तीसरा प्रश्न
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने देश के लोगों का आवाहन किया कि घर-घर तिरंगा फहराया जाए। इस पर कांग्रेसी नेतृत्व की ओर से जो प्रतिक्रिया आई वह उचित नहीं कही जा सकती। कांग्रेस के नेतृत्व का कहना था कि भारतीय जनता पार्टी और उसके मूल संगठन आरएसएस के द्वारा 1947 से तिरंगा क्यों नहीं फहराया था ?
यदि इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किया जाए तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि इस सब के लिए भी कांग्रेस के पाप ही जिम्मेदार हैं। पूरा देश भली प्रकार यह जानता है कि 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की सरकार ने नेशनल फ्लैग कोड संविधान में जोड़ दिया। इस कोड के अनुसार केवल सरकारी इमारतों पर ही तिरंगा फहराया जा सकता था । किसी प्राइवेट बिल्डिंग पर ऐसा करना सश्रम कारावास की सजा का हकदार बनाता था। आपको याद होगा कि कांग्रेस के ही सांसद नवीन जिंदल ने तिरंगे को अपनी फैक्ट्री जिंदल विजयनगर स्टील में फहराया था और उनके विरुद्ध तिरंगे को फहराने के अपराध में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट से नवीन जिंदल के साथ साधारण लोगों को भी झंडा फहराने का अधिकार वर्ष 2002 में प्राप्त हुआ था। अर्थात झंडा फहराने का अधिकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिया गया है । अन्यथा तो कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराने का अधिकार छीन लिया था। ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस से ही प्रतिप्रश्न किया जाना चाहिए कि क्या ऐसा जवाहरलाल नेहरू ने नहीं किया था ? हमें नहीं लगता कि कांग्रेस या कांग्रेस का कोई नेता इस प्रश्न का सीधा और सही उत्तर दे पाएंगे।
ऐसे में कई प्रश्न उठ कर सामने आते हैं जैसे जवाहरलाल नेहरू ने संविधान में संशोधन करके नेशनल फ्लैग कोड का अध्याय 1950 में संविधान में क्या जोड़ा नहीं था?
कांग्रेस वाले इसका जवाब दे सकते हैं क्या? इसका वास्तविक गुनाहगार कौन है स्वयंसेवक संघ है या कांग्रेस है?
कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष राहुल का यह कहना बिल्कुल सत्य है कि 1950 से लेकर 2002 तक स्वयंसेवक संघ ने तिरंगा नहीं फहराया था। लेकिन वास्तविकता यही है कि नेहरू के कारण भाजपा या उसका मूल संगठन आरएसएस झंडा नहीं फहरा पाए थे।
चौथा प्रश्न
क्या कांग्रेस इस्लाम के मतावलंबियों का तुष्टिकरण करके सदियों से इस्लाम के मानने वालों के लिए भारतवर्ष को सुविधा पूर्वक ,आसानी से गजवा- ए- हिंद बनाने में सहायक भूमिका नहीं निभा रही है?
कांग्रेस ने आक्रांताओं के उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपने देश के लोगों के साथ खुलकर छल कपट किया और अपने ही देशवासियों, शासकों की कमजोरी आक्रांताओं को दी। जैसे चीन से बात करनी हो, चाहे तुर्की से बात करनी हो, और चाहे पाकिस्तान से चोरी चोरी छुपे बात करनी हो। भारतवर्ष में हो रहे उस किसान आंदोलन का भी कांग्रेस ने समर्थन किया जिसमें खालिस्तानी आतंकवादी अपना खुला समर्थन दे रहे थे। देश के लोगों ने कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं के इस दौर आचरण को देखा समझा और परखा। कांग्रेस को अब यह समझ लेना चाहिए कि देश का जनमानस अर्थात मतदाता इस समय बहुत अधिक जागरूक है। वह प्रत्येक पार्टी की गतिविधि, सोच, मानसिकता और विचारधारा को भी अब परखने की स्थिति में आ गया है। वे दिन बीत चुके हैं जब कॉन्ग्रेस देश के मतदाताओं का मूर्ख बना लिया करती थी।
जब कांग्रेस ने सीएए के विरोध में शाहीन बाग दिल्ली में हो रहे आंदोलन का खुलकर समर्थन किया तो उसे भी देश के मतदाताओं ने गहराई से समझा। उसके बाद अब तक जितने भर भी देश में उपचुनाव या विधानसभा चुनाव हुए हैं, उन सब में कांग्रेस को देश के मतदाताओं ने अपने मत के माध्यम से यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि यदि वह देश विरोधी शक्तियों का समर्थन करेगी तो देश का मतदाता उसके साथ वही करेगा जिसकी वह पात्र है। यह बहुत ही दुखद तथ्य है कि कॉन्ग्रेस दिल्ली दंगों के पत्थरबाजों के साथ भी खड़ी दिखाई देती है और कश्मीर में हमारे सैन्य बलों पर पत्थरबाजी करने वाले लोगों की पीठ थपथपाते हुए दिखाई देती है।
याद रहे कोई भी बाहरी आतंकी, आक्रांता अथवा आक्रमण करने वाला देश भारत को हरा नहीं सकता बल्कि जो अंदर आस्तीन के सांप बैठे हैं, जो गद्दार हैं, उनकी वजह से ही भारत को झुकाया जा सकता है। ऐसे ही लोग जयचंद की श्रेणी में आते हैं। कांग्रेस जिस प्रकार की नीतियों को अपनाती रही है या अपना रही है वह निश्चय ही उसे देशद्रोहियों के साथ ले जाकर खड़ा करती है।
पांचवा प्रश्न
अकबर महान अथवा महाराणा प्रताप महान ?
हमारे इतिहास में प्रधानमंत्री नेहरू ने बहुत से तथ्यों को छिपाकर असत्य को भारतीय जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया। इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पढ़ाया गया। उनके इस आचरण से देश के जनमानस से हमारा ही गौरवपूर्ण इतिहास छुपाया गया। विदेशी आक्रमणकारी तुर्कों, मुगलों के इतिहास को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया गया जैसे उन्होंने भारत पर आक्रमण करके हम पर बहुत बड़ा उपकार किया था। बात यहीं तक नहीं रुकती है बल्कि इससे भी आगे जाती है कि बहुत ही निर्दई ,आतताई तुर्क और मुगल बादशाहों को इस प्रकार दिखाया गया है जैसे उनसे अधिक विनम्र, शालीन, प्रजावत्सल, देशभक्त और लोकतांत्रिक सोच वाला शासक कोई और हुआ ही नहीं है।
जिस महाराणा प्रताप ने अथवा उनके जैसे अनेक वीरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया अथवा सर्वोत्तम बलिदान दिया वे बलिदानी लोग यहां पर महान नहीं कहे जाते। लेकिन एक आक्रांता अकबर महान पढ़ाया जाता है।
उगता भारत समाचार पत्र के द्वारा तत्कालीन महामहिम राजपाल बाबू कल्याण सिंह जी के समक्ष राजस्थान भवन में महाराणा प्रताप को इतिहास की पुस्तकों में महान दर्ज किए जाने की मांग की थी। जिस पर महामहिम राज्यपाल ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और राजस्थान के पाठ्यक्रम में महाराणा प्रताप को महान शासक के रूप में पढ़ाया जाने लगा।
भारतीय इतिहास के संदर्भ में यह भी एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि यहां विदेशी आक्रमणकारियों के नाम से इतिहास के काल खंडों का विभाजन किया गया है। जैसे कि सल्तनत काल, मुगल काल और ब्रिटिश काल।
मोहम्मद बिन कासिम से लेकर महमूद गजनवी, गौरी , उसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक, बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, इब्राहिम लोदी, बाबर, अकबर, औरंगजेब, अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण ,खिलजी की विजय, मोहम्मद गौरी का पृथ्वीराज चौहान को हराना, तैमूर लंग का आना ,चंगेज खान का आक्रमण, बाबर, हुमायूं, जहांगीर, शाहजहां ऐसे पढ़ाए जाते हैं कि जैसे यही हमारे आका थे।
महाराणा प्रताप ,गुरु गोविंद सिंह, बंदा वीर बैरागी, शिवाजी, राजा भोज परमार( जिसने राजा सुहेलदेव के साथ बहराइच में खिलजी के भांजे सालार मसूद को मारकर उसकी 11 लाख की सेना गाजर मूली की तरह काटी थी) भारत माता के अपमान का बदला लिया था ।ये तथ्य इतिहास में नहीं पढ़ाए जाते। आताताईयों के अत्याचारों का इतिहास पढ़ाया जाता है। उनके द्वारा की गई लूटमार पढ़ाई जाती है। भारतीय सभ्यता संस्कृति को मिटाने के जितने क्रूर कार्य हो सकते थे, उन सभी के द्वारा किए गए ,जिन को पढ़ाया जाता है। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि इन विदेशी आक्रमणकारी शासकों को इस प्रकार पढ़ाया जाता है कि जैसे ये सभी आक्रांता नहीं थे, बल्कि बहुत अच्छे लोग थे और यह सब शांति और अमन का पैगाम लेकर के भारत में आए थे।
लाल किला हमारे हिंदू पूर्वजों का बनवाया हुआ, ताजमहल कभी तेजोमहालय मंदिर के नाम से जाना जाता था। यह भी वास्तव में एक हिंदू स्थापत्य कला का ही बेजोड़ नमूना है। कुतुब मीनार हमारे पूर्वजों की बनवाई हुई, कांग्रेस के शासनकाल में लिखे गए इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ये सब इस्लाम के मानने वालों ने बनवाई।
कांग्रेस के लोगो से प्रश्न है कि क्या सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक प्रसिद्ध खगोल शास्त्री वराह मिहिर की कर्मभूमि मिहरावली नही है? जिसको वर्तमान में महरौली कहा जाता है। यह भवन तथा इसके पास अन्य भवन भी उन्हीं के द्वारा तैयार किए गए हैं । ऐतिहासिक तथ्य, सत्य, निर्माण और स्थापत्य कला सभी यह बोलते हैं कि यह सभी भवन किले आदि भारतीय मूल के राजाओं ,सम्राट एवं लोगों के बनवाए हुए हैं।
क्रमश:
देवेन्द्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र