कांग्रेस पार्टी की दशा कैसी हो गई है? किसी भी पार्टी-अफसर ने मुंह खोला नहीं कि उसमें अंगार रखने का माहौल बना दिया जाता है। लगता है कि इस पार्टी में नेताओं का अभाव हो गया है। जो हैं, उनसे आशा की जाती है कि वे आज्ञाकारी नौकरशाहों की तरह बर्ताव करेंगे। किसी को न सोचने की आजादी है और न ही बोलने की! अब जबकि कांग्रेस का सूंपड़ा साफ हो रहा है तो यह खिसियाहट चरम सीमा पर पहुंच रही है।
प्रो. जनार्दन द्विवेदी ने ऐसी कौन सी आपत्तिजनक, अश्लील या उत्तेजक बात कह दी है कि उन पर अनुशासन की तलवार लटकाई जा रही है। अजय माकन के कमजोर कंधों पर जबर्दस्त वज़न डाल दिया गया है। वे डूबती कश्ती को बचाने में जी-जान से लगे हुए हैं।
ऐसे में द्विवेदी के निजी और तटस्थ विश्लेषण से भी उनको गहरी चोट पहुंच गई है। जनार्दनजी ने यही तो कहा है न, कि मोदी भारतीयता के पर्याय बन गए थे। इसीलिए वे जीत गए। यह तो उन्होंने बहुत कम कहा है। असली बात तो वे बोले ही नहीं। अगर वे बोल देते तो बेचारे माकन-वाकन की क्या हैसियत है, कांग्रेस की मां-बेटा टीम ही प्रकंपित हो जाती। उनके ‘सीईओ’, जिन्हें देश प्रधानमंत्री के नाम से जानता रहा है, निवर्सन हो जाते।
यदि जनार्दनजी देश को मोदी की जीत का असली रहस्य बताना चाहें तो वे कह सकते थे कि मोदी को जिताने का सबसे बड़ा श्रेय कांग्रेस की ‘बृहत्त्रयी’ को है। बृहत्त्रयी याने तीन बड़े। कौन तीन बड़े? सोनियाजी, राहुलजी और मनमोहनजी!
डॉ. मनमोहनसिंह भारत के ऐसे पहले महान प्रधानमंत्री हैं जिन्हें अपने उत्तराधिकारी का पता चुनाव के छह माह पहले ही चल गया था। उनके अलावा आज तक किसी भी प्रधानमंत्री को पता नहीं था कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
कांग्रेस का अपरंपार भ्रष्टाचार और नेतृत्व का भौंदुत्व उसे ले बैठा। मोदी का हिन्दुत्व नहीं, कांग्रेस का भौंदुत्व मोदी की विजय के लिए जिम्मेदार है। मोदी ने तो चुनाव के दौरान हिंदुत्व (या भारतीयता) की बात भूलकर भी नहीं की। जनार्दनजी ने तो चतुर अफसर की तरह अपने मालिकों का नाम तक नहीं लिया। उन्हें बचा लिया। फिर भी पता नहीं क्यों, उन पर छुटभय्यों की तान टूट रही है।