नितिन गडकरी का नाम सुनते ही ही लगता है कि एक सादगी पूर्ण जीवन शैली को अपनाकर देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बनाने वाले एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की बात हो रही है। सचमुच सामाजिक न्याय और समानता के लिए जिस डगर को अपने राजनैतिक सफर के लिए नितिन गडकरी ने चुना उसने उन्हें ऊंचाईयां दीं, और वह भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल रहे। यह श्री गडकरी की बौद्घिक क्षमताओं और समय के अनुकूल निर्णय लेने की कार्यशैली का ही चमत्कार है कि लोग उनके ‘विजन’ को समझते हैं और उन्हें अपना नेता मानते हैं। तभी वह भारतीय राजनीति में टिक पाये हैं, अन्यथा यह वह देश है जहां राजनीति की गलियां बड़ी फिसलन भरी हंै, और यदि आपका पैर भूल से भी एक बार फिसल गया तो फिर उस पायदान पर कितने लोग लटक जाएंगे, ये आप भी नही जानते। इसलिए राजनीति में अपना स्थान बनाना और उसे बनाये रखना सचमुच बहुत बड़ी चुनौती है।…और इस चुनौती को श्री गडकरी ने हृदय से स्वीकार किया, उन्होंने अपनी सफलता के सोपानों को चूमकर इतिहास लिखा।। बस यही कारण है कि आज इतिहास उन्हें बड़ी निकटता से देख रहा है, और वह इतिहास से सीधे बात कर रहे हैं।
27 मई 1957 को नागपुर में जन्मे श्री गडकरी एम. कॉम विधिक स्नातक, डी.बी.एस. किये हैं। 1976-77 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता बने और इंदिरा गांधी द्वारा लागू की गयी आपातकाल की स्थिति का विरोध करने लगे। यहीं से उनके राजनैतिक जीवन का शुभारंभ हुआ। 1979 में वह विदर्भ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सचिव बने, और 1980 में भी इसी पद पर दोबारा चुने गये। 1981 ई. में वह भाजयुमो की नागपुर शहर ईकाई की युवा मोर्चा के अध्यक्ष बनाये गये। जबकि 1985-86 में नागपुर भाजपा के सचिव बनाये गये। इसके पश्चात 1988-89 में उन्हें नागपुर भाजपा ईकाई का महासचिव बनाया गया। 1989 ई. में वह महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए नागपुर से चुने गये। इसके पश्चात 1992-93 में श्री गडकरी को महाराष्ट्र भाजपा का महासचिव बनाया गया। 1995-99 में वह महाराष्ट्र में लोक निर्माण विभाग के मंत्री रहे। 1999-2004 में उन्होंने महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व बड़ी सफलता से निर्वाह किया। 1995-99 में उन्होंने एक अन्य सराहनीय कार्य किया और ‘‘महाराष्ट्र राज्य सडक़ मार्ग विकास निगम’’ की स्थापना कर उसके संस्थापक अध्यक्ष बने। इसी काल में वह ‘माइनिंग पॉलिसी इम्पलीमेंटेशन कमेटी’ महाराष्ट्र सरकार के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ-साथ ‘नेशनल रूरल रोड डवलपमेंट कमेटी भारत सरकार’ के चेयरमैन भी रहे। भारत सरकार ने उस काल में उनकी प्रतिभा का सदुपयोग करते हुए उन्हें ‘रिव्यू कमेटी ऑफ सी.पी. डब्ल्यू.डी. भारत सरकार’ का चेयरमैन बनाया, जबकि महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें उसी समय ‘मैट्रो पोलिस ब्यूटीफिकेशन कमेटी’ का चेयरमैन बनाया।
इन सब दायित्वों ने श्री गडकरी की बहुमुखी प्रतिभा को मुखरित होने और अपना चमत्कार दिखाने का अच्छा अवसर प्रदान किया। श्री गडकरी ने भी समय को पहचाना और उसे आगे की ओर से (समय के सिर पर आगे की ओर बाल होने कहे जाते हैं) पकड़ लिया। इन सारी जिम्मेदारियों में सफल रहे गडकरी की प्रतिभा ने उन्हें एक नई परंतु अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी ‘गढ़’ ‘कर’ दी। अब वह भाजपा के विशाल ‘गढ़’ के ‘गढ़’ ‘करी’ (महान शिल्पकार) बनकर उभरे।
2004 में गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तो कई लोगों को उनके इस रूप में प्राकट्य पर बड़ा आश्चर्य हुआ। इन लोगों को लगा कि पार्टी के लिए गडकरी का चयन शुभ संकेत नही है। परंतु गडकरी ने उनकी शंका आशंकाओं को निर्मूल सिद्घ कर दिया और पार्टी अध्यक्ष रहते उन्होंने पार्टी को वह लाइन दी जो उसे केन्द्र में पुन: सत्तासीन कराने में सहायक बनी। वास्तव में जिस समय उन्हें पार्टी का नेतृत्व मिला था, उस समय पार्टी लोकसभा चुनावों में मिली ‘पराजय’ के घावों को सहला रही थी। उसे उस समय फिर से उठना था और आगे चलकर फिर मंजिल तलाशनी थी। इसके लिए आवश्यक था कि एक अच्छा ‘नाविक’ उसे मिलता। गडकरी ने पार्टी की इस मानसिकता और स्थिति को समझा और वह लग गये, पार्टी को ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का पुराना स्वरूप उपलब्ध कराने में।
उन्होंने ‘इंडिया विजन 2025’ दिया। जिसमें यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाकर एक ऐसे भारत की कल्पना की गयी जो समृद्घ, सुदृढ़ और सर्व सामथ्र्य युक्त हो और जो विश्वगुरू बनने की सभी अपेक्षाओं पर खरा उतर सकता हो। इस ‘विजन’ में ‘इंडिया शाइनिंग’ और ‘फील गुड’ की अव्यावहारिकता को बड़ी सावधानी से दूर कर दिया गया और एक ‘दिव्य भारत’ ‘द्युतिमान भारत’ की नई तस्वीर गढ़ी गयी। इस ‘दिव्य भारत’ ‘द्युतिमान भारत’ में एक साथ सारा हिंदुत्व समाविष्ट था, और भाजपा को पुन: सत्तासीन करने की एक पूरी की पूरी संकल्पना इसके तार-तार में पिरो दी गयी थी। उस संकल्पना के प्रत्येक तार से एक कुशल शिल्पकार झांक रहा था और उसका नाम था-नितिन गडकरी। जिसके आलोचकों के लिए अब अनिवार्य हो गया था कि वे उन्हें अब भारत का ‘नूतन गढक़री’ (आधुनिक शिल्पकार) कहने लगे थे।
गडकरी की योजना के चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में फिर से आत्मविश्वास लौटने लगा और पार्टी देखते ही देखते फिर खड़ी होने लगी। भाजपा के आलोचकों का कहना था कि पार्टी जिन मुद्दों पर (राम मंदिर निर्माण, धारा 370 को हटाना और समान नागरिक संहिता लागू कराना) चुनाव जीतकर आयी थी उन्हें ही पीछे छोडक़र वह अपने समर्थकों और मतदाताओं के साथ भी अपघात कर चुकी थी। इस पर नितिन गडकरी ने बड़ी सावधानी से काम लिया और अपने ‘विजन 2025’ में ऐसा रंग घोला कि लोग 2004 को भूलकर धीरे-धीरे 2025 की ओर देखने को प्रेरित हुए।
भाजपा ने नितिन गडकरी की नूतन तस्वीर का रहस्य समझा और यही कारण रहा कि जब वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी नही रहे तो भी उनका मान सम्मान पार्टी में यथावत रहा। पिछले चुनाव में पार्टी के लिए जो ‘मोदी लहर’ बनी उसमें नितिन की योग्यता भी काम आयी। उन्होंने जिस प्रकार की नीतियों की बुनियाद अपने अध्यक्षीय काल में रखी उसमें विकास एक महत्वपूर्ण मुद्दा था जो पार्टी को कथित साम्प्रदायिकता के स्तर से तो हटाता ही था, साथ ही उसे प्रगतिशील भी दिखाता था। इसलिए मोदी ने इस विकास के नारे को पहले गुजरात में और फिर जब राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया तो लोगों को अच्छा लगा और बीजेपी ने ‘इतिहास रच दिया।’
भाजपा ने इतिहास रचा, जहां यह सच है वहीं उसे किसी ने इतिहास रचने के लिए प्रेरित भी किया और अपना सक्षम नेतृत्व भी दिया, बस उसी व्यक्ति को हम नितिन गडकरी के रूप में जानते हैं।
2014 के मिशन में मिली सफलता में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। भाजपा के कई नेता ‘मोदी लहर’ में प्रभाव शून्य हो गये-परंतु जिन लोगों ने मोदी लहर में भी अपनी चमक बनाये रखी उनमें नितिन गडकरी एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में दृष्टिगोचर हुए। नागपुर संभाग में लोगों ने भाजपा से अधिक अपने जननेता को पसंद किया और भाजपा ने भी देख लिया कि गडकरी जमीन से जुड़े हुए नेता हैं, उनके अपने पैर हैं और वह उधारी बैशाखियों पर चलकर राजनीति करने वाले नेता नही हैं। उन्होंने भाजपा को हवाई राजनीति करने वाले उन लोगों की गिरफ्त से बाहर किया जो केवल ‘फीलगुड’ के सहारे चुनाव जीतने की ‘यथास्थितिवादी’ स्थिति से ही चुनाव जीतना चाहते थे।
चुनाव जीतने के पश्चात मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें सडक़ परिवहन एवं जहाजरानी का मंत्रालय दिया गया। वास्तव में यह मंत्रालय उन्हें किसी ने दया का पात्र समझकर नही दिया है, अपितु उनकी योग्यता को देखकर दिया गया है।
वह एक कर्मठ नेता हैं, कुशल राजनीतिज्ञ हैं, और पार्टी की उठापटक से दूर रहकर भी समय पर अपनी गोटियां चलने में माहिर हैं। वह चतुर खिलाड़ी हैं पर किसी को अपनी चतुरता से घायल करने के पक्षधर नही हैं, हां, यदि कोई शत्रु कहीं से छिपकर वार करता है तो उसके होश ठिकाने लगाने की क्षमता उनमें अवश्य है। वह किसी भी प्रकार की उग्रता के पक्षधर नही है, परंतु अपने हितों और अधिकारों के लिए लडऩे के लिए वह प्रत्येक व्यक्ति को एक हथियार देना चाहते हैं-आत्मविश्वास का। उनके ‘अंत्योदय’ का रहस्य यही है और इस अंत्योदय में वह किसी प्रकार का तुष्टिकरण या आरक्षण करके किसी नये सामाजिक वितण्डावाद को पैदा करने के पक्षधर नही हैं। वह अवसरों को अपने अनुकूल बनाना जानते हैं, इसलिए अवसर ही उन्हें खोजते हैं, और उन्हें नमस्कार करते हैं। नमो युग में भी अपनी अनिवार्यता और स्वीकार्यता स्थापित किये रखने में सफल रहे नितिन ने अपने व्यवहार और कार्यशैली से यही सिद्घ किया है कि मर्यादित और शांत रहो-पुरस्कार अवश्य मिलेगा।
निगाहें पड़ ही जाती हैं कामिलों पर जमाने की।
छुपा रहता है कहीं ‘अकबर’ फूल पत्तियों में निहां होकर।।