-निर्मल रानी-
आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार गाय में हज़ारों प्रकार के गुण प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। हिंदू धर्म में चूंकि धरती, मानवता तथा सृष्टि को लाभ पहुंचाने वाली प्रत्येक प्राकृतिक उत्पत्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उसे देवता अथवा भगवान का दर्जा दिया जाता रहा है। लिहाज़ा गाय जैसे लाभकारी पशु को भी उसकी अनेक विशेषताओं के चलते गऊमाता का स्थान दिया गया है। परंतु ऐसा नहीं कि हिंदू धर्म द्वारा देवी-देवता का दर्जा प्राप्त करने वाले सूर्य, चांद, पीपल, तुलसी अथवा गाय जैसी 33 करोड़ प्राकृतिक रचनाएं केवल हिंदू धर्म के लोगों को ही लाभ पहुंचाती हैं। बल्कि प्रकृति की यह सभी उत्पत्तियां पूरी मानवता के लिए समान रूप से लाभकारी हैं। इसीलिए अन्य धर्मों में भी भले ही इन्हें भगवान,देवी-देवता अथवा माता कहकर न संबोधित किया जाता हो परंतु उनकी उपयोगिता तथा उनके मान-सम्मान अथवा उनकी रक्षा के लिए लगभग सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में कोई न कोई निर्देश अवश्य जारी किए गए हैं। गाय की उपयोगिता,उसकी प्रशंसा तथा उसके आदर व सम्मान के लिए केवल हिंदू धर्म शास्त्रों में ही नहीं बल्कि कुरान शरीफ में भी इस आशय की चर्चा की गई है।
इस वास्तविकता के बावजूद सांप्रदायिकता की आग पर अपनी राजनीति की हांडी चढ़ाने वाले महारथी गाय को समय-समय पर अपनी राजनैतिक आवश्यकता अनुसार इस प्रकार उद्घृत करते रहते हैं गोया प्रकृति ने गाय की उत्पत्ति केवल हिंदुओं के लिए ही की हो,गाय पर केवल हिंदुओं का ही अधिकार हो और तथाकथित गौरक्षा का दायित्व भी हिंदुओं पर ही हो। यहां उस चर्चा को छेडऩा मुनासिब नहीं कि किस प्रकार देश में गौशाला तथा गौरक्षा के नाम पर संगठित रूप से धन उगाही करने, गौभक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ करने,चंदा वसूली कर अपने व अपने परिवार का पालन-पोषण करने जैसे अपराध किए जा रहे हैं। परंतु इनके अतिरिक्त भी समाज को आईना दिखाने वाली कुछ वास्तविकताएं ऐसी हैं जिनका जि़क्र करना नितांत आवश्यक है। आज टूटते व बिखरते संयुक्त परिवारों में बुज़ुर्गों की हो रही दुर्दशा से सभी वाकिफ है। अपने व अपने बच्चों की परवरिश करने तथा उनके उज्जवल भविष्य को संवारने में लगे दंपत्तियों के पास इतनी फुर्सत नहीं कि वे अपने जन्म देने वाले माता-पिता की निगरानी कर सकें तथा उनकी सेवा के लिए अपना समय दे सकें। आर्थिक रूप से कमज़ोर संतानों के पास तो मंहगाई के इस दौर में इतना पैसा भी नहीं बच पाता कि वे अपने मां-बाप के खान-पान या दवा-इलाज के लिए उन्हें पैसा भेज सकें। ऐसे में इस समाज से यह उम्मीद रखना कि वह गऊ माता का पालन-पोषण करे अथवा उसकी रक्षा करे, यह कितना न्यायसंगत है? दूसरी एक और हकीकत जोकि सभी धर्मों व समुदायों के लोगों से जुड़ी है। चाहे वह कोई धर्मस्थान हो अथवा किसी ने निजी रूप से गायें पाल रखीं हो,लगभग शति-प्रतिशत यही देखने को मिलता है कि जब तक कोई गाय तसल्लीबख्श तरीके से दूध देती रहती है तथा उसके प्रजनन का सिलसिला जारी रहता है उसी समय तक कोई भी गाय मालिक उस दुधारू गाय की खुश होकर सेवा करता है। इस सेवा का कारण गौभक्ति नहीं बल्कि उसके द्वारा दिया जाने वाला दूध यानी गौस्वामी को गाय द्वारा पहुंचाया जाने वाला आर्थिक लाभ मात्र है। जैसे ही वह गाय दूध देना कम करती है या उसकी दूध देने व प्रजनन की क्षमता कम अथवा बंद हो जाती है उसी समय गौस्वामी उस गाय को अपनी गौशाला से बाहर का रास्ता दिखा देता है। अब यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि इस प्रकार की गाएं आगे किस रास्ते के लिए अपना सफर शुरु कर देती हैं।
उपरोक्त वास्तविकताओं के बावजूद देश में हज़ारों गौशालाएं, गौरक्षा समितियां तथा गौरक्षा हेतु चलाए जाने वाले अनेक आंदोलन सक्रिय हैं। आए दिन देश के किसी न किसी क्षेत्र से गाय से भरे ट्रक गौरक्षकों अथवा पुलिस द्वारा पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं। इन खबरों के सामने आने के बाद वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है। कई बार ऐसे वातावरण के मध्य हिंसा अथवा सांप्रदायिक हिंसा भी भडक़ चुकी है। परंतु ऐसे अवसरों पर यह तो देखा जाता है कि अपने ट्रक में बेरहमी से भरकर इन गायों को कौन ले जा रहा था तथा क्यों ले जा रहा था? परंतु इस बात की चर्चा करना कोई मुनासिब नहीं समझता कि हत्यारों के हाथों में इन गायों को पहुंचाने का जि़म्मेदार कौन है? यदि सही मायने में देखा जाए तो गौवध की शुरुआत वहीं से होती है जहां कि कम दूध देने अथवा दूध देना बंद कर देने वाली गायों को किसी खरीददार के हवाले कर दिया जाता है। क्या एक सच्चे गौभक्त को यह सोचना नहीं चाहिए कि दूध न देने वाली जिस गाय को वह स्वयं चारा नहीं खिला पा रहा या उसकी सेवा नहीं कर पा रहा उसी गाय को कोई दूसरा व्यक्ति खरीदकर अािखर क्या करेगा? इतना ही नहीं बल्कि गौरक्षा के नाम पर राजमार्गों पर दहशत फैलाने वाले संगठन उन सरकारी मान्यता प्राप्त बूचड़ खानों पर भी जाकर अपना विरोध दर्ज कराने का साहस नहीं करते जहां कि प्रतिदिन सैकड़ों गाय,बैल तथा भैंस आदि काटकर उनके मांस का निर्यात किया जाता है?
बहरहाल, गऊमाता के नाम पर आम लोगों की भावनाओं को भडक़ाने के वर्तमान वातावरण के मध्य गुजरात व कर्नाटक में जहां पिछले दिनों कई ऐसी खबरें सुनने को मिली कि हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े किसी नेता की कार की डिग्गी में गौ मांस पकड़ा गया तो ऐसे ही किसी संगठन के लोग गाय की चोरी करते पकड़े गये। तो किसी को गौ तस्करी में शामिल पाया गया। ऐसी खबरों के बीच गुजरात राज्य से यह समाचार आया है कि राज्य के जमीउत-उलमा-ए-हिंद नामक एक मुसिलम संगठन ने गौवंश की रक्षा किए जाने तथा इसके वध को रोकने हेतु व्यापक अभियान छेड़ा है। राज्य के कई जि़लों के अनेक गांवों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की ऐसी कमेटियां गठित की गई हैं जो गांव-गांव घूमकर लोगों को गौरक्षा के प्रति जागरूक करेंगी तथा उन्हें गौ हत्या रोके जाने हेतु प्रेरित करेंगी। इस गौरक्षा अभियान का मुख्य उद्देश्य यही है कि किसी समुदाय द्वारा ऐसा कोई काम नहीं किया जाना चाहिए जिससे दूसरे समुदाय के लोगों की भावनाएं आहत हों तथा उन्हें ठेस पहुंचे। गुजरात में अक्सर गौहत्या अथवा बूचड़ खानों को लेकर तनाव की खबरें आती रहती हैं। इसीलिए ऐसे दुर्भावना फैलाने वाले समाचारों को विराम देने के उद्देश्य से जमीयत-उलमाए-हिंद के नेता अरशद मदनी के नेतृत्व में दक्षिण गुजरात के भड़ूच क्षेत्र के 60 से अधिक गांवों में गौवंश की रक्षा की कवायद शुरु की गई है। इस विषय से संबंधित सकैड़ों इश्तिहारी बोर्ड,फ्लेक्स व पोस्टर इत्यादि लगाए जा रहे हैं। जिसमें चेतावनी दी जा रही है कि मुस्लिम समाज के लोग गौ हत्या से अपने-आप को दूर रखें। कुरान शरीफ की आयतों का उल्लेख करते हुए मुसलमानों को यह भी बताया जा रहा है कि किस प्रकार अल्लाह ने भी गाय को इंसानों के लिए लाभकारी बताया है तथा इसकी रक्षा व पालन-पोषण का हुक्म दिया है। निकट भविष्य में आने वाले बकरीद के त्यौहार के मद्देनज़र मुस्लिम समुदाय द्वारा छेड़े गए इस गौ रक्षा अभियान को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
मुस्लिम समुदाय के शिया व सुन्नी धर्मगुरुओं द्वारा पहले भी बकरीद के त्यौहार के अवसर पर ऐसे फतवे व दिशा निर्देश कई बार जारी किए जा चुके हैं। जिसमें मुसलमानों से गौ हत्या से परहेज़ करने को कहा गया है। निश्चित रूप से मुसलमानों द्वारा एक बार फिर गुजरात में गौ हत्या रोकने तथा गौवंश की रक्षा किए जाने हेतु दिया जाने वाला फतवा अथवा इस संबंध में छेड़ा जाने वाला कोई भी अभियान स्वागत योग्य है। परंतु गौ हत्या रोकने हेतु केवल मुस्लिम धर्मगुरुओं के फतवे अथवा गौरक्षा अभियान पर्याप्त होंगे ऐसा प्रतीत नहीं होता। सरकार द्वारा लाईसेंस शुदा बूचड़ ख़ाने जो गौ मांस का निर्यात करते हैं तथा उन बूचड़ खानों तक जो लोग अपनी बांझ व बूढ़ी गायों व बैलों को पहुंचाते हैं जब तक यह वर्ग गौ रक्षा का संकल्प पूरी ईमानदारी के साथ नहीं लेगा तब तक गौ हत्या का रोक पाना शायद संभव नहीं। हां देश के मुसलमानों द्वारा गौ रक्षा हेतु उठाए जाने वाले कदमों ने यह ज़रूर साबित करने की कोशिश की है कि गौ माता केवल हिंदुओं की आराध्य नहीं बल्कि यह पूरी मानव जाति के लिए लाभदायक है। इसीलिए इसके मान-सम्मान अथवा अपमान को किसी धर्म विशेष से जोडऩे की कोशिश करना गौ वंश की रक्षा के बहाने अपना राजनैतिक हित साधने के सिवा और कुछ नहीं।