वैदिक युग में विमान
हमारे देश में एक बड़ी विडंबना है कि जब भी कोई विद्वान प्राचीन भारत अथवा वैदिक युग में विज्ञान की बात करता है तो उस विचार पर नए सिरे सोच की बजाय उसे खारिज करने प्रतिक्रिया ज्यादा सुनाई देने लगती है। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के मुबंई में आयोजित 102 वे सम्मेलन में एक शोध-पत्र को बांटे जाने को लेकर कुछ ऐसा ही विवाद सामने आया है। मुद्दा यह था कि विज्ञान कांग्रेस में शोधकर्ता जे आनंद बोडास और अमेय जाधव ने एक पर्चा बांटा,जिसमें दावा किया गया कि 7000 वर्ष पहले महर्षि भारद्वाज ने पूरा एक ‘वैज्ञानिक शास्त्र‘लिखा है,जिसमें भारत में विमान होने के प्रमाण मिलते हैं। इस पर्चे से विज्ञान की दुनिया में खलबली मच गई और अमेरिका अंतरिक्ष ऐजेंसी नासा तक ने विरोध दर्ज करा दिया। इस शोध-पत्र को विज्ञान को गुमराह कर देने का माध्यम तक ठहरा दिया गया। हालांकि यह अच्छी बात रही कि कुछ चंद भारतीय वैज्ञानिकों ने भी प्राचीन विज्ञान के याथार्थ को सामने लाने पर जोर दिया। जरूरत भी इसी बात की है कि प्राचीन विज्ञान के यथार्थ को आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर कसकर उसके अंतिम निष्कर्ष निकालें जाएं,जिससे उनकी वैज्ञानिक प्रामाणिकता सिद्ध हो सके ?
प्राचीन विज्ञान को मिथक और रूपक कहने वाले विज्ञानियों और वामपंथी बौद्धिकों से मैं पूछना चाहता हूं कि वैश्विक साहित्य में महज 50-60 साल पहले लिखी गईं क्या ऐसी गल्प कथाएं हैं,जिनमें कंप्युटर,रोबोट,इंटरनेट फेसबुक जैसी हकीकतों को रूपकों और मिथकों में पेश किया गया हो ? उनके बाहरी व भीतरी कल-पूर्जों की बनाबट और उनकी कार्यप्रणाली का विवरण हो ? जवाब है,नहीं ? क्योंकि लेखक की परिकल्पना केवल आविष्कार के रूप में सामने आ चुके उपकरणों की ही काव्यात्मक अथवा गधात्मक विवरण प्रस्तुत करने की क्षमता हैं,जो वस्तु अस्तिव में है ही नहीं उसकी कल्पना रचनाकार नहीं कर पाता ? ऋषि भारद्वाज द्वारा लिखित जिस ‘वैमानिक शास्त्र‘ का आनंद बोडास ने अपने शोध-पत्र में हवाला दिया है,उसमें विमान की केवल कल्पना मात्र नहीं है,बल्कि उसके निर्माण,उपयोग और कुशलतापूर्वक संचालन की विधियों का भी उल्लेख है। इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है कि न तो पुरानी हर वस्तु व्यर्थ होती है और न ही हर नई चीज अच्छी होती है। प्राचीन विज्ञान यदि हमें कोई आधार-स्त्रोत देकर नए उपकरणों के आविष्कार के लिए अभिप्रेरित करता है तो उस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि बाबा रामदेव ने पतंजलि योग सूत्र और आयुर्वेद के श्लोक खंगालकर ही योग और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धती को ऐलौपेथी के समकक्ष खड़ा किया है। आज पूरी दुनिया उनका लोहा मानने को विवश हो रही है। लिहाजा उत्साही वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने की बजाय,उन्हें प्राचीन विज्ञान के उपलब्ध सूत्रों से अर्थ और संदेश तलाशने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। याद रहे जर्मनियों ने अपनी प्राचीन वैज्ञानिक विरासत के आधार पर ही ज्यादातर नए उपकरणों का आविष्कार किया है। गोया कि विज्ञान के क्षेत्र में किसी भी पक्ष का अतिवाद उचित नहीं है। विज्ञान कांग्रेस में जिन वैज्ञानिक उपलब्धियों का जिक्र आया है,उस पर भी नजर डालना यहां प्रासंगिक होगा।
ताजा वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी तय किया है कि रामायण काल में वैमानिकी प्रौद्योगिकी इतनी अधिक विकसित थी, जिसे आज समझ पाना भी कठिन है। रावण का ससुर मायासुर अथवा मयदानव ने भगवान विश्वकर्मा (ब्रह्मा) से वैमानिकी विद्या सीखी और पुष्पक विमान बनाया। जिसे कुबेर ने हासिल कर लिया। पुष्पक विमान की प्रौद्योगिक का विस्तृत व्यौरा महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित पुस्तक ‘यंत्र-सर्वेश्वम्’ में भी किया गया था। वर्तमान में यह पुस्तक विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इसके 40 अध्यायों में से एक अध्याय ‘वैमानिक शास्त्र’ अभी उपलब्ध है। इसमें शकुन, सुन्दर, त्रिपुर एवं रूक्म विमान सहित 25 तरह के विमानों का विवरण है। इसी पुस्तक में वर्णित कुछ शब्द जैसे ‘विश्व क्रिया दर्पण’ आज के राड़ार जैसे यंत्र की कार्यप्रणाली का रूपक है।
नए शोधों से पता चला है कि पुष्पक विमान एक ऐसा चमत्कारिक यात्री विमान था, जिसमें चाहे जितने भी यात्री सवार हो जाएं, एक कुर्सी हमेशा रिक्त रहती थी। यही नहीं यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से स्वमेव अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था। इस तथ्य के पीछे वैज्ञानिकों का यह तर्क है कि वर्तमान समय में हम पदार्थ को जड़ मानते हैं, लेकिन हम पदार्थ की चेतना को जागृत करलें तो उसमें भी संवेदना सृजित हो सकती है और वह वातावरण व परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने में सक्षम हो सकता है। रामायण काल में विज्ञान ने पदार्थ की इस चेतना को संभवतः जागृत कर लिया था, इसी कारण पुष्पक विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेने की विलक्षणता रखता था। तकनीकी दृष्टि से पुष्पक में इतनी खूबियां थीं, जो वर्तमान विमानों में नहीं हैं। ताजा शोधों से पता चला है कि यदि उस युग का पुष्पक या अन्य विमान आज आकाश गमन कर लें तो उनके विद्युत चुंबकीय प्रभाव से मौजूदा विद्युत व संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी। पुष्पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था इसने विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो, मसलन जिसके हाथ में विमान को संचालित करने वाला रिमोट हो। शोधकर्ता भी इसे कंपन तकनीक (वाइब्रेशन टेकनोलाजी) से जोड़ कर देख रहे हैं। पुष्पक की एक विलक्षणता यह भी थी कि वह केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ही उड़ान नहीं भरता था, बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आवागमन में भी सक्षम था। यानी यह अंतरिक्षयान की क्षमताओं से भी युक्त था।
रामायण एवं अन्य राम-रावण लीला विषयक ग्रंथों में विमानों की केवल उपस्थिति एवं उनके उपयोग का विवरण है, इस कारण कथित इतिहासज्ञ इस पूरे युग को कपोल-कल्पना कहकर नकारने का साहस कर डालते हैं। लेकिन विमानों के निर्माण, इनके प्रकार और इनके संचालन का संपूर्ण विवरण महार्षि भारद्वाज लिखित ‘वैमानिक शास्त्र’ में है। यह ग्रंथ उनके प्रमुख ग्रंथ ‘यंत्र-सर्वेश्वम्’ का एक भाग है। इसके अतिरक्त भारद्वाज ने ‘अंशु-बोधिनी’ नामक ग्रंथ भी लिखा है, जिसमें ‘ब्रह्मांड विज्ञान’ (काॅस्मोलाॅजी) का वर्णन है। इसी ज्ञान से निर्मित व परिचालित होने के कारण विमान विभिन्न ग्रहों की उड़ान भरते थे। वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण (सेक्शंस) पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। इस ग्रंथ की भाषा वैदिक संस्कृत है।
वैमानिक-शास्त्र में चार प्रकार के विमानों का वर्णन है। ये काल के आधार पर विभाजित हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में रखा गया है। इसमें ‘मंत्रिका’ श्रेणी में वे विमान आते हैं जो सतयुग और त्रेतायुग में मंत्र और सिद्धियों से संचालित व नियंत्रित होते थे। दूसरी श्रेणी ‘तांत्रिका’ है, जिसमें तंत्र शक्ति से उड़ने वाले विमानों का ब्यौरा है। इसमें तीसरी श्रेणी मंे कलयुग में उड़ने वाले विमानों का ब्यौरा भी है, जो इंजन (यंत्र) की ताकत से उड़ान भरते हैं। यानी भारद्वाज ऋषि ने भविष्य की उड़ान प्रौद्योगिकी क्या होगी, इसका अनुमान भी अपनी दूरदृष्टि से लगा लिया था। इन्हें कृतक विमान कहा गया है। कुल 25 प्रकार के विमानों का इसमें वर्णन है।
तांत्रिक विमानों में ‘भैरव’ और ‘नंदक’ समेत 56 प्रकार के विमानों का उल्लेख है। कृतक विमानों में ‘शकुन’, ‘सुन्दर’ और ‘रूक्म’ सहित 25 प्रकार के विमान दर्ज हैं। ‘रूक्म’ विमान में लोहे पर सोने का पानी चढ़ा होने का प्रयोग भी दिखाया गया है। ‘त्रिपुर’ विमान ऐसा है, जो जल, थल और नभ में तैर, दौड़ व उड़ सकता है।
उड़ान भरते हुए विमानों का करतब दिखाये जाने व युद्ध के समय बचाव के उपाय भी वैमानिकी-शास्त्र में हैं। बतौर उदाहरण यदि शत्रु ने किसी विमान पर प्रक्षेपास्त्र अथवा स्यंदन (राॅकेट) छोड़ दिया है तो उसके प्रहार से बचने के लिए विमान को तियग्गति (तिरछी गति) देने, कृत्रिम बादलों में छिपाने या ‘तामस यंत्र’ से तमः (अंधेरा) अर्थात धुआं छोड़ दो। यही नहीं विमान को नई जगह पर उतारते समय भूमि गत सावधानियां बरतने के उपाय व खतरनाक स्थिति को परखने के यंत्र भी दर्शाए गए हैं। जिससे यदि भूमिगत सुरंगें हैं तो उनकी जानकारी हासिल की जा सके। इसके लिए दूरबीन से समानता रखने वाले यंत्र ‘गुहागर्भादर्श’ का उल्लेख है। यदि शत्रु विमानों से चारों ओर से घेर लिया हो तो विमान में ही लगी ‘द्विचक्र कीली’ को चला देने का उल्लेख है। ऐसा करने से विमान 87 डिग्री की अग्नि-शक्ति निकलेगी। इसी स्थिति में विमान को गोलाकार घुमाने से शत्रु के सभी विमान नष्ट हो जाएंगे। इस शास्त्र में दूर से आते हुए विमानों को भी नष्ट करने के उपाय बताए गए हैं। विमान से 4087 प्रकार की घातक तरंगें फेंककर शत्रु विमान की तकनीक नष्ट कर दी जाती है। जाहिर है,विमान-शास्त्र लेखक की कोरी कल्पना नहीं हो सकती है।