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पृथ्वी पर जो असंभव है, अंतरिक्ष में वह संभव है|
पृथ्वी से 9 गुना बड़ा 54 गुना भारी हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे भारी ग्रह शनि जो सूर्य से 140 करोड़ किलोमीटर दूर है |उसे लगभग 30 साल लग जाते हैं सूर्य का एक चक्कर लगाने में… लेकिन शनि ग्रह की विचित्रता विशालता का सिलसिला यहीं नहीं रुकता… एक और खास घटनाक्रम इस गैस के गोले रूपी ग्रह को और अधिक अनूठा अमूल्य बना देता है | शनि ग्रह पर प्रतिवर्ष हजारों टन चमकदार उत्कृष्ट हीरे की बरसात होती है| पांचवी क्लास में हमने आपने पढ़ा था हीरा ,कार्बन का ही एक अपररूप है| शनि ग्रह के वायुमंडल में मीथेन गैस के बादल होते हैं, ठीक है ऐसे ही बादल जैसे हमारी पृथ्वी पर होते हैं लेकिन हमारी पृथ्वी के बादल जल से निर्मित होते हैं (यही परम संतोष दायक है हमारी पृथ्वी पर अमृत रूपी जल बरसता है यदि हम उसकी महत्ता को समझे )| अंतरिक्ष की विद्युत जब शनि ग्रह के बादलों से टकराती है मीथेन गैस के अणुओं से कार्बन मुक्त होते हैं| शनि ग्रह के वायुमंडल दबाव से यह कारबन के अनु ग्रेफाइट जैसे पदार्थ में बदल जाते हैं |
यह graphite की अति उच्च तापमान दबाव से हीरे में तब्दील हो जाता है| फिर 1 सेंटीमीटर से लेकर 1mm मिलीमीटर तक आकार के हीरे शनि की सतह पर बरसने लगते हैं| सचमुच प्रभु की महिमा निराली है इतना विचित्र ब्रह्मांड उन्होंने रचाया है! प्लेनेटरी साइंटिस्ट बताते हैं सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति पर भी इसी तरह हीरो की वर्षा होती है|
मनुष्य बड़ा लालची है स्वार्थी प्रकृति का बलात दोहन करता है यही कारण है प्रभु ने पृथ्वी के गर्भ में हीरो को छुपाया है ना कि शनि की तरह हीरो की वर्षा की व्यवस्था की है| पृथ्वी पर यदि हीरो की वर्षा होती तो संपन्न व शक्तिशाली अंतरिक्ष की महाशक्ति कहलाने वाले देश अंतरिक्ष को भी बांट लेते| मनुष्य लड़कर बहुत पहले ही
समूल नष्ट हो जाता | दुनिया की महाशक्ति यदि उनका बस चले तो बृहस्पति शनि जैसे ग्रहों को भी अपना उपनिवेश बना ले लेकिन मनुष्य की पहुंच वैज्ञानिक संसाधन क्षमता औकात से अभी यह ग्रह दूर है|
आर्य सागर खारी✍✍✍