किरण के आने से रोचक हुई जंग

सुरेश हिन्दुस्थानी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वैसे तो भाजपा पूरी तरह से इस बात को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रही थी कि राज्य में नई सरकार उनकी ही पार्टी की बनेगी, कुछ संदेह था तो वह देश की प्रथम आईपीएस महिला किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने के बाद दूर हो गया। ऐसा भाजपा को संभवत: लगने लगा है। भाजपा में किरण बेदी के शामिल होने से ऐसा लगने लगा है कि एक नई ‘किरणÓ का अभ्योदय हुआ है, जो किसी न किसी रूप में भाजपा को मदद ही करेगी।

दिल्ली में चुनाव की तारीखें घोषित होने के साथ ही राजनीतिक गलियारों में ये सवाल जोर पकड़ रहे थे कि भाजपा किसके सहारे अरविंद केजरीवाल को चुनौती देगी। पहले शाजिया इल्मी और फिर किरण बेदी। किरण बेदी के भाजपा में प्रवेश ने भले ही दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हलचल मचा दी हो और इसे भाजपा का अचरज भरा फैसला माना जा रहा हो, लेकिन यह सही समय पर लिया गया सही निर्णय है।

दिल्ली में शायद ही कोई हो जो किरण बेदी को न जानता हो। ईमानदारी से भरे सरकारी नौकरी से सामाजिक कार्यकर्ता और अब भाजपा के साथ जुडऩे के उनके सफर में ढेरों उपलब्धियां हैं। भाजपा के इस कदम को सात फरवरी को होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को घेरने के रूप में देखा जा रहा है। बेदी और केजरीवाल दोनों ही अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की ‘टीमÓ के प्रमुख चेहरे रहे हैं। और यह संयोग है कि दोनों ही चेहरे अब एक-दूसरे के सामने हैं। हालांकि भाजपा ने बेदी को पार्टी ने औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से इंकार किया है लेकिन उन्हें इस पद के प्रमुख दावेदारों में शामिल होने का संकेत जरूर दिया है। चुनाव से ऐन पहले भाजपा में किरण बेदी के प्रवेश  ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को फिलहाल सांसत में डाल दिया है। किरण बेदी को मुख्यमंत्री बनाया जाए  या कोई और चेहरा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले, यह फैसला लेने का अधिकार पार्टी का संसदीय दल लेगा। लेकिन किरण बेदी का प्रवेश निश्चित रूप से भाजपा के चुनाव अभियान को गति देगा।

खुद किरण बेदी ने कहा वह मिशन मोड में हैं और वह दिल्ली को स्थाई सरकार देने आई हैं। ईमानदार और दबंग महिला अधिकारी की छवि वाली किरण बेदी के खाते में कई उपलब्धियां हैं। देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के तेवर पहली बार उस समय देखने को मिले जब दिल्ली में यातायात आयुक्त रहते पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नो पार्किंग में खड़ी कार को क्रेन से उठवा दिया था। इस घटना के बाद उनका नाम ‘क्रेन बेदीÓ पड़ गया। 1994 में उन्हें उनकी बेहतरीन सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। यह सम्मान समाज सेवा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है। उन्होंने हमेशा ही भ्रष्टाचार के विरोध में देश की महिलाओं में जोश भरा और देश को एक नई दिशा दी। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले चेहरे को अगर भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतारती है तो यह राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि दिल्ली के मतदाताओं को भी एक योग्य उम्मीदवार चुनने का अवसर मिलेगा। उन्होंने अपनी शासकीय नौकरी का केवल इस बात को लेकर त्याग कर दिया, क्योंकि उपराज्यपाल की सिफारिश के बावजूद दिल्ली पुलिस कमिश्नर न बनाए जाने से आहत हो गईं थी। कारण यह था कि किरण बेदी के कनिष्ठ अधिकारी को आयुक्त बना दिया गया। इस पूरे मामले में राजनीतिक प्रभावों का पुट दिखाई दिया। परंपरा के विरुद्ध हुआ यह निर्णय भी किरण बेदी की राह को नहीं रोक सका। और अपना स्वाभिमान जाग्रत रखते हुए उन्होंने दिसंबर 2007 में सेवानिवृत्ति से पहले ही पुलिस की नौकरी का परित्याग कर दिया।

किरण बेदी को भाजपा में शामिल होने के फैसले को मीडिया राजनैतिक नजरिए से देख रहा है। लेकिन यह निर्णय मातृशक्ति और महिला सशक्तीकरण का सम्मान है। किरण बेदी भले ही राजनैतिक चेहरा न हों लेकिन वह राजनीति की अच्छाई और बुराइयों से अच्छी तरह परिचित हैं। वह नरेन्द्र मोदी के कामकाज से प्रभावित हैं और उनसे ही प्रेरणा लेकर उन्होंने भाजपा का दामन थामा है। आज राजनीति में भी अच्छे दिनों की दरकार है। भाजपा का उद्देश्य राजनीति के जरिए समाजसेवा है। ऐसे में किरण बेदी जैसे लोगों की ही जरूरत है। भाजपा में किरण बेदी के आने से दिल्ली की चुनावी जंग और रोचक हो गई है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की जनता से धोखाधड़ी का क्या होगा। कांग्रेस ने दिल्ली के मतदाताओं को निराश किया, वहीं आम आदमी पार्टी सरासर छल किया। इसे लेकर मतदाताओं का गुस्सा भीतर ही भीतर खदबदा रहा है। और यह नरेन्द्र मोदी के विजय रथ को आगे बढ़ाने में मददगार होगा।

दिल्ली राज्य में जनता ने कांगे्रस और आम आदमी पार्टी की सरकार को काम करते देखा है। कांगे्रस ने दिल्ली की जनता का गुस्सा देखा और विधानसभा चुनाव में उसको मटियामेट कर दिया। इसके बाद देश भर में हुए चुनावों ने भी कांगे्रस को निराश ही किया है। इससे कहा जा सकता है कि कांगे्रस की हालत में कोई परिवर्तन आने वाला नहीं है। दिल्ली में किए गए तमाम सर्वे भी इसी बात को उजागर करते दिखाई देते हैं कि दिल्ली में भाजपा फिर से सबसे बड़े दल के रूप में आएगा और आम आदमी पार्टी दूसरे नम्बर की पार्टी बनेगी। कांगे्रस की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उसके पास कोई भी आशावान नेता नहीं है। जहां तक राहुल गांधी की बात है तो उनका जादू न तो पहले कभी चला है और न आगे चलने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी यह मानी जा सकती है कि वह वरिष्ठता को वह आदर नहीं देते जिसके कांगे्रस के वरिष्ठ नेता हकदार माने जाते हैं।

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