– डॉ. दीपक आचार्य
भगवान भोलेनाथ को जल अत्यधिक प्रिय हैं। कहा भी गया है- जलधारा शिव प्रियः। आमतौर पर ग्रीष्मकाल में शिवलिंग पर निरंतर जलाभिषेक की परम्परा विद्यमान रही है। धार्मिक मान्यता है कि भीषण गर्मी के दिनों में जलाभिषेक से भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं, लेकिन देश में काफी स्थान ऎसे भी हैं, जहां भगवान भोलेशंकर कुछ माहों के लिए अथवा हमेशा जल समाधि में ही रहकर भक्तों की सुनते हैं।
इन देवालयों के प्रति जनास्था साल भर देखने को मिलती है। ऎसा ही एक मंदिर हाड़ौती में भी है, जहाँ जल समाधिस्थ भगवान शिव की पूजा होती है।
यह मंदिर कोटा से बारां रोड पर इटावा से 3-4 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर गुणदी गांव से डेढ़ किलोमीटर भीतर अवस्थित है।
मंदिर का गर्भगृह एक जल कुण्ड ही है, जिसमें बड़ा सा शिवलिंग पांच-दस फीट पानी में डूबा रहता है। दर्शनार्थी आते हैं व जल कुण्ड में समाधिस्थ हो छिपे बैठे भगवान भोलेनाथ का मानसिक दर्शन कर लेते हैं तथा सच्चे मन से अपनी मनोकामना अभिव्यक्त कर देते हैं।
कुण्ड में जल समाधिस्थ शिव का दो मंजिला मंदिर निर्माणाधीन है। आस-पास पानी पसरा होने तथा जल में अवस्थित होने की वजह से शिवलिंग का नामकरण जलेश्वर हो गया। चारों तरफ हरियाली व उन्मुक्त पसरी प्रकृति के बीच विराजमान भगवान जलेश्वर के शिवलिंग को सदियों पुराना बताया जाता है। मंदिर के पास ही धूंणी तथा छोटा सा आश्रम है जबकि सामने पहाड़ी पर एक तरफ बहुत ही प्राचीन मंदिर है, जबकि दूसरी तरफ की पहाड़ी पर धार्मिक स्थानक है।
जलेश्वर भगवान के प्रति आस-पास के लोगों में खूब श्रद्धा है। शिवरात्रि पर यहाँ मेला भरता है, जिसमें भारी तादाद में श्रृद्धालु आते हैं। श्रृद्धालुओं का पक्का विश्वास है कि भगवान जलेश्वर के दर पर आने वाला कोई भी भक्तजन निराश नहीं लौटता है।