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कविता

गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) गीत संख्या : 24

बंधन मुक्त अवस्था

राजनीति का प्रश्न नहीं है आज खड़ा तेरे सम्मुख।
उपस्थित हुई आज एक चुनौती मानवता जिससे व्याकुल।।
वृहद सांस्कृतिक समस्या अर्जुन ! अब तुझको रही पुकार।
इतिहास तुझे कोसेगा निश्चय, यदि नहीं किया स्वीकार।।

हुई मानवता है खंड – खंड , अब नव -निर्माण करना होगा।
दुर्योधन आदि दुष्टों को , अब तेरे हाथों मरना होगा।।
इतिहास रचाते वही शूर , जो ‘गांडीव’ किया करते धारण।
वे नहीं कभी ऐसा करते ,मानवता लज्जित जिनके कारण।।

किसी प्रारब्ध की प्रबलता से तुझको, सुअवसर प्राप्त हुआ।
जन्म को तू सफल बना,मत खो- अवसर जो प्राप्त हुआ।।
लज्जित-अपमानित मानवता को पुनः मुखरित करना होगा।
जिस जिसने भी हैं घाव दिए अब निश्चय उनको मरना होगा।।

तू यहाँ धर्म को स्थापित करने आया, यह क्यों भूल रहा बंधु !
अनुपम विराट व्यक्तित्व तेरा, तू निज महिमा भूल रहा बंधु!!
यदि तूने धर्म निभाया नहीं, तो धरती बनेगी आंसू का सागर।
उत्तरदायी जिसका होगा तू , है बात मेरी गागर में सागर ।।

संसार समर में चलते चलते जो कुछ मिल जाए – वही उचित।
आज तुझको भी जो दायित्व मिला तू कर उसको सम्मानित।।
तू द्वंद्व – युद्ध से बाहर निकल और पाप पुण्य से मुक्त समझ।
सफलता और असफलता का द्वन्द्व त्याग , इनसे परे समझ।।

समझ पार्थ ! यदि कोई मानव किसी मित्र के यहां प्रवास करे।
वह साक्षी बन रहता है वहां, सब उसका सम्मान विश्वास करें।।
मैं और तू भी दोनों अतिथि, यह शरीर हमारा घर अर्जुन !
हमें अतिथि रूप में रहना होगा घटना से निर्लिप्त बनो अर्जुन !!

संसार में रहो – पर दूर रहो , ‘कमल’ को आदर्श स्वीकार करो ।
मत बनो ‘कीचड़’- कीचड़ में रहकर , ना कभी अहंकार करो।।
जैसी भी अवस्था सम्मुख हो, उसमें ही प्रसन्न रखो खुद को।
आज जैसी अवस्था तेरे सम्मुख, उससे मत भगने दे खुद को।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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