पाक को अमेरिकी मदद

अभी अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की भारत-यात्रा की स्याही सूखी भी नहीं थी कि उन्होंने पाकिस्तान को छह हजार करोड़ रु. की मदद की घोषणा कर दी है। इस घोषणा का यह अर्थ लगाना आसान है कि दक्षिण एशिया के प्रति अमेरिका की जो नीति बरसों से चली आ रही थी, वह आज भी जैसी की तैसी ही है। उसमें भारत के हिसाब से कोई फेरबदल नहीं हुआ है। ओबामा का सिर्फ भारत आना, गणतंत्र-दिवस पर आना और जरुरत से ज्यादा आत्मीयता दिखाना महज एक नाटक-मात्र था। उस यात्रा की नाटकीयता पर तो हम पहले भी रोशनी डाल चुके हैं लेकिन पाकिस्तान को दी जा रही इस अमेरिकी मदद पर हमें बहुत बेचैन होने की जरुरत नहीं है। यदि हम उसके कारणों को ठीक से समझ लें और उसके परिणामों का हमें थोड़ा अंदाज हो जाए तो जैसी पहल अमेरिका कर रहा है, वैसी भारत भी कर सकता है। दक्षिण एशिया की राजनीति के लिए वह दिन स्वर्णिम होगा, जिस दिन भारत भी पाकिस्तान को कोई मदद देगा और पाकिस्तान उसे ससम्मान स्वीकार कर लेगा।

इस समय पाकिस्तान को दी जा रही अमेरिकी मदद का पहला अर्थ यह है कि अमेरिका किसी न किसी रुप में पाकिस्तान पर अपना असर बनाए रखना चाहता है। यदि वह कोई मदद न करे तो पाकिस्तान की जनता तो उसके खिलाफ है ही, पाकिस्तान की सरकार भी उसके खिलाफ हो जाएगी। दूसरा, यदि अमेरिका अपनी टोंटी एक दम बंद कर दे तो पाकिस्तान पूरी तरह चीन और सऊदी अरब देशों पर निर्भर हो जाएगा।

तीसरा, ऐसा होने पर वह अपने कट्टरपंथियों और आक्रामक तत्वों को काबू करने में दिलचस्पी कम लेगा। चौथा, पाकिस्तानी फौज ने जिस दृढ़ता और ईमानदारी से आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध छेड़ा है, यह अमेरिकी मदद उस भावना का सम्मान है। पांचवां, उसामा बिन लादेन के खात्मे में पाकिस्तान ने अमेरिका का जो सहयोग किया, क्या उसका कुछ मुआवजा उसे नहीं मिलना चाहिए था? छठा, यह पहली बार हुआ है कि अमेरिका ने मदद देते हुए पाकिस्तान से कहा है कि यह मदद भारत से अच्छे संबंध बनाने के लिए भी है।

सातवां, अमेरिका की एक बड़ी चिंता अफगानिस्तान है। अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद वहां सबसे बड़ी भूमिका पाकिस्तान की होगी। अफगानिस्तान में वही होगा, जो पाकिस्तान चाहेगा। इसीलिए अमेरिका भारत से दोस्ती बढ़ाने की खातिर पाकिस्तान को अपने भरोसे नहीं छोड़ सकता। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति आजकल ठीक नहीं है। दक्षिण एशिया की महाशक्ति होने के नाते उसकी मदद सबसे पहले भारत को करनी चाहिए, जो किसी कूटनीतिक चमत्कार से कम नहीं होती लेकिन मोदी सरकार की दिग्भ्रमित विदेश नीति पता नहीं कब पटरी पर आएगी? आशा है, जयशंकर जैसे दृढ़व्रती विदेश सचिव हमारी संपूर्ण दक्षिण एशियाई नीति को पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे।

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