मैं हँसु मैया हँसे,
मैं रोऊँ माँ रोय।
ज़रा कराहुँ दर्द में,
रात-रात ना सोय॥1837॥
मैया जीवित है यदि,
बूढ़ा भी बच्चा होय।
माँ की ताड़ना प्यार है,
बेशक गुस्सा होय॥1838॥
माँ के आशीर्वाद से,
पूरे हों सब काज।
बाल शिवा से बन गए,
छत्रपति महाराज॥1839॥
माँ के आंचल में छिपी,
षट – सम्पत्ति की खान।
इसीलिए संसार में,
माँ होती है महान् ॥1840॥
अर्पण तर्पण समर्पण,
संस्कृति मत छोड़।
माँ की सेवा से मिले,
स्वर्ग बीच में ठौड़॥1841॥
माथे का चन्दन है माँ,
करो नित्य सम्मान।
माँ के आशीर्वाद से,
व्यक्ति बने महान॥1842॥
‘ माँ ‘ अति पावन शब्द है,
दिल को दे संतोष।
कराहते को संजीवनी,
और राहत का कोष॥1843॥
धरती सूरज चंद्रमा,
सागर ठहर न पाय।
माँ की उपमा में सभी,
ये बौने पड़ जाय॥1844॥
माँ शब्द वाचिक नहीं,
ह्दय की सौगात।
आत्मा की आवाज माँ,
झंकृत हो जज्बात॥1845॥
माँ की कोख के लाल ने,
गिने शेर के दाँत।
महिमा मां की अनन्त है,
मुझसे कहीं ना जात॥1846॥
मोमबत्ती की भांति जलै,
माँ करती संघर्ष।
माँ के दिए संस्कार से,
नर का हो उत्कर्ष॥1847॥
भारत माँ की कोख से,
हुए अनेकों संत।
दिव्य प्रतिभा के धनी,
इस धरती के बसंत॥1848॥
वेद तप और दान से,
मिले नहीं भगवान।
अनन्य – भक्ति से मिले,
जग में कृपा – निधान॥1849॥
भद्र ही भद्र आते रहे,
मेरे जीवन बीच।
अपनी कृपा से प्रभु,
जीवन – बगिया सींच॥1850॥
यज्ञ – योग दो पंख हैं,
इनसे भरो उड़ान।
इनमें मत प्रमाद करें,
जो चाहे कल्याण॥1851॥
कलह अग्नि जल रही,
जग में चारों ओर।
शान्त रहे तो ठीक है,
वर्ना आदमखोर॥1852॥
कलह की चिन्गारियॉं,
हर घर में मिल जाय।
राजा हो या रंक हो,
सबको देय जलाय॥1853॥
बुद्धि सुबुद्धि तब बने,
जब जुड़ता है धर्म ।
भगवद – बुद्धि में जीओ,
सुधरै मानव – जन्म॥1854॥
आत्मिक बल ही श्रेष्ठ है,
कोई बिरला पाय।
रमण करें जो ब्रह्म में,
स्वतःनिडर हो जाय॥1855॥
शुभ संग्रह में समय लगा,
समय बड़ा अनमोल।
सांस-सांस पर ओ३म भज,
मत हो डामाडोल॥1856॥
जागना हो जिसे जाग जा,
मृत्यु के कर केस।
ब्रह्म-लोक का हंस तू,
ये तो विरान देश॥1857॥
क्रमशः