उगता भारत ब्यूरो
15 अगस्त 1947 का वो दिन जब देश एक तरफ आजादी का जश्न मना रहा था तो वहीं दूसरी तरफ दर्दनाक नजारे दिल को दहला रहे थे।अंग्रेज सत्ता ने भारत को आजादी की खुशियां भी बंटवारे की बहुत बड़ी कीमत चुकाकर सौंपी थीं। 14 अगस्त को भारत और पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गए थे।15 अगस्त की सुबह भी ट्रेनों में, घोड़े-खच्चर और पैदल हर तरफ आदमी भाग रहा था। पाकिस्तान से हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से पाकिस्तान आने वालों के चेहरों से मानो सारे रंग गायब थे। सिर पर पोटली, नंगे पांव, फटेहाल, आंखों में जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा समेटे ये लोग किस हाल में दो वतनों में अपना वजूद तलाश रहे थे, तस्वीरों में देखें।
हर तरफ था हिंसा और खून-खराबे का माहौल
बताया जाता है कि इस दौरान दोनों तरफ भड़के दंगे और हिंसा में 10 लाख से अधिक लोगों की जान चली गई। कुछ रिपोर्ट्स में यह संख्या 20 लाख तक भी बताई गई है।इस त्रासदी ने किसी को भी नहीं बख्शा। महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सब इस हिंसा की भेंट चढ़ गए।
इतिहासकार बताते हैं कि माउंटबेटन ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया था। मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग को लेकर हिंसा इस कदर भड़क गई थी कि उस सर्वमान्य समझौते की संभावनाएं ही नहीं तलाशी जा सकीं, जो कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों को मान्य हो।
इस दौरान पाकिस्तान से बड़ी संख्या में हिंदू और सिख समुदाय के लोग भारत आ रहे थे तो वहीं हिंदुस्तान से बड़ी संख्या में मुसलमान पाकिस्तान गए. दोनों ओर से करीब 1.5 करोड़ लोगों ने पलायन किया। इनमें वे लोग भी थे, जो पैदल ही इस तरफ से उस तरफ और उस ओर से इस ओर आ-जा रहे थे।
दोनों ओर करीब 83,000 महिलाओं, युवतियों व बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं भी हुईं तो कई अन्य को अगवा कर लिया गया.।हर तरफ हिंसा, खून-खराब और भय के माहौल ने किसी को अनाथ तो किसी को बेघर कर दिया था।
इतिहास में खून और आंसुओं से लिखा बंटवारे का दिन 15 अगस्त की खुशियों पर भी धूल की परत बनकर छा गया था। ये ही वो दिन था जब आजादी के लिए सालों से आंदोलन कर रहे स्वतंत्रता सेनानियों को भी बेबसी महसूस हो रही थी। वो सोच नहीं पा रहे थे कि क्या ये ही वो हिंदुस्तान है, जिसका सपना उन्होंने देखा था।
यह वो दौर था, जब एक तरफ लोग आजादी की जश्न की तैयारियां कर रहे थे तो दूसरी ओर देश की स्वतंत्रता के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले गांधी दंगा शांत कराने में जुटे थे. ट्रेनों में जान बचाकर भागते लोगों का काफिला थमने का नाम नहीं ले रहा था।
भले ही ये फैसला धार्मिक आधार पर लिया गया, लेकिन समस्या सबकुछ बंटने की थी। जिस हिस्से को हिंदुस्तान बनाया गया, वहां भी बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी थी, वहीं पाकिस्तान वाले हिस्से में हिन्दू और सिख थे। सर सिरिल रेडक्लिफ ने सीमाएं तय कर दीं और ब्रिटिश इंडिया के दो प्रमुख प्रांतों पंजाब और बंगाल के बीच बंटवारे की लाइन खींच दी। शरथार्थी कैंप में रह रहे लोगों का हाल इस तस्वीर में देखिए।
(साभार)
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