कट्टरपंथियों ने सदैव भय व्याप्त करके ही अपनी अमानवीय इच्छाओं को पूरा किया है । मुगल काल से लेकर आज तक हिन्दू समाज की बेटियां मजहबी लोगों के लिए माल ऐ गनीमत ही रहीं हैं । इसी कारण पहले भी हिन्दू बेटियों की दुख्तरे हिन्द निलामे दो दीनार लिखकर जिहादियों ने मंण्डी लगाई थी और आज भी हिन्दू बेटियों को जिहादी अपना मजहबी शिकार समझकर उनकी दुर्दशा कर रहे हैं । आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के आधुनिक युग मे भी मजहबी लोगो की ताकत इतनी है कि उनके कुकृत्य पर राजनीतिक संगठन व राजनेता मौन धारण कर लेते हैं । जरा कल्पना कीजिए कि 12 कक्षा में पढ़ रही अंकिता पर मात्र पेट्रोल छिड़ककर एक मुस्लिम लड़के ने इसलिए आग लगा दी क्योंकि उस पढ़ी लिखी लड़की ने लड़के के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था । लड़के को पता था कि आग लगाने के बाद उसे जेल जाना पड़ेगा पर फिर भी उसने ऐसा किया क्योंकि यह एक संदेश है जिसके चलते हिन्दू समाज की लड़कियों में भय व्याप्त किया जा रहा है। यह उस भय ही जीत ही तो है कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार होने पर शाहरुख बिना किसी संकोच के अपनी छाती चौड़ी व सर उठाकर चल रहा था। सर तन से जुदा करने वाले भी गर्व के साथ इस देश मे रह रहे हैं और जिहाद अगेंस्ट वूमेन करने वाले भी गर्व से जी रहे हैं। बहुचर्चित निर्भया कांड शायद लोग भूल चुके होंगे जिसमे क्रूर अमानवीयता करने वाले मजहबी लड़के को विक्टिम कार्ड खेलकर इस देश के राजनेताओं ने ही सम्मानजनक जीवन का मौका दिया था । आज इस जिहाद के भय का आलम यह है कि जिनके घर मे बेटी है वो इस तरह की घटनाओं के विरुद्ध आवाज उठाने के स्थान पर भयभीत होकर चुप हो जाते है कि कहीं उनके मजहबी सम्बंधी या मजहबी पड़ोसी को उनका विरोध करना बुरा न लग जाए । कहीं कोई मजहबी व्यक्ति उनकी बेटी के साथ कुछ गलत न कर दे । यही तो कारण था कि दुमका में उस बिटिया के साथ मजहबी लड़के रोज छींटाकशी करते थे पर माता पिता ने कठोर कार्यवाही नही की जिसके फलस्वरूप एक निर्दोष लड़की यह कहते हुए मर गयी कि मैं बच तो जाऊंगी ना। शायद उस बिटिया को पता नही था की भले ही पेट्रोल शाहरुख ने डाला हो पर यह हिन्दू समाज अकर्मण्यता व कायरता का चोला ओढ़कर पहले ही अपनी बेटियों को मौन धारण वाली सांकेतिक अग्नि में झोंक चुका है। अखलाक की मौत पर मगरमच्छ व नर पिपासु अश्रु बहाने वाले राजनेता भी इसलिए मौन हो जाते है कि यदि कुछ कहा तो मुस्लिम वोट बैंक नाराज न हो जाए । हिन्दू समाज की दुर्दशा लगभग सभी राजनीतिक दलों के लिए लाभकारी बन चुकी है।
दिव्य अग्रवाल
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