चीफ जस्टिस रमना आखिर किस संविधान के प्रति जवाबदेह छोड़कर जा रहे हैं न्यायपालिका को
किस संविधान के लिए जवाबदेह छोड़ कर जा रहे हैं न्यायपालिका को। CJI रमना बता कर जाएँ। एक संविधान में दूसरा संविधान दे कर जा रहे हो, यही सत्य है।
चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा था कि न्यायपालिका केवल संविधान के प्रति जवाबदेह है लेकिन रिटायर होने से पहले बता कर जाइए कि किस संविधान के लिए न्यायपालिका को जवाबदेह छोड़ कर जा रहे हैं आप।
सच तो ये हैं कि आपके समय में तो “एक देश दो निशान” शुरू हो गए लगते हैं जो मूल संविधान में दूसरे संविधान को भी न्यायपालिका मान्यता दे रही है। संविधान तो एक है मगर हर जज अपनी तरह से व्याख्या कर नया संविधान लिख रहा है जैसे कल ही दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह ने भारत की संसद द्वारा बनाये गए विवाह की 21 वर्ष की आयु के कानून को और पोक्सो एक्ट को एक झटके में ख़तम कर कह दिया कि मुस्लिम लड़की की शादी के लिए शरीया लागू होगा। ऐसा ही एक फैसला पंजाब & हरियाणा हाई कोर्ट ने दिया था।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट में तलाक -ए -हसन के एक नए केस में आपकी अदालत के जज उस पर कोई तवज्जो देने को तैयार नहीं लगते। ट्रिपल तलाक सरकार से ख़तम कराया अदालत ने तो क्या हर काम सरकार करेगी। एक महिला हजारों महिलाओं का दर्द ले कर आपके पास गई है मगर आप उसकी मसले को PIL भी मानने को तैयार नहीं हैं। जबकि हिन्दुओं के सबरीमाला मंदिर की पवित्रता भंग करने में देर नहीं लगाई थी।
ये कैसा संविधान चला रही है अदालत कि 32 साल की सजा पाए लालू यादव को जमानत दे कर घर में बिठा रखा है जिससे वो अराजकता का राज कायम कर Proxy Rule चला रहा है।
न्यायपालिका ने आपके समय काल में एक मज़हब द्वारा चलाये जा रहे अपने ही कानून को रोकने की कोशिश नहीं की जिसमे प्रधानमंत्री तक के सर को कलम करने का फतवा जारी कर दिया था इमाम बरकती ने और आज नारे लगा कर सर तन से जुदा किये जा रहे हैं। ऐसे संविधान को जवाबदेह न्यायपालिका दे कर जा रहे हैं जो उनके खिलाफ खामोश रहती है।
आपने देश के बहुसंख्यक समुदाय की रक्षा तो ताक पर रख कर ऐसे समुदाय को वरीयता दी जो देश को पुनः विभाजित करने के लिए आवाज़ उठा रहा है। आपकी न्यायपालिका और आप बंगाल और देश के अन्य राज्यों पर हुए बहुसंख्यक समुदाय हिन्दुओं पर हुए हमलों पर खामोश रहे मगर लखीमपुर खीरी में कथित किसानों के हुए दंगे में एक केंद्रीय मंत्री के बेटे को हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी जेल में रख कर ही माने।
न्यायपालिका ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हर गाली देने की छूट दी और 2 वर्ष तक कथित किसानों के और CAA विरोधी आन्दोलनों को जारी रखने दिया चाहे कितनी ही हिंसा क्यों ना की गई हो और फिर उत्तर प्रदेश में दंगाइयों के साथ खड़ा हो गया सुप्रीम कोर्ट।
ऐसा करके देश में अराजकता को बढ़ाने का काम किया गया और राजद्रोह और देशद्रोह जैसे कानूनों को ख़तम करने की जिद से देश में बगावत हो सकती है, इससे कांग्रेस के एजेंडे को आगे बढ़ाया जिसने इन कानूनों को सत्ता में आने पर ख़तम करने की घोषणा की थी।
आपने तो, एक तरह से, हर उस व्यक्ति को “गांधी” कह दिया जिसने देश और राज्य (भारत) के खिलाफ षड़यंत्र करने का अपराध किया, ये कह कर कि ये कानून अंग्रेजों ने गांधी के खिलाफ बनाया था जो अब सार्थक नहीं है। तो क्या कोई अपराध देश के खिलाफ हो ही नहीं सकता अब।
जस्टिस रमना के जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कॉलेजियम सिस्टम पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इन सवालों का मतलब समझने की जरूरत है।
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#साभार: सुभाष चन्द्र
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