1971 की भारत-पाक जंग , बांग्ला देश का उदय और भारत की मुक्ति वाहिनी सेना

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अंकित सिंह

26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की घोषणा हुई थी। हालांकि, उसके लिए आजादी की लड़ाई आसान नहीं थी। 9 महीने के संघर्ष के बाद 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेशी को आजादी मिली। 26 मार्च 1971 को जब बांग्लादेश की घोषणा हुई उसके बाद से पाकिस्तान का पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू हुआ।

15 अगस्त 1947 को भारत ने आजादी तो पाई। लेकिन इसके साथ ही भारत ने बंटवारे का भी दंश झेला। भारत को बांट कर पाकिस्तान बनाया गया। वर्तमान में बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। वर्तमान में जो पाकिस्तान है उसे पश्चिमी पाकिस्तान कहा जाता था। हालांकि, पूर्वी पाकिस्तान ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत 1952 में ही कर दी थी जब पाकिस्तानी हुकूमत ने उसके ऊपर उर्दू को आधिकारिक भाषा के तौर पर थोपने की घोषणा की थी। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को बंगला संस्कृति एवं भाषा के प्रति प्यार था और वह किसी हाल में पाकिस्तानी हुकूमत के इस फैसले को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थे। पाकिस्तानी हुकूमत का यह फैसला पूर्वी पाकिस्तान के लिए अस्मिता का सवाल बन गया था। भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर ही बांग्लादेश के लिए मुक्तिसंग्राम की शुरुआत हुई। पूर्वी पाकिस्तान ने 23 सालों तक उत्पीड़न और नरसंहार की हिंसक घटनाओं को झेला था। पाकिस्तान के हुक्मरान वहां बर्बरता करते हैं। यही कारण था कि पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश के संस्थापक पिता शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान के शासन को निरंतर विलाप और बार-बार रक्तपात का पर्याप्त बता दिया था।

26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की घोषणा हुई थी। हालांकि, उसके लिए आजादी की लड़ाई आसान नहीं थी। 9 महीने के संघर्ष के बाद 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेशी को आजादी मिली। 26 मार्च 1971 को जब बांग्लादेश की घोषणा हुई उसके बाद से पाकिस्तान का पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू हुआ। इसे पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवाद के आंदोलन को कुचलने की शुरुआत के तौर पर भी देखा जाता है। इसी दौरान आंदोलन के प्रणेता शेख मुजीबुर रहमान को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। पूर्वी पाकिस्तान के लोगो पर अत्याचार बढ़ गया। इसके परिणाम स्वरूप लाखों बांग्लादेशी भारत भागकर पहुंचे। पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में उन्होंने शरण ली। भारत पर आर्थिक बोझ बढ़ने लगा। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके भोजन और आश्रय के लिए सहायता की अपील थी।

बांग्लादेश की लड़ाई में मुक्ति वाहिनी सेना ने अदम्य साहस का परिचय दिया। भारतीय सेना की मदद से मुक्ति वाहिनी सेना ने बांग्लादेश को आजाद कराने में कामयाबी हासिल की। मुक्ति वाहिनी सेना में बांग्लादेश के सैनिक, अर्ध सैनिक और नागरिक भी शामिल थे। हालांकि यह बात भी सत्य है कि भारत बांग्लादेश की लड़ाई में शुरू से शामिल नहीं था। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान के इस आंदोलन को भारत वैचारिक तौर पर समर्थन कर रहा था। पाकिस्तान इसी से बौखलाया हुआ था। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना की ओर से भारतीय हितों पर हमला किया गया। इसके जवाब में भारत ने भी पलटवार किया और यही कारण रहा कि भारत औपचारिक तौर पर इस युद्ध में कूद गया। हालांकि इससे पहले भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ से पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई करने के लिए कहा था लेकिन सैम मानेकशॉ ने इंकार कर दिया था। भारत को इसका फायदा हुआ और भारत ने परिस्थितियों के हिसाब से युद्ध के लिए अपनी तैयारी भी कर ली थी। भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों तक जंग चली थी। इस जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली थी और वैश्विक मानचित्र पर एक स्वतंत्र देश बांग्लादेश सामने आया था।

16 दिसंबर 1971 को जब यह युद्ध खत्म हुई थी तब पाकिस्तान ने 92000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की वह तस्वीर है आज भी इतिहास के पन्नों में एक अहम अध्याय के रूप में शामिल है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह यह पहला मौका था जब 92 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत के हस्तक्षेप के बाद ही 13 दिनों के अल्पावधि में भी एक राष्ट्र का निर्माण हुआ। भारत ने इसे मान्यता भी दे दी। कुल मिलाकर कहें तो भारत इस नए मुल्क के निर्माण का सबसे बड़ा सूत्रधार था। जब बांग्लादेश बना तो शेख मुजीब इसके पहले राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने। इसके साथ ही बंगलादेश के संविधान में सेकुलर शब्द जोड़ा गया। यह दक्षिण एशिया का ऐसा पहला मुस्लिम बहुसंख्यक देश था जहां सेक्युलरिज्म को संविधान में अंकित किया गया था।

भारत के बाद दुनिया के कई अन्य मुल्कों ने भी बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार कर लिया था। हालांकि पाकिस्तान को ऐसा करने में 2 साल का लंबा वक्त लग गया। भारत 16 दिसंबर 1971 के बाद से इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाता है। हम कह सकते हैं कि बांग्लादेश को बनाने में भारत की भूमिका इसलिए भी प्रशंसनीय है क्योंकि आज बांग्लादेश अपेक्षाकृत एक समृद्ध देश है जो कि कम विकसित देश से अब विकासशील देशों में शामिल हो चुका है। माना यह भी जाता है कि बांग्लादेश का निर्माण कराना भारत की अब तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत में से एक हैं ।

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