– डॉ. दीपक आचार्य
संत रविदास…. भारतीय धर्म- अध्यात्म जगत का अमर व्यक्तित्व, प्रेरणादायी युगपुरुष और अध्यात्म के पुरोधा। संत रविदास के सच्चे अनुयायियों और भक्तों को दिल से नमन। लेकिन रविदास जी के भक्तों की एक और परम्परा भी है जिसके बारे में हम लोग शायद ही कोई जानकारी रखते हों।
साल भर तक रविदास के बारे में अनभिज्ञ रहने वाले लोग भी दो दिन पहले अचानक जग गए। उनमें भी संत रविदास के प्रति ऎसी भावना जग गई कि कुछ कहा नहीं जा सकता ।
हममें से किसी को कुछ याद भले न आया हो, रविदास के बारे में उन सभी लोगों को तीन दिन पहले आकस्मिक ही स्मरण हो आया। जैसे कि किसी ने सोते हुए को अचानक जगाकर फटाफट कान में मंत्र फूँक डाला हो।
हमें भी पता नहीं चला कि रविदास जयंती है। यह तो भला हो सहकर्मियों का जो साल भर छुट्टियों पर गिद्ध दृष्टि जमाए बैठे होते हैं और जहाँ कहीं कोई छुट्टी देखी नहीं कि अपने तरकश से एक एप्लीकेशन निकाल दी और दाग दी बॉस की टेबल पर।
इस बार भी ऎसा ही हुआ। एक दिन में खूब सारे कर्मयोगियों की दरख्वास्तें टेबल पर जमा हो गई। सबकी सब अर्जियों में लिखा था-रविदास जयंती 3 फरवरी को ऎच्छिक अवकाश स्वीकृत किया जाए। और यह एक ऎसा स्वयंसिद्ध अधिकार है कि किसी को रोक नहीं सकते। रोक लो तो देखो, कोई आदमी तरबूज होकर सामने आ जाता है, कोई तोप-तमंचों और बंदूकों सी शक्ल बना डालता है। अचानक आदमी में ढेर सारे आसुरी पात्रों और हिंसक जानवरों की छवि देखने को मिलने लग जाती है।
इन कर्मयोगियों की जमात में संत रविदास का नाम भले ही सरकारी कैलेण्डर से ही जाना जाता हो, मगर संत रविदास के नाम पर भजन कीर्तन व धार्मिक समारोह से ज्यादा पुण्य उनके नाम का ऎच्छिक अवकाश भुगतना ही है। इससे बड़ा पुण्यार्जन का और कोई माध्यम हो ही नहीं सकता।
सारे कत्र्तव्य कर्म को छोड़कर संत रविदास के नाम से ऎच्छिक अवकाश का उपयोग कर लेने वाली सभी दिव्यात्माओं का पावन दर्शन ही बड़ा पुण्यदायी है। संत रविदास को मानने वाले अनुयायिओं के लिए ऎच्छिक अवकाश का प्रार्थना-पत्र रविदास स्मृति महायज्ञ की महान समिधा के रूप में देखा जाना चाहिये।
संत रविदास के इन ऎच्छिक अवकाशी भक्तों का ही प्रताप है कि उनकी गैर मौजूदगी में सभी ने रविदास जी का पावन स्मरण किया, चाहे छुट्टी पर रहने वालोें के बहाने ही सही।
संत रविदास के नाम पर ऎच्छिक अवकाश न होता तो आज ये कर्मयोगी किसे याद करते। क्योंकि अब महान लोगों की याद छुट्टी से ही जुड़ी हो गई है।
ऎच्छिक अवकाश का सुख देकर संत रविदास उन लोगो में अमर गए हैं जिनके लिए छुट्टियों का कोई न कोई बहाना चाहिए होता है। बोलो संत रविदास जी की जय। उनके भक्तों की भी जय। ऎच्छिक अवकाश कायम रहें।