गीता मेरे गीतों में , गीत 36 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)
सार तत्त्व
तर्ज :- कह रहा है आसमां कि यह समा …….
धुआं दिखाई दे कहीं तो मान लो वहां आग है।
जन मस्ती में गाते दिखें तो मान लो वहां फाग है।।
जल को जीवन मानते सब , उसमें रस भगवान हैं।
जल के बिन जीवन नहीं ,जीवन का जल आधार है।।
नाम वासुदेव मेरा मैं प्राणियों में बस रहा।
हृदय में बैठा आत्मा हूँ, मेरा अलग ही ठाट है।।
आदित्यों में विष्णु हूँ मैं ज्योतियों में मैं ही सूर्य ।
मरुद – गण में मैं ही हूं मरीचि सर्वत्र मेरा राज है ।।
नक्षत्रों में मुझे कहते योगी ‘चंद्रमा’ बड़े प्यार से ।
चांदनी से महक जाता , मैंने लगाया बाग है ।।
‘सामवेद’ वेदों में हूँ मैं और देवों में मैं ही इंद्र हूँ।
इंद्रियों में मन हूँ मैं और सर्वत्र मेरा वास है ।।
प्राणियों में ‘चेतना’ हूँ और रुद्रों में शंकर हूँ मैं ।
मेरी चेतना से चेतनित हैं जो भी दिखे संसार में।।
हैं परमात्मा के नाम सारे कृष्ण गिनाते जा रहे ।
अर्जुन की ग्रंथि खोलने को दिया यह व्याख्यान है ।।
श्रीकृष्ण बोले – सुन ले ,अर्जुन ! तू पूरी मेरी बात को।
सार क्या है सृष्टि का, तुझे इस पर लगाना ध्यान है।।
राक्षसों में कुबेर हूँ मैं वसुओं में हूँ अग्नि बना।
पर्वतों में मेरु मैं हूँ, सबका मुझ में वास है।।
‘बृहस्पति’ मुझको समझ जितने पुरोहित विश्व के।
सेनाधिकारी ‘स्कंद’ मैं हूँ , करता जग विश्वास है ।।
जलाशयों में मैं समुद्र माना , हैं जितने योगी विश्व के।
ऋषियों में भृगु कहाता , मेरा ओ३म प्यारा नाम है।।
यज्ञों में जप – यज्ञ हूँ मैं , हिमालय भी मुझको कहा ।
सब वृक्षों में पीपल बताया , मेरे लिए जो खास है।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य