गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 29
आत्म व्यवहार के अनुरूप परिणाम
जब पतन वैचारिक होता है तो गिरता जाता मानव दल ।
जब उत्थान वैचारिक होता है तो बढ़ता जाता मानव दल।।
ऐश्वर्याभिलाषी जीव सदा यहाँ , ऐश्वर्य हेतु ही आता।
बलवीर्ययुक्त समर्थ जीवन को कोई बड़भागी ही पाता।।
समझो ! हीनवीर्य हो जाना अपनी मृत्यु को है आमंत्रण ।
देना चुनौती मृत्यु को भी ,क्षत्रियों के लिये है सदा उत्तम ।।
जीव को कहता वेद – तू ‘वृषा’ – सुख बरसाने वाला है।
कर सुखी और रह सुखी – तू इस पर चलने वाला है।।
सबके लिए जुटा सुख के साधन – सुसमृद्ध बना सबको।
जब भी कोई कहीं दु:खी दीखे सामर्थ्यवान बना सबको।।
सुविचार बढा – परिवार बढा , अपना सुंदर व्यवहार बना ।
संघर्षशील बन उनके लिए जिनके ऊपर कोई कष्ट पड़ा।।
सिद्धि साधन का अवलम्बन कर मुक्ति-पाठ पढ़ा जन को।
सिद्धि के लिए तू उत्पन्न हुआ ! वेद की बात बता मन को।।
नरतन का स्वामी होकर भी यदि सुख सामग्री से मुंह मोड़ा?
तेरा व्यर्थ रहेगा ये जीवन , यदि यज्ञ -याग को भी छोड़ा ।।
पूर्वजों के बुद्धि – वैभव का तू लाभ उठा और सबको बांट।
सुख सामग्री को खूब बढा और धर्मानुसार बढ़ा ले ठाट।।
ऊंचा उठावे आत्मा से आत्मा को, और ना गिरने दे कभी।
किसी की गिर गई है आत्मा तो उठ न सकेगा फिर कभी।।
अर्जुन ! आत्मा ही मित्र अपना , तू मित्रवत व्यवहार कर ।
मत उपेक्षित कर आत्मा को , अनुकूल इसके काम कर ।।
आत्मा की आवाज सुन , बुद्धि को उसकी अनुगामी बना।
मत मन को भटकने दे कहीं, मन को भी तू साथी बना ।।
स्वयं को समत्व में तू ढाल ले , जान ले समत्व योग को।
सभी द्वंद्व को तू त्याग दे, चलने से पहले परलोक को ।।
जो समत्व ही को योग जाने , एक रस और शांत रहता।
मान – अपमान, सुख – दु-ख में सदा वह समभाव रखता।।
अनित्यता हर सम्बन्ध की वह जन जान लेता ध्यान से।
सदा खोजता समाधान अपने बुद्धि जन्य विवेक ज्ञान से।।
जो उलझता संसार में और ना समझता कभी खेल को ।
बुद्धिशून्य हो जीवन काटता और भूल जाता इष्ट को ।।
चाहे मिले कोई साधु – असाधु ,विद्वान ,ब्राह्मण, चांडाल भी।
योगी आत्म – भाव युक्त होकर करता रहता कर्म भी।।
पार्थ ! इंद्रियों को देता दिशा , हमारा आत्मा हर काल में।
पर फिर भी स्वयं निर्लिप्त रहता इंद्रियों के हर काम में।।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य