निष्काम कर्ममय जीवन से मुक्ति
साधु पुरुष जब होते दु:खी भगवान की इस सृष्टि में।
और अनिष्टकारी शक्तियां होतीं हैं प्रबल सृष्टि में।।
तब उनके भी विनाश हेतु शक्तियां होतीं प्रकट सृष्टि में।
कर्म फल मिलता सभी को , भगवान की इस सृष्टि में।।
कुछ काल के लिए कभी साधु पुरुष साध जाते मौन हैं।
कुछ काल के लिए कभी सत्य भी धार लेता मौन है।।
पर समय बदलता एक दिन, यहाँ स्थिर रहा कौन है ?
दुष्ट भी कुछ देर बढ़ते, एक दिन हो जाते वे भी मौन हैं।।
अंधकार की गहरी निशा जब भयावनी हो फुंकारती।
चारों तरफ हो झाड़ियां और आशा भी दम तोड़ जाती।।
तब आकाश में बिजली चमकती महत्व का संदेश लाती।
वह बिजली ही अवतार सम संसार में सम्मान पाती।।
विनाश विकास को पटकी देता कभी स्वयं पटकी खाता।
अबूझ पहेली दोनों की, कोई समझदार ही सुलझा पाता।।
नहीं विनाश को हावी होने देता, ईश्वर ऐसा खेल रचाता।
हर एक चुनौती का उत्तर अपनी दिव्य शक्ति से दिलवाता।।
अर्जुन ! सुन, मेरा कर्म दिव्य है, जन्म भी दिव्य बतलाया।
अद्भुत मेरा जीवन भी है , और सारा अद्भुत खेल रचाया।।
मुझ में नहीं लिपटते कर्म कभी भी ऐसी अद्भुत मेरी माया।
फंसता नहीं मैं भी उनमें कोई विरला ही इसे समझ पाया।।
जो ऐसे रहस्य समझ लेता, वह जीवन मरण से मुक्ति पाता।
फिर देह नहीं मिलती उसको, देर काल तक मुक्ति पाता।।
आनंद की वर्षा अनुभव करता और ईश्वर को वह पा जाता।
इस मिलन पवित्र के आगे , किसे और कौन सा रस भाता ?
यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत