24 जनवरी पर विषेषः-
मृत्युंजय दीक्षित
बसंत पंचमी का पर्व हिंदू धर्म का एक बहुत ही महान पर्व है। इस पर्व का हिंदू संस्कृति व धर्म में विषेष महत्व है। यह पर्व अपने आप में कई मनोहारी प्राकृतिक परिवर्तनों को तो संजोए हैं ही साथ ही यह पर्व अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए भी प्रसिद्ध है। बसंत पंचमी पर जहां ऋतु परिवर्तन हांेता है वहीं धर्मप्राण जनता मां सरस्वती की आराधना करती है। वहीं अन्य लोग वीर हकीकत राय व रामसिंह कूका को नमन करते है। साहित्य प्रेमी जनता इस पर्व को निराला जयंती के रूप मेें भी मनाती है। बसंत पंचमी पर्व पर होलिका दहन के लिए स्थान- स्थान पर हांेलिकाएं भी स्थापित हो जाती हैं जिससे यह संकेत प्राप्त होता है कि अब होली का पर्व आने वाला है व ग्रीश्म ऋतु दस्तक देने वाली है। बसंत पंचमी पर प्रकृति का दृष्य बड़ा ही मनोहारी हो जाता है व चारों ओर पीले फूलों की सुंदर छटा सी छा जाती है। बसंत पंचमी के दिन बसंत स्वरूप कामदेव एवं रति का अबीर- गुलाल और पुश्पों से पूजन करने से गृहस्थ जीवन में विषेष सुख षान्ति प्राप्त होती है।
बसंत पंचमी का क्या महत्व है और इस दिन क्या- क्या होता है एक संक्षिप्त चर्चाः-
बसंत पंचमी के दिन भगवान श्री विष्णु, श्री कृष्ण- राधा व विद्या की देवी मां सरस्वती का पूजन किया जाता हैे। यह दिन माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व ऋतुओं के राजा का पर्व है। यह बसंत ऋतु से प्रारम्भ होकर फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की पंचमी तक रहता है। एक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम ने माताष्षबरी के झूठे बेर खााये थे। इस उपलक्ष्य में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को जीवन की ष्शुरूआत का दिन भी माना जाता हैै। यह दिन खुषियों के आगमन का दिन है। बसंत पंचमी के साथ ही खेतों में गेहूं की बालियां सोने का रूप ले लेती है। रंग- बिरंगे फूल खिलने लगते हैें। इस दिन माँ सरस्वती के अलावा भगवान विष्णु व कामदेव की भी पूजा की जाती है। यह सभी छह ऋतुओं में सर्वाधिक मनमोहक होती है। बसंत पंचमी के दिन माता शारदा का पूजन भी विषेषष्शुभ रहता है। इस दिन छोटी कन्याओें को पीले मीठे चावल का भोजन कराया जाता है। मां शारदा और कन्याओं को पूजन कराने के बाद कुंवारी कन्याओं को पीलें रंग के वस्त्र आभूषण सहित निर्धनों व विप्रों को दान देने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख षांति की वृद्धि होती है। इस दिन पीले फूलों से षिवलिंग की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। यह अबूझ मुहूर्त होता है। बसंत पंचमी के दिन सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्यों का विधि विधान पूर्वक आयोजन किया जा सकता है।
बसंत पंचमी के दिन पतंगबाजी का उत्सव भी मनाया जाता है। जिसमें देष- विदेष के लोग भाग लेते हैं। पतंग उड़ाने की परम्परा की ष्शुरूआत चीन देष में हुई थी। सरस्वती पूजाः- बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का जन्मोत्सव होने के कारण भी इस दिन का विषेष महत्व बढ़ जाता है। इस दिन कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ धरती पर आते हैं। प्रेम इस सृष्टि का आधार हैं। प्रेम के इस देवता के स्वागत में भी बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। समस्त ज्ञान- विज्ञान, विद्या, कला, बुद्धि, मेघा, तर्कषक्ति एवं वाणी की स्वाभिमानी होने के कारण मां सरस्वती अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। मां सरस्वती को ”श्री” नाम से भी जाना जाता है। मां सरस्वती की कृपा से मां सरस्वती की कृपा से जीवों की बुद्धि का विकास होता है। मां सरस्वती का बीज मंत्र ”ऐं” है जिसके उच्चारण मात्र से ही बुद्धि विकसित होती है। महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वषिष्ठ एवं विष्वामित्र आदि ने भी मां सरस्वती की आराधना की थी।बसंत पंचमी के दिन देष के लगभग सभी प्रांतों के स्कूलों,ं कालेजों और विष्विद्यालयों आदि शैक्षणिक संस्थाओं में मां सरस्वती की विधिवत पूजा की जाती है। बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु व परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए मां सरस्वती की विषेष कृपा की आवष्यकता होती है।
बसंत पंचमी के दिन वीर हकीकत राय केे बलिदान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म के हितों की रक्षा के उद्देष्य से अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले बालक धर्मवीर वीर हकीकत राय का जन्म पंजाब के सियालकोट में भागमल खत्री के यहां हुआ था। हकीकत राय के माता- पिता धर्मप्रेमी थे। कहा जाता है कि वीर हकीकत राय को तत्कालीन मौलवियों ने धर्म परिवर्तन करने के लिए अनेक प्रकार के लालच दिए थे। लेकिन उसने इन प्रलोभनों को मानने से इंकार कर दिया था।हकीकत के माता- पिता ने परिस्थितियों वष धर्म परिवर्तन करने की बात कही थी लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। हकीकत ने पूरी वीरता के साथ कहा कि मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ हूं और इसी धर्म में अपने प्राण त्यागूंगा । हकीकत ने स्पष्ट कहाकि व्यक्ति का शरीर मरता है आत्मा नहीं। अतः मृत्यु के भय से मंै अपने पवित्र हिंदू धर्म का त्याग नहीं करूंगा। अंततः बसंत पंचमी के दिन धर्मप्रेमी बालक का सिर काट लिया गया। अंग्रेजों की सत्ता की चूलें हिला देंने वाले महान क्रांतिकारी रामसिंह कूका का जन्म दिन भी बसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है। क्रांतिकारी राम सिंह कूका का जन्म बसंत पंचमी के दिन पंजाब के लुधियाना जिले के भैरणी गांव में हुआ था।आपके पिता का नाम जस्सा सिंह व मां का नाम सदन कौर था। रामसिंह की माँ बचपन से महापुरूषों की गाथाएं एवं ष्शास्त्रों की रचनाएं सुनाती थीं।मात्र 20 वर्ष की अवस्था में ही राम सिंह कूका महाराज रणजीत सिंह की सेना में ष्शामिल हो गये थे। सन्1839 में राजा की मृत्यु होने पर वे गांव में वापस आ गये। तब उनके अनुयायिओं ने कूका सम्प्रदाय की नींव डाली। इस सम्प्रदाय के सभी लोग सूर्याेदय के पूर्व जागकर स्नानकर धवल वस्त्र पहनते थे। फिर धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करते थे। कूका सम्प्रदाय ने सामाजिक कुरीतियों यथा लड़कियां बेचना ,बाल विवाह, भ्रूण हत्या का विरोध किया। कूका सम्प्रदाय ने अंग्रेजी सत्ता से जमकर लोहा लिया। विदेषी वस्तुओं का बहिष्कार करके स्वदेषी को अपनाने में जोर दिया। रामसिंह कूका व उनके अनुयायी स्वधर्म के प्रचार में जुट गये। उनके मत वाले नामधारी सिख कहलाते थे। रामसिंह कूका का एक और कार्य गौहत्या बंद करवाना हो गया। अंग्रेजों को भला यह कैसे स्वीकार होता। स्वाधीनता तो हमारा धर्म है। गाय तो हमारी श्रद्धा का केन्द्र है । उनका वध देष को सहन न था। पंजाब के 22 जिलो में शस्त्र इकट्ठे किये जाने लगे। एक दिन मालेरकोटला नामक स्थान पर विद्रोह की लपटें उठनें लगीं। कूका समर्थकों व अंग्रेजों के बीच जमकर संघर्ष हुआ। भीषण संग्राम के बाद 68 कूकाओं को बंदी बना लिया गया। अंग्रेज डिप्टी कमिष्नर कावन ने उन्हें एक- एक करके तोप के सामने बांधकर उड़वा दिया। कूकाओं मेें अजीब साहस था। तोप के सामने उन्हें लाया जाता था। वे तोप के मंह को अपने सीने में लगवाते थे। पचासवां सेनानी तो मात्र 13 वर्ष का बालक था। रामसिंह कूका का बलिदान एक अविस्मरणीय घटना है।
बसंत पंचमी पर खान- पानः-
बसंत पंचमी का पर्व एक सुचारू मनपसंद भोजन व मिठाई खाने का भी दिन है। बंगाल मेें इस दिन मां सरस्वती की सभी षिक्षण संस्थाओं और मंदिरो तथा घरों में विषेष पूजा अर्चना होती है। बंगाल में मां सरस्वती को मां दुर्गा का सात्विक स्वरूप माना गया है। बंगाल में लोग बसंत पंचमी के दिन मीठा खना पसंद करते हैं। चावल में केसर, मेवा एवं चीनी मिलाकर उसे पकाते हैं। पुलाव की तरह का मीठा चावल लोंगों के घरों में बनता है।बूँदियां एवं लडडू माता को प्रसाद रूप में चढ़ाया जाता है। यह प्रसाद लोग एक- दूसरे को भेंट भी करते हैं। बिहार में लोग मां सरस्वती को खीर व मालपुए का भोग लगाते हैं। माता को पीले व केसरिया रंग की बूँदियां अर्पित करते हैं। बसंत पंचमी के दिन मीठा खने की परम्परा है। झारखंड में इस दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव मनाया जाता हैं । इस उत्सव की धूम में पूरा झारखंड उत्साहित रहता है। यहां पर लोग मां सरस्वती के साथ- साथ भगवान षिव की भी पूजा करते हैं। भक्तगण भगवान षिव को दूध से स्नान कराते हैंे। पीले रंग की मिठाईयों का भोग भी लगाया जाता है। पंजाब में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। पंजाबी लोग भी मीठा चावल खाते हैं। पंजाब में मक्के की रोटी और सरसोें का साग भी खाया जाता है। कहा जाता र्है कि पीला रंग ओज, ऊर्जा, सात्विकता एवं बलिदान का प्रतीक है। पीले रंग का भोजन करने का तात्पर्य यह है कि हमारे शरीर में ऊर्जा की वृद्धि हो, हम सात्विक बनें और स्वार्थ की भावना से उठकर राष्ट्रहित में बलिदान हेतु तत्पर रहें।