भारत का जब-जब अगस्त का महीना आता है तब तब कई खट्टी मीठी कड़वी यादें लेकर आता है। 1947 में कांग्रेस के कारण हुए देश विभाजन की याद अभी भी कितने ही लोगों के मस्तिष्क में उमड़ घुमड़ कर पैदा होने लगती है। आज भी कई चेहरे हमारे बीच में ऐसे हैं जिन्होंने विभाजन की विभीषिका को नजदीक से देखा था। ऐसे चेहरे भी अभी बहुत हैं जो गांधी नेहरू की अक्षमता और नाकामयाबी को आज भी खुले दिल से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि उन्होंने 1947 में देश विभाजन के समय ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके। सिर्फ सरकार या सत्ता शीर्ष पर बैठ जाने से कोई बड़ा नहीं होता , बड़ा होता है अपने कार्य से।
जब देश के आजाद होने की घड़ी आई तो उस समय कई चेहरे ऐसे थे जो प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे। जनसाधारण में इस बात को लेकर बहुत गहरी जिज्ञासा थी कि देश का पहला प्रधानमंत्री कौन होगा ? इसलिए १४ अगस्त। कांग्रेस के प्रदेशध्यक्षो से वोट लिये गए। इस पद के लिये तीन प्रार्थियों ने चुनाव लड़ा। सरदार पटेल,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद,आचार्य कृपलानी। सरदार पटेल को ११ वोट मिले, राजेन्द्र प्रसाद को २,आचार्य कृपलानी को १। फिर डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने सरदार पटेल के समर्थन में अपने को चुनाव से हटा लिया।
नेहरू ने तो चुनाव में भाग ही नही लिया तो वह कैसे प्रधान मन्त्री बन गये ? इसका सही जवाब गाँधी ने दिया। डॉक्टर दुर्गा दास एक हिंदुस्तान टाइमस के सम्पादक ने अपनी पुस्तक “फ़्रम कर्ज़न टू नेहरु” में इसका उत्तर दिया। दुर्गा दास ने गाँधी से प्रश्न किया जब नेहरू प्रधान मन्त्री पद का दावेदार भी नही था तो उसको आपने प्रधान मन्त्री क्यों बनाया सरदार पटेल को क्यों नही। गाँधी ने साफ़ साफ़ कहा “he was the only Englishman in our Camp”गाँधी के इस कथन से यह ही लगता है कि अंग्रेजों ने यह परिवर्तन अपने आदमी नेहरू को प्रधान मन्त्री के पद पर बैठा कर किया। गाँधी ने कोई अंग्रेज़ी हुकूमत को उखाड़ कर तो सत्ता प्राप्त नही की।
अंग्रेजों ने Transfer of Power किया था। अंग्रेजों ने गाँधी से कहा होगा हम पटेल के हाथ में नही नेहरू के हाथ में सत्ता सौंपेंगे। राजगोपालाचार्य ने सरदार पटेल के मृत्यु पर कहा था। सरदार पटेल इतने जल्दी चले गये उनको तो प्रधानमन्त्री बनना था। इस कथन से यह ही लगता है सरदार पटेल ने नेहरू को स्वीकार नही किया था सिर्फ़ अंग्रेज जब तक सत्ता हस्तांतरण करते है, उतने समय के लिये नेहरू रहे उसके बाद वे ही बनेंगे।
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