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पुस्तक समीक्षा

कश्मीर: आतंकवाद की पूरी कहानी : पुस्तक के विषय में

कश्मीर का दर्द कितना पुराना है? इसके सच को देश के लोगों से छुपा कर रखा गया। अभी कुछ समय पूर्व ही जब कश्मीर से हिंदुओं का सामूहिक पलायन कराया गया तो उसका भी पूरा सच लोगों के सामने नहीं आने दिया। धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर उसके मूल निवासियों अर्थात हिंदुओं के लिए ही नरक स्थली बना दी गई। जब 1990 में हिंदुओं के साथ किए गए अत्याचारों के सच को ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत किया गया तो अनेक लोगों की आंखों में आंसू आ गए। तब सारे देश को यह सच पता चला कि वहां बंद दरवाजों के भीतर क्या-क्या होता रहा था?
डॉ राकेश कुमार आर्य के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक ‘ कश्मीर : आतंकवाद की पूरी कहानी’ – लेखक के नैतिक साहस और अनुसंधानात्मक सोच शोधपूर्ण चिंतन को प्रकट करती है। जिन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से हमें यह बताने का सराहनीय प्रयास किया है कि कश्मीर का दर्द कल परसों का दर्द नहीं है, बल्कि यह सदियों का दर्द है।
जिसने ‘द कश्मीर फाइल्स’ – को देखा है, उसकी जिज्ञासा स्वभाविक रूप से यह बनी होगी कि 1989 – 90 से पहले कश्मीर में क्या होता रहा था ? लोगों के भीतर यह प्रश्न भी उठा उठा होगा कि मुगलों और उनसे पहले तुर्कों के शासनकाल में वहां के हिंदुओं ने मुसलमानों के और मुसलमानी हुकूमत के कैसे-कैसे अत्याचार सहे होंगे ? वास्तव में डॉ आर्य की यह पुस्तक इन सारे प्रश्नों का उत्तर देने में सफल रही है। समकालीन इतिहास को समेटकर भविष्य के लिए एक अच्छा शोधपूर्ण अभिलेख डॉ आर्य द्वारा हमको दिया गया है।
पुस्तक के आद्योपांत अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि हिंदू इतिहास की धारा किस किस प्रकार के बीहड़ जंगलों से निकलकर आई है और उसे कितने मोड़ों पर खून से लाल किया गया है? अत्याचार तानाशाही प्रवृत्ति का प्रतीक होता है, पर जब वह सांप्रदायिक उन्माद में परिवर्तित हो जाता है तो कई बार दीर्घकालिक और अत्यंत निर्दयतापूर्ण हो जाता है। इसके उपरांत भी हिंदू जाति ने उन सारे दर्दों और अत्याचारों को झेला और अपना अस्तित्व बचाए रखने में सफल रही। वास्तव में भारत के इतिहास का यह पक्ष बहुत ही गौरवपूर्ण और संतोषजनक है। इसी गौरवपूर्ण और संतोषजनक पक्ष के कारण आज हिंदू समाज संसार में अपना अस्तित्व बचाने में सफल रहा है।
डॉ आर्य द्वारा हिंदू जाति के गौरवपूर्ण और संतोषजनक पक्ष को बहुत ही सरल परंतु विद्वत्ता पूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया है।
पुस्तक के अध्ययन से जहां विदेशी आक्रमणकारियों के अत्याचारों और मुस्लिम शासकों के निर्दयता पूर्ण शासन का खुलासा होता है, वहीं हमें अपने कई हिंदू वीर योद्धाओं से परिचय करने का भी अवसर उपलब्ध होता है, जिन्होंने अत्यंत विषम परिस्थितियों में भारत की धर्म ध्वजा को झुकने नहीं दिया और उसके लिए अपने बलिदान देने में भी संकोच नहीं किया।
ऐसी गौरवपूर्ण गाथा को प्रस्तुत करने वाली डॉ आर्य की लेखनी का जितना अभिनंदन किया जाए ,उतना कम है।

– हरि बल्लभ सिंह ‘आरसी’
वरिष्ठ साहित्यकार एवं
प्रधान सचिव : डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा संस्थान जमशेदपुर

लेखक और पुस्तक के विषय में

स्वाधीन भारत के लिए सबसे बड़ी बीमारी है धर्मनिरपेक्षता। इस बीमारी के चलते हमने अपने इतिहास, इतिहास के प्रतीकों और इतिहास के स्मारकों पर फूल चढ़ाना भी इस संकोच के चलते छोड़ दिया कि ऐसा करने से एक वर्ग विशेष को बुरा लगेगा। जब किसी जीवंत देश के नागरिकों में इस प्रकार की भावना आ जाती है तो वे अपने इतिहास और अतीत के प्रति उदासीन हो जाते हैं। ऐसी उदासीनता किसी भी देश के लिए आत्मघाती हो सकती है। कश्मीर का बलिदानी इतिहास, इतिहास के प्रति हमारी ऐसी ही उदासीनता की भेंट चढ़ गया है।
डॉ राकेश कुमार आर्य कश्मीर के बलिदानी इतिहास और वहां के वैदिक धर्मी हिंदू समाज के साथ होते चले आए अत्याचारों के प्रति बहुत अधिक गंभीर रहे हैं। उन्होंने अपनी इस गंभीरता और संजीदगी को इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की है।
17 जुलाई 1967 को उत्तर प्रदेश के जनपद गौतमबुद्ध नगर ( तत्कालीन बुलंदशहर ) के ग्राम महावड़ में जन्मे डॉ राकेश कुमार आर्य की अब तक 63 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अपनी प्रत्येक पुस्तक में डॉ. आर्य ने इतिहास के साथ हुई गंभीर छेड़छाड़ को बड़ी निर्भीकता से प्रस्तुत किया है और संस्कृति व धर्म की रक्षा के लिए दिए गए बलिदानों का खुलकर जयघोष किया है। इस पुस्तक के माध्यम से भी उन्होंने चौदहवीं शताब्दी के आरम्भ से लेकर अब तक कश्मीर में कश्मीरी वैदिक धर्मी हिंदुओं के विरुद्ध इस्लाम के द्वारा किए गए अत्याचारों और आर्य – हिंदू योद्धाओं द्वारा दिए गए बलिदानों को बहुत ही प्रशंसनीय ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस पुस्तक के माध्यम से डॉ. आर्य द्वारा स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार 1301 ईस्वी से पहले कश्मीर में एक भी मुसलमान नहीं था। सूफी फकीरों के वेश में आकर जिन लोगों ने तत्कालीन वैदिक धर्मी हिंदू समाज को भ्रमित किया, उन्हीं सूफियों ने बहुत शीघ्रता से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि हिंदुओं पर मुस्लिमों का शासन स्थापित हो गया। इसके पश्चात वहां पर किस – किस प्रकार हिंदू को प्रताड़ित व उत्पीड़ित किया गया, उसका बहुत ही सजीव चित्रण इस पुस्तक के माध्यम से डॉ. आर्य ने हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। रोंगटे खड़े कर देने वाली इन अत्याचारों की करुण कथा को जिस प्रकार डॉ आर्य ने उल्लेखित कर प्रस्तुत किया है, उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि हमारे पूर्वजों के साथ हुए अत्याचार और अन्याय को किस प्रकार पाखंडी इतिहासकारों ने छुपाकर रख लिया है और तुष्टीकरण व धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक वर्ग की चाटुकारिता करने में अपनी बेहयाई की सारी सीमाएं लांघ दी हैं।
भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण लेखन के लिए ‘उगता भारत ट्रस्ट’ द्वारा संचालित ‘भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति’ के समस्त पदाधिकारीगण एक पवित्र उद्देश्य को लेकर और राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं । उसी श्रंखला में यह पुस्तक समिति की राष्ट्र सेवा के एक पुष्प के रूप में प्रकाशित की गई है।
हमें पूर्ण विश्वास है कि इस महान परिश्रम का निश्चय ही सकारात्मक परिणाम राष्ट्र की आने वाली पीढ़ियों को देखने को मिलेगा। हम आशा करते हैं कि डॉ राकेश कुमार आर्य की सकारात्मक लेखनी के माध्यम से हमारी आने वाली पीढ़ियां निश्चय ही लाभान्वित होंगी । जो अपने बीते हुए कल के गौरव को समझकर आने वाले कल के लिए सकारात्मक कार्य कर भारत को विश्व गुरु बनाने में सफल होंगी।

राजेंद्र कुमार अग्रवाल
( संरक्षक :भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति)

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