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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत … 40 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

अध्यात्म ज्ञान की आवश्यकता

आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो।
जो भी मिले दीन दुखी जग में सबकी पीड़ा को हरते चलो।।

सम्मान मिले- अपमान मिले मत ध्यान लगाओ इसमें कभी।
भगवान की देन समझ करके, संतोष मनाओ उसमें सभी ।।
दो दिन का जग का मेला है, बस धर्म पुण्य ही करते चलो …
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

जब तक स्वांसों में स्वांस रहे, जीवन की उत्तम आस रहे।
जीवन की उत्तम खेती में मिली ओ३म नाम की खाद रहे।।
जब तक जग में रहने आए ओ३म नाम के मोती चुनते रहो ….
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

जो लोग जपा करते हैं , उसे मृत्यु – बंधन से छूटन को।
अनमोल संपदा पाने को और हीरे – मोती भी लूटन को।।
वही छूटते मृत्यु – बंधन से, चिंतन उनका भी करते चलो ….
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

जिनकी इच्छा है जरा – मृत्यु से मेरी मुक्ति हो जाए ।
मुझे भव – बंधन से मुक्ति मिले हर मौज किनारा हो जाए।।
उनकी इस न्यारी मस्ती को ह्रदय में अपने धरते चलो …..
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

हर दिन की दोनों संध्या में उस ब्रह्म का ध्यान लगाया करो।
जिसने हमें जग में भेजा है, कुछ बातें उससे किया करो।।
जिसने स्वांसों का साज दिया नि:स्वार्थ मित्रता करते चलो….
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

मृत्यु बंधन से छूटन को जो उस ब्रह्म का ध्यान लगाते हैं।
उन पर आनंद बरसता है और परब्रह्म को भी पा जाते हैं।।
गीता में जो कृष्ण कहते उसका अभिनंदन करते चलो ….
आनंद यदि पाना है तो भगवान की भक्ति करते चलो…..

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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