परमेश्वर की विलक्षण शक्ति
आर्त्त लोग भजते ईश्वर को , जिज्ञासु भी उसका यजन करें,
अर्थी अर्थात कामना वाला भी उसका नियम से भजन करे।
ज्ञानी भी उसको भजता है , पर उसका भजन सबसे उत्तम,
परमात्मा है सब कुछ जग में- वह ऐसा मानकर भजन करे।।
ब्रह्म प्रकृति में रहकर भी प्रकृति से रहता दूर सदा,
अर्थी जन समझ नहीं पाते जड़ पूजा में भटकते रहते सदा।
आर्त्त लोग भी उसके सही रूप को कभी नहीं समझ पाते ,
ज्ञानी जन उसको सही समझें, कर पाते सच्ची भक्ति सदा।।
हमारा आत्मा ‘अहंकार’ के साथ लगता मिलन को है आतुर,
अहंकार से दूर करें इसको , ऐसा लक्ष्य बनाता मानव चतुर।
जब प्रकृति से दूर रहे आत्मा तो संबंध बनाती है अज से,
आता आनंद अतुलित उसको, अनादि सत्ता से जुड़ कर।।
जब कोई अनादि सत्ता को, साधना के बल पर पा जाता,
तब गीता के रहस्य पर वह अपना अधिकार जमा पाता।
गाये गीत ज्ञानी गीता के और गा- गाकर ज्ञान में रमण करे,
गीतों के गायन से ध्यान बढ़े, फिर जीवन को सफल करे ।।
सत्ता अर्थात अस्तित्व अपने शुद्ध रूप में होती ‘अस्ति’ है,
‘सत्ता’ से ‘बनने’ के रूप में आने लगे तो होती ये ‘भवति’ है।
होता ‘अस्ति’ का ‘भवति’ रूप ‘विभूति’ है राज गहरा इसका,
मिट्टी ‘अस्ति’ है मटका ‘भवति’ , जो बना वही ‘विभूति’ है ।।
सूर्य, चंद्रमा और हिमालय – हैं विलक्षण शक्ति विधाता की,
इनमें झलक मिल जाती मन को अनुपम विश्व विधाता की ।
इनकी झांकी से खुश होकर मन , कुछ अनुमान लगाता है ,
ये झांकी मन को बतलातीं , है डगर कौन सी विधाता की ?
यह ‘सान्त’ दिखाई देती हैं , पर संबंधी हैं अखिलेश्वर की ,
यह ‘अनंत’ के साथ बंधी रहतीं, देतीं सूचना जगदीश्वर की।
ये परत खोलतीं उस महानायक की जिसने सारा जगत रचा,
मन इनसे पता लगा लेता , शक्ति कैसी है परमेश्वर की ?
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य