एक मजबूत शख्सियत का नाम है-राजनाथ सिंह
रविकांत सिंह
वर्ष 2014 बीत गया है। बीता हुआ वर्ष एक इतिहास बना गया, और उस इतिहास के पृष्ठों को सुनहरा रंग जिन लोगों ने दिया, उनमें भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का नाम प्रमुख है।
भारत की राजनीति में राजनाथ सिंह एक कद्दावर नेता हैं, प्रधानमंत्री मोदी के पश्चात उनकी नं. 2 की स्थिति देश के केन्द्रीय मंत्रीमंडल में है। जब लोगों में आमतौर पर चर्चा हो कि मोदी का कद भाजपा से ऊपर हो गया है, और वह भाजपा को इंदिरा गांधी की तरह अधिनायक वाद की ओर ले जा रहे हैं, तब राजनाथ सिंह को मोदी ने जो स्थिति दी है उससे यह आरोप स्वत: मिथ्या सिद्घ हो जाता है कि मोदी अधिनायक वादी हैं और वह किसी को शक्तिशाली बनता नही देखना चाहते।
यदि राजनाथ सिंह की संघर्षपूर्ण शैली पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि भाजपा को वर्तमान स्थिति में पहुंचाने का उनका विशिष्ट योगदान है। 23 जनवरी 2013 को वह भाजपा के पुन: अध्यक्ष बने थे। तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब भाजपा पर उन लोगों का कब्जा था जो मोदी को पसंद नही करते थे, और चाहते थे कि मोदी गुजरात से बाहर न निकल पायें। यद्यपि जनभावना मोदी के पक्ष में पूरे देश में बनने लगी थी, इस बात को भाजपा में सर्वप्रथम राजनाथ सिंह ने समझा और साहसिक निर्णय लेकर मोदी को भाजपा का ‘चेहरा’ बनाने की पहल की। यह श्री सिंह की सूझबूझ भरी दृष्टि का और नेतृत्व का परिचायक था। उन परिस्थितियों में भाजपा को सचमुच एक ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष की आवश्यकता थी, जो जनभावना और पार्टी के आम कार्यकर्ता की भावना का सम्मान करने का साहस कर सके, और पार्टी को भी सम्भावित विघटन से बचाने की योग्यता रखने वाला हो। राजनाथ सिंह दोनों मोर्चों पर सफलता पूर्वक लड़े और उन्होंने 2014 में सचमुच एक इतिहास बना दिया।
मोदी की तकदीर नियति लिख रही थी और उसने ऐसी अनुकूल परिस्थितियां बनानी आरंभ कीं कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह पुन: ताजपोशी उनके लिए वरदान सिद्घ हुई। यहां से भाजपा की सूरत और सीरत बदलनी आरंभ हुई। यहीं से निकला मोदी का राष्ट्रीय जननायक बनने का ‘राजपथ’ और उस राजपथ को अपनी सूझबूझ के फूलों से जाया राजनाथ ने। कई लोगों को लग रहा था कि राजनाथ सिंह मोदी के लिए बल्कि अपने लिए ‘राजपथ’ सजा रहे हैं, परंतु राजनाथ सिंह ने बड़ी ईमानदारी से लोगों की इस शंका को भी निर्मूल साबित कर दिया। समकालीन इतिहास की यह एक शानदार मिसाल है।
10 जुलाई 1951 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में एक किसान परिवार में जन्मे राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को संभालने के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद सहित कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाला है, उनका राजनैतिक कैरियर 1972 से आरंभ हुआ, जब वह मिर्जापुर शहर के आरएसएस के कार्यवाह बनाये गये।
उससे पहले वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में गोरखपुर विश्वविद्यालय में संगठन सचिव भी रह चुके थे। 1974 में वह भारतीय जनसंघ मिर्जापुर के सचिव बनाये गये। 1975 में जनसंघ मिर्जापुर के जिलाध्यक्ष बने। 1977 में वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए विधायक चुने गये। 1983 में यूपी भाजपा के सचिव और 1984 में प्रदेश भाजपा की यूथविंग के अध्यक्ष बने। 1988 में श्रीसिंह भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये, 1991 में यूपी के शिक्षामंत्री बने, और 1994 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य बनाये गये। 25 मार्च 1997 को श्रीसिंह को भाजपा की उत्तर प्रदेश ईकाई का अध्यक्ष बनाया गया। 22 नवंबर 1999 को श्रीसिंह केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री बनाये गये। 28 अक्टूबर 2000 को राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने, जबकि 24 मई 2003 को अटल सरकार में उन्हें केन्द्रीय कृषि मंत्री बनाया गया। इसके पश्चात वह 31 दिसंबर 2005 को भाजपा के पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 2009 के आम चुनाव में वह गाजियाबाद से सांसद बनकर संसद में पहुंचे। इसके पश्चात 23 जनवरी 2013 को वह दूसरी बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
इस प्रकार राजनाथ सिंह का जीवन विभिन्न उपलब्धियों से भरा हुआ है। बहुत कम लोग जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित करने वाले अटलजी के बाद वह भारत के दूसरे राजनेता हैं, जिन्होंने अक्टूबर 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया था।
यह राजनाथ सिंह ही थे जिन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी को घर-घर पहुंचाने का ऐसा सूझबूझ भरा निर्णय लिया कि उस निर्णय से अच्छे-अच्छे सूरमा धराशायी हो गये। बड़ी सावधानी से उन्होंने पार्टी को मोदी विरोधी नेताओं के चंगुल से मुक्त किया, और अपनी गोटियों में उन्हें ऐसा फंसाया कि पार्टी को वे तोड़ नही पाये। यद्यपि कई बार ऐसा लगा कि पार्टी विभाजित हो जाएगी और जैसे 1969 में कांग्रेस इंडीकेट और सिंडीकेट में विभाजित हो गयी थी वही स्थिति भाजपा की जाएगी।
मोदी का अपना करिश्मा था, इसमें दो राय नही, पर मोदी को भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का सहयोग मिलना भी अपेक्षित था, साथ ही उन्हें उत्तर भारत में अपना जनाधार भी बनाना था। मोदी के लिए इन दोनों अपेक्षाओं पर खरे उतरे राजनाथ सिंह।
जनवरी 2013 तक भाजपा को शहरी लोगों की पार्टी माना जाता था। इसलिए पार्टी का ग्रामीण आंचल में कोई जनाधार नही था। इसके लिए भी राजनाथ सिंह की योजना कारगर रही और वह पार्टी को घर-घर मोदी के माध्यम से देश के ग्रामीण आंचल में पहुंचाने में सफल रहे। 2014 के प्रारंभ में भी लोगों को भाजपा के सत्ता में आने को लेकर कई प्रकार की शंकाएं थीं, परंतु जैसे-जैसे राजनाथ सिंह आगे बढ़े और उनकी कार्ययोजना आगे बढ़ी वैसे-वैसे ही ‘राजनाथ-मोदी’ की नई जोड़ी राष्ट्रीय पटल पर उभरती दीखने लगी। जैसे-जैसे नये सवेरे का अहसास हो रहा था वैसे-वैसे ही एक युग इतिहास में सिमटता जा रहा था, जिसे ‘अटल-आडवाणी’ कहा जाता था। राजनीति में किसी युग को इतिहास में समेटकर नये युग का सूत्रपात करना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। शक्तिशाली लोग वास्तविक योद्घाओं को इतिहास में वह स्थान नही लेने देते जो उसके योग्य होता है, पर संघर्षशील योद्घाओं का संघर्ष किसी निष्पक्ष इतिहासकार की नजरों से बच नही पाता है। इसलिए समकालीन इतिहासकार 2014 के इस महायोद्घा को इतिहास के पन्नों पर निश्चय ही महत्वपूर्ण स्थान देंगे।
2014 तक राजनाथ सिंह मोदी के राजपथ के निर्माता से ऊपर उठकर एक ऐसे यज्ञ के ब्रह्मा भी बन चुके थे जिसका संचालन तो वह स्वयं कर रहे थे, पर उसका लाभ यज्ञ के याज्ञिक बने मोदी को मिले, ऐसी भावना के साथ मंत्राहुतियां दिये जा रहे थे। मोदी इस यज्ञ में याज्ञिक बन तो गये पर यज्ञ पर अकेले बैठे थे। तब उन्हें समझ आयी कि यज्ञ पर सपत्नीक बैठा जाता है, और उन्हें ‘त्यागमयी सीता’ की याद आ गयी। मोदी ने पहली बार अपनी पत्नी को वह स्थान दे दिया जो उन्हें मिलना चाहिए था। राष्ट्रीय यज्ञ पर बैठे मोदी का हृदय परिवर्तन कराने में उस यज्ञीय पवित्रता ने विशेष भूमिका निभाई जिसके ब्रह्मा राजनाथ सिंह थे।
अब मोदी ने इस संघर्षशील व्यक्तित्व को अपने मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया है। राजनाथ सिंह पहले दिन से ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके कार्यकाल में आतंकियों से कोई वार्ता नही होगी, बल्कि आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही होगी। वास्तव में ऐसे मजबूत इरादे के साथ गृहमंत्रालय में बैठने वाले गृहमंत्री को ही देश की जनता देखना भी चाहती है, किसी भी आतंकी घटना घटने के पश्चात अभी तक राजनीतिज्ञ इतना कहकर पल्ला झाड़ते रहे हैं कि-‘‘यह कायराना कार्रवाई है और हम इसे बरदाश्त नही करेंगे’’। वास्तव में यह टिप्पणी ही कायरना होती रही है-और देश की जनता अवांछित आतंक की भट्टी में पिसती रही है।
देश की जनता को किसी बनावटी ‘लौहपुरूष’ आवश्यकता नही है और ना ही आतंकियों को दामाद की तरह अफगानिस्तान ले जाकर छोडऩे वाला बुझदिल नेतृत्व चाहिए। देश की जनता को चाहिए सु‘राज’ और उसका मजबूत ‘नाथ’ (स्वामी)।
2014 बीत गया और उसमें हमने एक क्रांति होते हुए भी देख ली। उस क्रांति के मजबूत सिपहसालार रहे राजनाथ सिंह को भी हमने देखा है। इस वर्ष में कांग्रेस का अप्रत्याशित अवसान हुआ है और भाजपा अकेले दम पर केन्द्र में सरकार बनाने में सफल रही है। राजनाथ सिंह की सूझबूझ और योग्यता ने कई युग (कांग्रेस युग, अटल-आडवाणी युग, गठबंधन युग, अस्थिर सरकारों का युग) समाप्त कराये हैं। समकालीन इतिहास में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है।
अभी इतिहास को और हिन्दुत्व को उनसे कई अपेक्षाएं हैं। 2014 से परिवर्तन की जिस बयार के बहने के संकेत मिले हैं वे हिंदुत्व के लिए निश्चित रूप से शुभसंकेत हैं।
फिलहाल उनके गृहमंत्रालय ने भारत रत्न के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम जिस प्रकार सुझाया है उससे श्री सिंह ने फिर संकेत दे दिये हैं कि वह हर पड़ाव और हर मोड़ से निकलने का उपाय जानते हैं।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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