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भारत के स्वाधीनता आंदोलन के बारे में यह बात अब पूर्णतया सत्य साबित हो चुकी है कि यह एक क्रांतिकारी आंदोलन था और उस क्रांतिकारी आंदोलन से गांधी नेहरू या उनकी कांग्रेस का दूर-दूर तक भी कोई वास्ता सरोकार नहीं था। देश को आजादी मिली तो इसी क्रांतिकारी आंदोलन के कारण मिली थी। यह अलग बात है कि देश जब आजाद हुआ तो कांग्रेस के नेताओं ने देश के क्रांतिकारियों के साथ गहरा षड्यंत्र करते हुए सत्ता के साथ-साथ इतिहास भी हथिया लिया।
नेहरू के हाथ में भारत वर्ष की सत्ता इसलिए आई थी कि कांग्रेस ने १९४५ का केंद्रीय लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में “हम भारत का विभाजन कभी नही होने देंगे”के आश्वासन के साथ ५८ सीटें जीती थीं पर मुस्लिम लीग जिसने भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बनायेंगे की बात पर सभी ३० मुस्लिम सीटें जीती थीं। जब देश आजाद हुआ तो कांग्रेस को अपने इस वचन का ध्यान रखना चाहिए था, परंतु उसने ऐसा किया नहीं। सत्ता स्वार्थ की पूर्ति के लिए कांग्रेस ने देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया।
मुस्लिम लीग को पाकिस्तान की बागडोर इसी चुनावी नतीजे के चलते मिली। दिसम्बर १९४५ के चुनाव १९३५ के क़ानून के हिसाब से सम्पन्न हुवे थे। ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत यह सरकार बनती। पर १८ फ़रवरी १९४६ को बंबई, करांचि में हुए नौसेना विद्रोह फिर वायुसेना में पहुँचे विद्रोह जो आज़ाद हिंद सेना के सेनापतियों की सजा पर हुआ, ब्रिटिश सरकार ने २३ फ़रवरी १९४६ के दिन घोषणा कर दी कि हम भारत को आज़ादी प्रदान करेंगे। आप सैनिक लोग शांत हो जायें।
भारत को आज़ादी देने का यही एकमात्र कारण था ।जब ब्रिटिश संसद में India Indipendence Act पेश हुआ। ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने ने इस संदर्भ में कहा था कि हमें भारत को आजाद इसलिए करना पड़ा कि यहां की सेना हमारे विरोध में उतर आई थी और हमारे खिलाफ विद्रोही हो गई थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि भारत की विद्रोही सेना को संभालने की उनके पास कोई ताकत नहीं रह गई थी।
ब्रिटिश भारतीय सेना में यह विद्रोह पैदा हुवा वीर सावरकर -सुभाष चंद्र बोस व उनकी आज़ाद हिन्द फ़ौज के चलते। सुभाष बाबु ने वीर सावरकर के आज़ाद हिन्द फ़ौज के निर्माण में अमूल्य योगदान को अपने रेडीओ संदेश में देशवासियों को बताया व एटली ने भारत को आज़ादी देने का कारण सुभाष चन्द्र बोस व आज़ाद हिन्द फौज को बताया। देश को अंग्रेजों से मुक्ति दिलवाने में कांग्रेस,गाँधी व नेहरू का कोई योगदान नही है। कांग्रेस,गाँधी,नेहरू ने जिस प्रतिज्ञा के साथ देश का दिसंबर १९४५ का चुनाव जीता था कि हम देश का विभाजन कभी नही होने देंगे,इसीलिये उनको वोट मिले। पर उन्होंने अपने वचनो के विरुद्ध देश का विभाजन कर सत्ता का हस्तांतरण अपने हाथो में लिया।
नेहरू ने १६ अगस्त १९४७ को लाल क़िले से घोषणा की कि “हमने भारत की आज़ादी गाँधीजी के अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए प्राप्त की।”देश को तोड़ने वाले गाँधी को राष्ट्रपिता के सम्मान से सुशोभित किया व स्वतंत्रता दिलवाने वाले क्रांतिकारीयो पर हमला आरम्भ कर दिया कि वे विकृत मानसिकता वाले लोग थे। स्वाधीनता दिलाने वाले दो महान नायकों पर अन्याय करना आरम्भ किया। नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखा । उनका युद्ध अपराधी सुभाष बोस उनके युद्ध सहयोगी रुस में है। उसे दण्डित किया जाय। नेहरू का यह पत्र स्पष्ट करता है कि सुभाष बोस जीवित थे,रुस में थे। पर सुभाष बोस की मृत्यु हवाई दुर्घटना में हो गई है – कमीशन बैठा कर देश वसियों को यह ही समझाते रहे।
नेहरू वीर सावरकर पर गाँधी मृत्यु के बाद जान लेवा हमला करवाके मारने में बिफल होने के बाद उनको गाँधी हत्याकाण्ड में झूठे फँसाया। बाद में उनके अनुयायी वीर सावरकर जिसने कभी भी वो पत्र नही लिखा कि मैंने ग़लत किया। इस लिये मुझे माफ़ कर दे। सावरकर जी ने अपने जीवन काल में कभी भी ब्रिटिश सरकार से किसी प्रकार की माफी नहीं मांगी थी , पर उन पर ऐसे आरोप लगाए गए और निरंतर लगाए जाते रहे हैं।
जबकि ब्रिटिश सरकार ने उनको अंडमान जेल से निकालने के बाद भी रत्नगिरी जिले में १३ वर्ष ज़िला बन्दी बना कर रखा व भारतवर्ष में वीर सावरकर एक मात्र ऐसे राजनैतिक व्यक्ति थे जिन पर राजनीति नही करने का प्रतिबन्ध था। पूरे बिश्व में नेल्सन मंडेला से भी अधिक जेलबंदी या जिलाबंदी सावरकर रहे। इस त्याग को कलंकित करने के लिये नेहरू गांधी की कांग्रेस के लोग झूठा आरोप लगाते है कि सावरकर माफ़ी माँग कर जेल से बाहर आये।
ब्रिटिश सरकार के उनके लिखे पत्रों पर पर उनसे इतनी अधिक रुष्ट रहती थी कि उसने स्पष्ट रूप से यह कह दिया था कि अन्य कैदियों की भांति इन्हें रिहा नहीं किया जा सकता। ब्रिटिश सरकार सबसे अधिक वीर सावरकर से ही सशंकित रहती थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि सावरकर जेल से बाहर जाकर भी उनके लिए नई नई तरह की समस्याएं खड़ी करेंगे।यहा तक की अण्डमान में भी नही। सावरकर के साथी इसे भगा ले जायेंगे। कोई व्यक्ति जेल में रहता है तो उसको खाना भी दिया जाता है। रत्नगिरी ज़िले में ज़िला बन्दी रखते हुए उनको खाने के लिये जो पैसे दिये जाते उसको नेहरूवादी कहते है वे ब्रिटिश सरकार से पेन्शन लेते थे। १९१२ से गाँधी के मुस्लिम लीग के साथी मोहम्मद अली ने भारत विभाजन की आवाज़ उठा रखी थी कि उत्तर भारत मुसलमानो का दक्षिण भारत हिन्दुओं का। पर नेहरूवादी कहते है भारत विभाजन के लिए जिन्ना ने सावरकर से प्रेरणा ली।
जब तक सावरकर सुभाष पर नेहरू द्वारा किये गये अत्याचारों से उनको मुक्त नही किया जायेगा और यह स्पष्ट नहीं किया जाएगा कि देश को आजादी नेहरू गांधी की अहिंसा के कारण नहीं बल्कि सुभाष और सावरकर की क्रांति के कारण मिली थी तब तक देश की आजादी का इतिहास अधूरा है।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के संदर्भ में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि गाँधी की अहिंसा से तो देश का विभाजन हुआ व २० लाख हिन्दु इस रक्त रंजित विभाजन में शहीद हुए। आज़ादी के अमृत महोत्सव पर भारत सरकार से प्रार्थना है कि स्वतंत्रता के इतिहास से नौ सेना विद्रोह, India Independence Act, 1945 का निर्वाचन,देश का विभाजन आदि पाठ भी पढ़ाया जाय। जो जानबूझकर नही पढ़ाया जाता।
देश की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास के सच से अवगत कराना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।