केजरीवाल की जीत के मायने ?

राजेश दूबे

दिल्ली  में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत से जनता ने  कुर्शी पर बिठा दिया है और इसी के साथ पिछले एक महीने से चली आ रही तमाम  अटकलों पर भी विराम लग चूका है  जनता ने केजरीवाल को पुरे पांच साल तक बेरोकटोक सरकार चलाने और वायदों पर खरा उतरने के लिए ही ऐसा बहुमत दिया है यह समझा जा सकता है गौर करने वाली बात है की क्या दिल्ली की जनता ने नरेंद्र मोदी को अस्वीकार कर दिया और दिल्ली में केजरीवाल की जीत से प्रधान मंत्री का ग्राफ निचे हुआ है जिस विजय अभियान पर भाजपा निकली थी उसपर केजरीवाल ने रोक लगा दिया है सायद ऐसा ही आम जनमानस सोचे लेकिन दिल्ली की जनता के कॉन्सेप्ट को समझना होगा की लोकसभा चुनाव में इसी  जनता ने भाजपा को दिल से अपना बहुमत दिया और उसी जनता ने आखिर क्यों विधान सभा चुनाव में करारी सिकस्त दी .

विचारणीय प्रश्न यह है की केजरीवाल की जीत वो भी इस बहुमत से क्यों हुई कि भाजपा के दिग्गज नेता धरासाई हो गए उसके लिए हमें नेपथ्य में जाना होगा .. दिल्ली में जबसे चुनाव की घोषणा हुई  उसके बाद से ही भाजपा नेतृत्व उहापोह की स्थिति में थी चाहे वो मुख्य मंत्री के नाम की घोषणा को लेकर हो या फिर घोषणा पत्र  के स्थान पर  विज़न डॉक्यूमेंट का लाना पूरा का पूरा भाजपा नेतृत्व नरेंद्र मोदी के सहारे ही चुनाव जीतने की फ़िराक में लगा हुआ रहा और बाद में किरण बेदी  डिक्टेटर की भूमिका में अचानक से प्रकट हो गई जिससे भाजपा के स्थापित नेताओ को झटका लगा  वही  केजरीवाल पर  भाजपा द्वारा किये  गए व्यक्तिगत हमले चाहे वो कार्टून  के जरिये किये गए हो या फिर अन्य प्रचार माध्यमो से साथ ही पुरे कैबिनेट को सड़क पर  प्रचार के लिए उतार देने के साथ साथ भाजपा नेताओ द्वारा हर दिन केजरीवाल से पूछे गए पांच सवालो ने भी केजरीवाल को आम आदमी का नेता बना दिया यही नहीं भाजपा ने केजरीवाल पर जो आरोप लगाये उसे केजरीवाल ने मतदाताओ के समक्ष ऐसे प्रस्तुत किया कि जनता को केजरीवाल में एक  भगोड़ा नहीं एक ईमानदार नेता कि छवि दिखाई देने लगी और  जनता  केजरीवाल के दिखाए सब्जबाग में फस गई   जिस केजरीवाल को प्रधान मंत्री अराजक कहते रहे उसी केजरीवाल को जनता ने सर आखो पर बिठा लिया  केजरीवाल की पार्टी ने जो वायदे किये वो सीधे जनता से जुड़े मुद्दे थे और लोगो ने दिल्ली की हित से अधिक स्वयं के हित को ध्यान में रख कर मतदान किया .

मतदाता केजरीवाल जैसे बहुरुपिया कि जाल में फस चुकी है जो भारत माता कि जय तो बोलता है लेकिन कश्मीर के अलगाव वादियों का समर्थन भी करता है और दिल्ली कि मतदाता को पड़ोसियों का दर्द नहीं अपने स्वार्थ कि बलिवेदी पर सेकी गई रोटी का आनंद लेना बखूबी आता है इन्हे केंद्र कि एक मजबूत सरकार को कमजोर करने कि साजिश नहीं दिखाई देती .  ऐसा ही कहा जा सकता है क्योकि जिस प्रकार की घोषणा केजरीवाल की पार्टी ने मतदाताओ से किया उसमे जनता ने स्वयं का हित देखा और प्रचंड बहुमत देकर विजय बना दिया है अब केजरीवाल के समक्ष एक बड़ी चुनौती है कि जनता ने जो बहुमत दिया है उसपर वो खरे उतरे क्योकि पिछले 49  दिनों का अनुभव काफी ख़राब रहा है उसके बाबजूद यदि मतदाताओ ने अपना भविष्य आम आदमी पार्टी में देखा है तो उसपर खरे उतरने कि पूरी जबाब देहि अब नवनिर्वाचित सरकार कि बनती है वही भाजपा नेतृत्व को भी जमीनी स्तर पर आत्ममंथन करने कि आवश्यकता है कि आठ महीने में केंद्र सरकार ने जो काम किया है वो जनता के हित में कितना है और उसे जनता ने  कितना स्वीकार किया क्योकि भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि भले ही संसद में विपक्ष कमजोर हो लेकिन सड़क पर विपक्ष आज भी मौजूद है और भ्रामक प्रचार प्रसार में पूरी तरह हावी है साथ ही संघ और उसके अनुसांगिक सगठनो को भी सोचना होगा कि जो बयान दिए जा रहे है उससे सरकार पर कैसा असर पड़ेगा .

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