गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) अनेक प्रकार के यज्ञ …. गीत 25
पंचमहाभूत हैं और पंच महायज्ञ हैं
ईश्वर की सृष्टि स्वयं एक यज्ञ है
ईश्वर का विधान ‘वेद’ भी एक यज्ञ है
ईश्वर का हर उपदेश ही एक यज्ञ है।
लोकोपकारक शुभ कर्म एक यज्ञ है
संसार में निष्काम – कर्म भी यज्ञ है
नित्य- नैमित्तिक कर्म भी एक यज्ञ है
हमारे हृदय को करता पवित्र यज्ञ है।
संसार की हर सार्थकता एक यज्ञ है
अंतःकरण की शुद्धि भी एक यज्ञ है
हृदय के लिए सब किए जाते यज्ञ हैं
मन की शुद्धि हेतु किए जाते यज्ञ हैं।
आस्था व श्रद्धा से किए जाते यज्ञ हैं
अति – प्रीति से पूर्ण होते सब यज्ञ है
प्रकाश से विमल हो प्राप्त होते यज्ञ हैं
ना कभी अनास्था से पूर्ण होते यज्ञ है।
कठोर अभ्यास का नाम भी एक यज्ञ है
वैराग्य की पवित्रावस्था भी एक यज्ञ है
ईश्वरप्रणिधान योगक्रिया भी एक यज्ञ है
योगी के हृदय की करुणा भी एक यज्ञ है।
संसार में कोई जन कर रहा ‘द्रव्य यज्ञ’ है
कहीं कोई तपसी भी कर रहा जप यज्ञ है
कोई ध्यानी करता मिलता ‘ध्यान यज्ञ’ है
किसी राजा द्वारा चल रहा राजसूय यज्ञ है।
योगी जन लोकहित में करते सारे यज्ञ हैं
संसार की भलाई हेतु वे करते तप यज्ञ हैं
स्वाध्याय – शील लोग करते ‘ज्ञानयज्ञ’ हैं
सारी सृष्टि में सर्वत्र ही चल रहा यज्ञ है।
प्रभु भक्ति हेतु किया जाता ब्रह्म – यज्ञ है
स्वाध्याय आत्मिक शक्ति देता ब्रह्म यज्ञ है
परस्पर सहयोग का भाव देता ‘देव यज्ञ’ है
निरभिमान रह – सिखाता वैश्व देव यज्ञ है।
संन्यासी विद्वान की सेवा ‘अतिथि यज्ञ’ है
अतिथि से ज्ञान प्राप्ति हेतु सेवा भी यज्ञ है
माता-पिता का ऋण चुकाना भी यज्ञ है
सचमुच संसार में अनेकों प्रकार के यज्ञ हैं।
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य