प्रेम ,सेवा और त्याग ,
मानव जीवन का है राग .
माया जनित अज्ञानता के
विकारों के कारण हम इस
मूल राग को भूल गये हैं .
यही दुःख का कारण है .
प्रेम अंतःकरण की खामोश चेतना है ,
जिसकी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति मौन है .
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यूँ ही थोड़े कहा है कि
‘ मौन सर्वोत्तम भाषा है ‘
हमारे प्रिय गीतकार गुलजार ने भी कहा है —
” प्यार कोई बोल नहीं , प्यार आवाज नही
एक ख़ामोशी है , सुनती है कहा करती है .
ये न रुकती है न थमती है न ठहरी है कहीं ,
नूर की बूंद है , सदियों से वहा करती है . ”
जिसमे चातक सी चाहत है
उसके लिए प्रेम मोती है
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आध्यात्मिक कौन ?
संतों और महान पुरुषों के पास पैसा नहीं होता
और न वे उसकी इच्छा रखते हैं,क्योंकि प्रेम ,
दया , करुणा आदि से लबालब भरा हुआ ह्रदय
उनके पास कुबेर के भण्डार की तरह मौजूद
रहता है .
दरिद्र मनुष्य एक दिन सम्पन्न हो सकता है ,
लेकिन यह निश्चित है कि वह व्यक्ति भिखमंगे
की तरह खाली भटकेगा जिसका हृदय उक्त गुणों
से रिक्त है।
ईश्वर का दर्शन कौन करेगा ?
सिर्फ वही जिनके हृदय में दया है। निर्दय व्यक्ति
तो उस अपाहिज की तरह है जो अपने बगल में
रखे सर्वोत्तम पदार्थों को भी ले न सकेगा।
सच्चे आध्यात्मिक व्यक्ति वे हैं जिनके ह्रदय में प्रेम ,दया ,श्रद्धा ,उदारता ,उत्साह ,ईमानदारी ,सत्यता आदि दैवी भावों की प्रधानता हो। ये सब आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं। इनको प्राप्त करने का उस समय तक प्रयत्न करते रहना चाहिए ,जब तक कि समस्त जीवन पूरी तरह इनमें रंग न जाय। ईश्वर – भक्ति का मार्ग किसी धर्म विशेष या किसी कर्मकाण्ड में सीमित नहीं है ,बल्कि आत्म – शोधन की पक्रिया से मिलता है।
शुद्ध हृदय वाले व्यक्ति धन्य हैं ,क्योंकि वे हीं
परमात्मा का दर्शन करेगें। इस दर्शन में जो
आनन्द है ,उसका वर्णन कौन कर सकता है।
इसे तो सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है।
{ आचार्य श्रीराम शर्मा जी के साहित्य से
संकलित ज्ञान -तत्व }
सम्पादक — शाश्वत संदेश / दिगन्त पथ
चेतना शोध संस्थान , शंकरडीह . / विवेकानन्द कुटीर , चेतना महाविद्यालय .
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