प्रधानमंत्री के द्वारा भूलवश नहीं जानकर नहीं लिया गया महर्षि दयानंद जी का नाम* आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक*
*आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक*
देश आजादी का 75 अमृत महोत्सव मना रहा था। जनता हर्षोल्लास से प्रफुल्लित थी ।घर घर तिरंगा लहराया जा रहा था। चौक चौराहे स्वतंत्रता दिवस के पर्व के रंग में सजे हुए थे। वही लाल किला के प्राचीर से ध्वजारोहण की तैयारी भी जोरों शोर से चल रही थी ।प्रतीक्षा थी आजादी के 75 अमृत उत्सव में कुछ नया संदेश देश के प्रधानमंत्री के द्वारा दिया जाएगा ।वही कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोग सपने सजाए बैठे थे कि आज लाल किला के प्राचीर से देश के लिए देश पर सर्वस्व निछावर करने वाले क्रांतिकारी देशभक्तों एवं स्वतंत्रता सेनानी सहित राष्ट्र नायकों का नाम लेकर राष्ट्र वासियों को संबोधित करेंगे।राष्ट्र अपने महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ होगा ।वही स्वराज स्वदेशी एवं स्वदेश के प्रथम उद्घोषक महर्षि दयानंद सरस्वती का भी नाम लिया जाएगा और उनके द्वारा प्रेरित क्रांतिकारियों का भी नाम लाल किला के प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री लेंगे । ऐसे आशा संजोए आर्य जगत् बैठा था।उस समय लोगों के ह्रदय पर कुठाराघात जैसा प्रतीत हुआ ।जब प्रधानमंत्री ने जहां महात्मा गांधी, विवेकानंद एवं ऋषि अरविंद सहित अनेकों लोगों का नाम लेकर के अपनी बात आरंभ की वही स्वतंत्रता के प्रथम उद्घोषक महर्षि दयानंद का नाम ना लिया और उससे भी कहीं ज्यादा आश्चर्य हुआ जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारियों को संरक्षण देने के लिए लंदन में इंडियाहाउस नाम की संस्था स्थापित करके क्रांतिकारियों का संरक्षण किया और मरने से पूर्व अपने वसीयतनामा में यह लिखा कि मेरी अस्थियां भारत में तब तक नहीं ले जाए ।जब तक भारत स्वतंत्र ना हो और वर्षों उनकी अस्थियां लंदन के संग्रहालय में रखी रही। उस अस्थियों को नरेंद्र मोदी ने ही लाया था ।लेकिन अचानक उस समय हुआ कि उस श्यामजी कृष्ण वर्मा को भुल गये यह संदेह पैदा करता है कि कहीं इनके दिलो-दिमाग में यह तो नहीं की महर्षि दयानंद के शिष्यों का बलिदान को नजरअंदाज करके आर एस एस की नजरिया में वाह वही लूटना शायद इनको इस बात की पता नहीं है की इनको सत्ता की कुर्सी पर बैठाने के लिए अनेकों आर्य समाजियों ने अपना त्याग बलिदान देकर कांग्रेस के साथ संघर्ष किया ।और वही स्वामी रामदेव जो महर्षि दयानंद के अनन्य शिष्य हैं। उन्होंने इनको सर्वप्रथम प्रधानमंत्री के योग्य समझ कर उम्मीदवार घोषित किया । उस समय आर एस एस और भाजपा काम नहीं आई उस समय आर्य समाजी और महर्षि दयानंद के अनुयायी ही काम आए ।उन्होंने आपको प्रधानमंत्री बनाने के लिए रातों दिन एक कर दिया ।लेकिन वही प्रधानमंत्री जब 2014 में सत्ता के सिंहासन पर बैठे तब से लेकर अब तक एक बार भी लाल किला के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ऋषि दयानंद और उनके सेनानी शिष्यों का नाम नहीं लिया । क्या उनको महर्षि दयानंद का शिष्य स्वामी श्रद्धानंद याद नहीं जिसने ब्रिटिश हुकूमत के सामने अपने सीने अड़ा दिए थे।
तब कांग्रेस सहित गांधी जी भी डर चुके थे ।क्योंकि जालियांवाला बाग की घटना ने अनेकों को दहशत में रख दिया था । यह हिम्मत वीर सेनानी श्रद्धानंद की थी जिन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक के सामने सीने खोलकर ब्रिटिश हुकूमत के सामने अड़ गये।लेकिन दुर्भाग्य है की आजादी के अमृत उत्सव के उपलक्ष में देश के प्राचीर लाल किले से प्रधानमंत्री ने एक बार भी इनका नाम नहीं लिया ।यह कृतघ्नता नहीं तो और क्या है। रही बात विचारधारा की तो हो सकता है ।कि ये आर एस एस की विचारधारा से प्रेरित हो लेकिन इन्हें ये भी ध्यान रहना चाहिए की वर्तमान में वे देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर सुशोभित हैं ।यह कुर्सी आर एस एस की बदौलत नहीं मिली है और नहीं भाजपाइयों के चाटुकारिता से, इसको दिलाने के लिए लाखों लोगों ने अपना जीवन उत्सर्ग किया है ।शायद कहीं यह घमंड में हो की संघ और भाजपा के बदौलत सत्ता की कुर्सी मिली है। तो यह इनकी बहुत बड़ी भूल है। और भूल ही किसी व्यक्ति वा समाज को पतन की खाई में ले जाता है ।वैसे भी प्रधानमंत्री स्वयं गुजरात के हैं ,और उन्होंने जहां गुजराती गांधी जी को याद किया और सरदार पटेल को भी याद किया ।वही ये एक व्यक्ति को कैसे भूल गये ।जो गुजरात के रहने वाले उनके पड़ोस के ही थे। जिनका नाम महर्षि दयानंद था। यह आश्चर्य नहीं क्या है। और जहां तक मेरी जानकारी है। कि इनको यह भी पता है कि महर्षि दयानंद और आर्य समाज तथा उनके द्वारा प्रभावित क्रांतिकारियों का योगदान क्या है यह सब बातें जानते हुए भी नजरअंदाज करना ऐसा क्यों ? क्या यह राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में नहीं आता शायद यह घटना भूलवश नहीं जान के की गई है।जबकि इसकी सूचना पूर्व ही सार्वदेशिक सभा के प्रधान स्वामी आर्यवेश जी ने पत्र लिखित रूप से दिया।और बताया कि प्रधानमंत्री जी आजादी के अमृत उत्सव के दौरान 15 अगस्त को लाल किला के प्राचीर से जब आपका उद्घोष हो, तो मध्य में महर्षि दयानंद एवं उनके द्वारा प्रेरित क्रांतिकारियों का भी नाम लिया जाए , ताकि इससे देश एवं दुनिया में रहने वाले लाखों-करोड़ों लोगों को महर्षि दयानंद और क्रांतिकारियों से प्रेरणा मिले। और राष्ट्र उन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ हो सके लेकिन फिर भी इस निवेदन को ठुकरा दिया शायद कहीं सत्ता के घमंड मे चूर थे। याद रखे ये भूल का परिणाम कितना भारी होगा। राष्ट्र युगो युगो तक आप को कृतघ्न कहेगा। आप इस पाप से कभी नहीं बच सकते ।क्योंकि मुझे यह नही पता आपके सामने क्या मजबूरियां थी। या आप अवसरवादी सोच कर शिकार हो गए हैं। लेकिन यह सोच आपको ज्यादा दिन तक टिकती नहीं देगी। यह मुझे भी पता है की आपको महर्षि दयानंद और उनके अनुयायी हरियाणा के चुनाव में जरूर याद आएंगे।क्योंकि आप जैसे स्वार्थियों को वहां वोट बटोरने है। इसलिए याद आएगी शायद मुझे यह लगता है आपको और r.s.s. सहित भाजपा को महर्षि दयानंद के नाम से परहेज इसलिए है कि इनके नाम लेने से आप लोगों की दुकानदारी और तथाकथित राष्ट्रवाद का पर्दाफाश हो जाएगा इसलिए आप लोग घबराते हो । लेकिन ध्यान रखिए यह आर्य लोग हैं सच्चाई की परख करनी भी इन्हें बहुत अच्छी प्रकार से आती है अतः इन बातों को ध्यान मे रखते हुए। मैं आप पूछना चाहता हूं ।कि क्या आप r.s.s. और भाजपा के प्रधानमंत्री हैं या समस्त देशवासियों के। यदि आप इस देश के सवा करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री है ।तो यह याद रखना चाहिए कि महर्षि दयानंद और उनके अनुयायियों का बलिदान सवा सौ करोड़ लोगों को गुलामी के जंजीरों से मुक्त कराने के लिए हुआ था ।ना कि आर्य समाज के किसी व्यक्तिगत उद्देश्य के लिए है । इन महापुरुषों को नजरअंदाज करना आपकी गुलाम मानसिकता का परिणाम है। शायद आप भूल जाते हैं की आप को जिताने के लिए जहां सवा सौ करोड़ लोगों ने वोट दिया वहीं कुछ लोगों ने नहीं भी दिया होगा। लेकिन आप सब के प्रधानमंत्री हैं । उनमें से लाखों-करोड़ों लोगों को अपने महापुरुषों और क्रांतिकारियों के प्रति आस्था है उसका नजरअंदाज करना या उसकी स्मृतियों को याद ना करना केवल दोहरी मानसिकता की पहचान है। ऐसा भेदभाव किसी के साथ नहीं होना चाहिए। वह भी देशभक्त और क्रांतिकारियों के नाम पर आप वही व्यक्ति हैं जो अक्सर कहा करते थे। कि कांग्रेस वंशवाद के चक्कर में देशभक्त क्रांतिकारियों के इतिहास को मिटाना और बुलाना चाहती है। और आपने ही कहा था कि देश नहीं झुकने देंगे । लेकिन सत्ता पाते ही गिरगिट की तरह रंग बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ा महापुरुषों के नाम पर भी आपने घोटाले किए और उनकी स्मृतियों को नजर अंदाज करने का प्रयास किया देश पूछना चाहता है। क्या यही राष्ट्रभक्ति है ।क्या यही राष्ट्रवादी सरकार की नीति है किसी नीति कार ने कहा है। अपूज्या यत्र पूज्यन्ते अर्थात् जहां पूज्य का अपमान और अपूज्य का सम्मान होता है वह राष्ट्र सदा भूखमरी भय और आतंकवाद का ग्रास होता है क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा जैसा राजा होता है वैसे ही प्रजा होने लगती है।