महर्षि दयानंद की अमर कहानी
-विमलेश बंसल ‘आर्या’
हम सब मिल शीश झुकायेंगे, गुरु देव दयानंद दानी को।
उस वैदिक वीर पुरोधा की, गायेंगे अमर कहानी को॥
1.अट्ठारह सौ इक्यासी की, फ़ाल्गुन कृष्णा दशमी तिथि को,
गुजरात प्रांत टंकारा में, था जन्म लिया मूलक मिति को।
शंकर से शंकर मूल मिला, कर्षन जी धन्य भवानी को॥
2.लो सुनो सुनाऊँ तुम्हें कथा, उस वीर सिपाही सैनिक की,
मूल शंकर नाम था बचपन का, शंकर भक्ति निशि दैनिक थी।
अल्पायु में कंठस्थ हुआ, ‘यजुर्वेद शुक्ल’ लासानी को॥
3.मंदिर में गये शिवरात्रि पर, पितु पर रखकर श्रद्धा अगाध,
शिव नहीं आये मूषक आया, खा गया रखा वहाँ जो प्रसाद।
कैसा शिव यह मन में सोचा, नहीं हटा सका तुच्छ प्राणी को॥
4.एक और वाकया जीवन का, घट गया मूल के बचपन में,
ले गयी बहिन प्रिय चाचा को, वह कौन शक्ति जग उपवन में।
शिव खोजा काशी हरिद्वार, नहीं चैन मिला उस ध्यानी को॥
5.शुद्ध चैतन्य बन दयानंद हुए, मंज़िल पर मंज़िल चढ़ते रहे,
संयस्त हुए पूर्णानंद से, योगाभ्यासी बन बढ़ते रहे।
मथुरा जाकर आश्वस्त हुए, पाया विरजानंद ज्ञानी को॥
6.अब तक जो ग्रंथ पढ़े प्यारे, फ़िंकवा दिये गुरुवर ने सारे,
छः वर्षों में ले ज्ञान दिव्य, हो गये दया गुरु आभारे।
सच्चे शंकर को जान लिया, किया नमन प्रभु की वाणी को॥
7.गुरु आज्ञाधार चले ॠषिवर, देकर गुरु को जीवन का दान,
अज्ञान मिटाया जगती का, वेदों के देकर सद्प्रमाण।
सत्यार्थ प्रकाश आदि रचकर, किया दूर हो रही हानि को॥
8.गौ, नारी, वेदों की रक्षा, करवायी पत्थर खा-खाकर,
खुद पिया ज़हर हमको अमृत, पिलवाया ॠषि ने साहस कर।
अज्ञान, दासता से मुक्ति, मिल गयी तब हर एक प्राणी को॥
9.हो एक पंथ और एक ग्रंथ, वेदों पर चलो होकर के संत,
तब कृण्वन्तो विश्वमार्यम् हो, ॠषिवर का था यह मूल मंत्र।
उस परमपिता के अमर पुत्र, बन वरण करें विज्ञानी को॥
10.हे ॠषिवर तुमको कोटि नमन, हे मुनिवर तुमको सहस्र नमन,
तेरे अनुयायी बनकर के, महकायें तेरा आर्य चमन।
हो विमल दया सब पर प्रभु की, मिल होम करें ज़िंदगानी को॥
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