Categories
इतिहास के पन्नों से

काल का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता

“भूत का, भवत् का, भविष्यत् का सब ब्रह्माण्ड, इस ब्रह्माण्ड की सब अनगिनत वस्तुएँ, काल में ही यथास्थान रखी हुई हैं। काल का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता।”
*****
काले तपः काले ज्येष्ठं काले ब्रह्म समाहितम्।
कालो ह सर्वस्येश्वरो यः पितासीत् प्रजापतेः॥
–अथर्व०१६।५३।८
ऋषिः – भृगुः।
देवता – कालः।
छन्दः – अनुष्टुप्।
विनय – हरेक वस्तु अपने काल में ही होती है। जिस कार्य का, जिस बात का उचित काल नहीं आया है उसके लिए यत्न करना, उसकी आशा करना निरर्थक होता है, मूर्खतापूर्ण होता है। अतः हमें अपना हरेक कार्य उचित काल में ही करना चाहिये। हमें तप करना हो, ज्येष्ठत्व पाना हो या ज्ञान प्राप्त करना हो, चाहे कुछ करना हो, यह सब हमें कालानुसार ही करना चाहिये। देखो, परमेश्वर भी अपना सब-कुछ नियत काल में करते हैं। वे समयपालन में भी परम हैं, परिपूर्ण हैं। वे इस जगत् की उत्पत्ति के लिए अपना ज्ञानमय तप बिलकुल नियत काल में करते हैं, ज्येष्ठ हिरण्यगर्भ को नियत काल पर प्रादुर्भूत करते हैं और ब्रह्म (वेद) का प्रकाश भी सदा नियत काल आने पर करते हैं। कालरूप में ही ये भगवान् प्रजापति के भी पिता हैं। यह सब संसार बेशक सूर्यप्रजापति या हिरण्यगर्भ-प्रजापति से उत्पन्न हुआ है, किन्तु वे प्रजापति भी तो काल आने पर ही उत्पन्न हो सकते हैं। अतः उनके भी जनक ये काल परमेश्वर हैं। और केवल सृष्टि की यह उत्पत्ति ही नहीं, किन्तु सष्टि का प्रतिक्षण संचालन भी काल द्वारा ही हो रहा है। इस संसार का एक तिनका भी बिना काल आये नहीं हिल सकता। सचमुच काल ही सबका ईश्वर है। भूत का, भवत् का, भविष्यत् का सब ब्रह्माण्ड, इस ब्रह्माण्ड की सब अनगिनत वस्तुएँ, काल में ही यथास्थान रखी हुई हैं। काल का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता। अतः आओ, हम भी उस कालदेव की उपासना करें, हम देखें कि आज से उनके प्रतिकूल हमारा कभी कोई आचरण न होने पाये, और हमारा एक-एक कर्म, एक-एक चेष्टा उस कालदव की अनुमति पाकर ही हुआ करे।
शब्दार्थ – (काले) काल में, उचित काल में (तपः) तप, (काले) काल में (ज्येष्ठं) ज्येष्ठत्व और (काले) काल में ही (ब्रह्म) ज्ञान (समाहितं) रखा हुआ है। (ह) निश्चय से (कालः) काल (सर्वस्य) सबका (ईश्वरः) ईश्वर है (यः) जो कि (प्रजापतेः) सब प्रजा के उत्पादक हिरण्यगर्भ का भी (पिता) उत्पादक (आसीत्) होता है।
**********
स्रोत – वैदिक विनय। (कार्तिक २२)
लेखक – आचार्य अभयदेव।
प्रस्तुति – आर्य रमेश चन्द्र बावा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version