ऋषि चरक और चरक संहिता
चरक संहिता
उगता भारत ब्यूरो
आयुर्वेद का एक मूल ग्रन्थ है। यह प्रसिद्ध ग्रंथ संस्कृत भाषा में है, जिसके रचयिता आचार्य चरक थे। यह आयुर्वेद के सिद्धांत का पूर्ण ग्रंथ है। ‘चरक संहिता’ में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों के भी उल्लेख है।
रचनाकाल
‘चरक संहिता’ में पालि साहित्य के कुछ शब्द मिलते हैं, जैसे- ‘अवक्रांति’, ‘जेंताक'[१], ‘भंगोदन’, ‘खुड्डाक’, ‘भूतधात्री'[२]। इससे ‘चरक संहिता’ का उपदेश काल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व निश्चित होता है। इसका प्रतिसंस्कार कनिष्क के समय 78 ई. के लगभग हुआ। ‘त्रिपिटक’ के चीनी अनुवाद में कनिष्क के राजवैद्य के रूप में चरक का उल्लेख है। किंतु कनिष्क बौद्ध था और उसका कवि अश्वघोष भी बौद्ध था, पर ‘चरक संहिता’ में बुद्धमत का जोरदार खंडन मिलता है। अत: चरक और कनिष्क का संबंध संदिग्ध ही नहीं असंभव जान पड़ता है। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में मत स्थिर करना कठिन है।
चरक
मुख्य लेख : चरक
आचार्य चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। वे आयुर्वेद के ख्यातिप्राप्त विद्वान् थे। उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया। चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई-लिखाई के योग्य बनाया। ‘चरक संहिता’ आठ भागों में विभाजित है और इसमें 120 अध्याय हैं। इसमें आयुर्वेद के सभी सिद्धांत हैं और जो इसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है। यह आयुर्वेद के सिद्धांत का पूर्ण ग्रंथ है।
काय चिकित्सा ग्रंथ
आयुर्वेद के उपलब्ध ग्रन्थों में प्राचीनतम ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ हैं। इनमें से ‘चरक संहिता’ काय चिकित्सा प्रधान और ‘सुश्रुत संहिता’ शल्य चिकित्सा प्रधान है। विदेशी विद्वान् भी ‘चरक संहिता’ को आदर की दृष्टि से देखते हैं। फ़ारसी और अरबी में इसके अनुवाद शताब्दी में हुए बताये जाते हैं।[३]
भाग तथा अध्याय
‘चरक संहिता’ की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। यह गद्य और पद्य में लिखी गयी है। इसे आठ स्थानों (भागों) और 120 अध्यायों में विभाजित किया गया है। ‘चरक संहिता’ के आठ स्थान निम्नानुसार हैं[४]-
1. सूत्रस्थान – इस भाग में औषधि विज्ञान, आहार, पथ्यापथ्य, विशेष रोग और शारीरिक तथा मानसिक रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है।
2. निदानस्थान – आयुर्वेद पद्धति में रोगों का कारण पता करने की प्रक्रिया को निदान कहा जाता है। इस खण्ड में प्रमुख रोगों एवं उनके उपचार की जानकारी प्रदान की गयी है।
3. विमानस्थान – इस अध्याय में भोजन एवं शरीर के सम्बंध को दर्शाया गया है तथा स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन के बारे में जानकारी प्रदान की गयी है।
4. शरीरस्थान – इस खण्ड में मानव शरीर की रचना का विस्तार से परिचय दिया गया है। गर्भ में बालक के जन्म लेने तथा उसके विकास की प्रक्रिया को भी इस खण्ड में वर्णित किया गया है।
5. इंद्रियस्थान – यह खण्ड मूल रूप में रोगों की प्रकृति एवं उसके उपचार पर केन्द्रित है।
6. चिकित्सास्थान – इस प्रकरण में कुछ महत्वपूर्ण रोगों का वर्णन है। उन रोगों की पहचान कैसे की जाए तथा उनके उपचार की महत्वपूर्ण विधियाँ कौन सी हैं, इसकी जानकारी भी प्रदान की गयी है।
7. तथा 8. साधारण बीमारियाँ – ये अपेक्षाकृत छोटे अध्याय हैं, जिनमें साधारण बीमारियों के बारे में बताया गया है।
साभार