1947 में भारतीय राष्ट्रभाषा के विषय पर चर्चा हो रही थी …. जब पाकिस्तान ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बनाया था….उस समय दक्षिण भारत से एक व्यक्ति सामने आया जिसका नाम था अन्ना दुरई … वह एक communist थे…उनका ज्यादा जन-आधार नहीं था…परन्तु उनके एक वक्तव्य ने उनको इतना जन-आधार दिया कि वो पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध हो गए….उनकी मांग थी की संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाया जाए….नेहरु ने कहा की “संस्कृत is an outdated language” अन्ना दुरई ने कहा कि कैसे *“कौन सा ऐसा घर हैं जिसमे गायत्री महामंत्र नहीं बोला जाता.. या कौन सा ऐसा भारतीय है जो ॐ बोलना या उच्चारण न जानता हो”*..
परन्तु नेहरु और गाँधी ने उनकी मांग को सिरे से नकार दिया ।
संस्कृत के नाम पर सभी राज्य एकजुट हो जाते क्योंकि सभी भाषायें संस्कृत से ही निकली हैं । यदि संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाया जाता तो मुख्यतः दो लाभ होते.
1. समस्त भारत से भाषा और प्रांतवाद का मुद्दा समाप्त हो जाता । संस्कृत के राष्ट्रभाषा होने के कारण आप किसी भी प्रदेश में जाकर सबसे संस्कृत में
connect हो सकते थे । आज की तरह कई भाषाओँ के कारण कोई समस्या न रहती ।
2. यदि संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाया जाता तो समस्त स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती और सभी अपने वेदों,उपनिषदों, पुराणों, धर्मग्रन्थों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ जाते… पढ़ पाते…और समझ पाते की सनातन धर्म और अन्य पैशाचिक धर्मो की शिक्षाओं में क्या अंतर है । सनातन धर्म और अन्य धर्मो की शिक्षाओं में क्या- क्या भेद हैं
आज एक ओर प्रांतवाद और भाषावाद के नाम पर लोग लड़ रहे हैं तो दूसरी और 99.99% मुस्लमान अपने धर्मग्रन्थ उर्दू अरबी फारसी में पढ़ कर सब समझ जाते हैं कि उन्हें क्या क्या करना है ?? और 99.99% हिन्दू कभी अपने धर्म-ग्रन्थों को छू भी नहीं पाते । अन्य मजहब वालों को इतना पता होता है हिन्दू धर्म के बारे में जितना हिन्दुओं को ही पता नहीं होता ।
कृपया संस्कृत से जुड़े व इसके माध्यम से हम स्वतः ही अपने धर्मग्रंथों से जुड़ जाएंगे । अपने धर्मग्रंथों से जुडेंगे तो स्वतः वसुधैव कुटुम्बकम की भावना हमारे अंदर विकसित हो जाएगी ।
सोशल मीडिया से साभार