेक एसोसिएशनें आज भी कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। खरीदारों को अपने खून-पसीने की कमाई वापस मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं है। ट्विन टॉवर गिरने के बाद बिल्डरों की भ्रष्टता पर अब सख्ती से शिकंजा कसा जाना चाहिए। एक लंबी काली रात के बाद उजाला हुआ है। भारत के मानचित्र से एक काला धब्बा मिट गया है। इतना लंबा कानूनी सफर कर यह उजाला हुआ है, लेकिन जहां आज खड़े हैं वहां अनगिनत चुनौतियां हैं। पिछले घावों को भरना है। खुद के घर का स्वाद भी चखना है। इस इन्द्रधनुषी धरती पर कोई शोषण नहीं हो, किसी की गरिमा को चोट नहीं पहुंचे। भ्रष्टता के नाम पर आम आदमी पिसता ही नहीं रहे, बीते को भुलाकर उदाहरणीय भविष्य बनायें। तभी नई व्यवस्था विश्वसनीय बनेगी।
अपनी सब बुराइयों, कमियों को व्यवस्था प्रणाली की बुराइयां, कमजोरियां बताकर पल्ला झाड़ लो और साफ बच निकलो। कुछ मानवीय संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं कि प्रणाली शुद्ध हो, पर इनके प्रति लोग शब्दों की हमदर्दी बताते हैं, योगदान का फर्ज कोई नहीं निभाना चाहता। सच तो यह है कि बुराई लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं, बुरे तो हम हैं। इसलिये बुरे हैं कि हम बुराई को होते हुए देखकर भी मौन रहते हैं। जो इन बुराइयों को लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमजोरियां बताते हैं, वे भयंकर भ्रम में हैं। बुराई हमारे चरित्र में है इसलिए व्यवस्था बुरी है। हमारा रूपांतरण होगा तो व्यवस्था का तंत्र सुधरेगा, भ्रष्टता समाप्त होगी। वैसे हर क्षेत्र में लगे लोगों ने ढलान की ओर अपना मुंह कर लिया है चाहे वह क्षेत्र राजनीति का हो, निर्माण का हो, चिकित्सा को हो, सेवा का हो, धर्म का हो, न्याय का हो, पत्रकारिता का हो, प्रशासन का हो, सिनेमा का हो, शिक्षा का हो या व्यापार का हो। राष्ट्रद्रोही स्वभाव एवं भ्रष्टता हमारे लहू में रच चुका है। यही कारण है कि हमें कोई भी कार्य राष्ट्र के विरुद्ध नहीं लगता और न ही ऐसा कोई कार्य हमें विचलित करता है। सत्य और न्याय तो अति सरल होता है। तर्क और कारणों की आवश्यकता तो हमेशा स्वार्थी झूठ को ही पड़ती है। जहां नैतिकता और निष्पक्षता नहीं, वहां फिर भरोसा नहीं, विश्वास नहीं, न्याय नहीं। यह ट्विन टावर वर्षों से विवादों में था और देश में बिल्डर-नौकरशाही-राजनेताओं की सांठगांठ का प्रतीक बन गया था। ईंट-चूने के गैर-कानूनी भवनों को गिराना तो बहुत सराहनीय है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है- भ्रष्टता के किलों को गिराना! किसकी हिम्मत है, जो इनको गिराएगा? इस भ्रष्टता की ऊंची मीनार का ध्वस्त होना ईमानदारी के साम्राज्य की शुरुआत है I