गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 28

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योग युक्त मुनि और ईश्वर प्राप्ति

सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते।
योग युक्त जीवन जीते और संसार में हैं पूजे जाते।।

उलझी सितार की तारों को जो सुलझाने में लगा रहा।
खार जार में उलझ गया और मनचाहा कुछ पा न सका।।
निरर्थक ऐसे जीवन हैं ,जो काल के थप्पड़ हैं खाते …
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

जो भी कुछ जिसके पास यहां वह दिया हुआ परमेश्वर का।
उसी के गाओ गीत सदा , यह जन्म नहीं फिर मिलने का ।।
वह दीनबंधु कहलाता है मूर्ख जन उसको ठुकराते ….
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

सामर्थ्य उसी में रचना करता पालन पोषण भी करता वही।
संहार करे सारे जग का , कर्ता- धर्ता और हर्त्ता वही।।
उसकी ही शरण में आओ सब ज्ञानी जन उसको ही ध्याते..
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

ज्ञानी जन हर प्राणी भीतरव उस परमेश्वर को देखते हैं।
कण – कण में उसको देखते हैं और अहम को दूर भगाते हैं।।
ज्ञान योग से युक्त मुनिजन उस ब्रह्म को जल्दी पा जाते …
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

कृष्णा जी बोले सुन अर्जुन ! जिनका जीवन होता निश्छल।
वह योगी जन हर प्राणी में भगवान को पाते हैं पल – पल।।
कण-कण में रमे भगवान उन्हें अन्तश्चक्षु से दिख जाते ….
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

जो ज्ञानी जन हर प्राणी में , भगवान को ही देखा करते।
वह कर्म में फंस नहीं पाते हैं और असीम धैर्य को धरते ।।
वह अनुकूल धर्म के कर्म करें और बंधन में ना बंध पाते ….
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

योगी जन जो कुछ भी करते उनकी इंद्रियां ही उसे करतीं।
आत्मा नहीं कर्त्ता होता है , फल भी इंद्रियां ही चखतीं।।
मत नाहक चिंता कर अर्जुन ! जो जैसा बो -वैसा काटे..
सुखदाई शरण भगवान की है ज्ञानी जन उसको हैं पाते…

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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