ओबामा का अधूरा दर्शन
विनोद कुमार सर्वोदय
ओबामा का अमेरिका जाते ही ह्रदय परिवर्तन हो गया।वैसे तो ओबामा भारत में ही सोनिया गांधी से मिलने के बाद जाते जाते सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम (दिल्ली )में साम्प्रदायिक सदभाव का पाठ पढ़ाते हुए हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 का भी उल्लेख करके सबको आश्चर्यचकित कर गये।इसका ज्ञान इनको किसने कराया होगा कहने की आवश्यकता नहीं , जबकि भारत की लगभग 95% से अधिक जनता इस अनुच्छेद को नहीं जानती होगी ।
यहां यह लिखना भी अति आवश्यक है की अमरीकी राष्ट्रपति हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 जिसमे अपने अपने धर्म के प्रचार व प्रसार की पूर्ण स्वतंत्रता दी गयी है परंतु जिसका अच्छी प्रकार से देश में पालन भी हो रहा है फिर भी निसंकोच नकारात्मक टिप्पणी कर गये। सोचो कि जब उन्हें हमारे संविधान का इतना ही ज्ञान था तो उन्होंने धर्मनिरपेक्ष स्वरुप को बिगाड़ने वाली संविधान के अनुच्छेद 44 की बात क्यों नहीं करी जिसमे ‘समान नागरिक संहिता’ को धीरे धीरे लागू किये जाने का प्रावधान किया गया है व इसीप्रकार कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले ‘अनुच्छेद 370’ जिससे अलगाववाद बढ़ता जा रहा है और इसको भी धीरे धीरे समाप्त करने का प्रावधान संविधान में है का भी कोई उल्लेख नहीं किया ।क्या उनकी मानसिकता पूर्वाग्रह के बंधन से मुक्त नहीं ?
बड़ा खेद है कि उन्होंने अमरीका पहुँचते ही भारत को धार्मिक असहिष्णुता के प्रति सचेत रहने का संकेत दिया ।इसपर वहां के प्रशासन ने उनके कथन को अन्यथा न लेने का संकेत दिया था।परंतु दो दिन बाद भारत की प्रशंसा करते हुए भी ओबामा ने पुनःहमारी धर्मनिरपेक्षता व सहिष्णुता पर नकारात्मक द्रष्टीकोण अपनाते हुए हमें अपने अंदाज में समझाना चाहा ।
क्या अमरीका में जो गोरे और काले में रंगभेद दशको से चला आ रहा है उसपर मोदी जी ने या किसी अन्य राजनेता ने उन्हें कोई परामर्श दिया, यदि नहीं ,तो फिर उन्होंने हमारी आंतरिक परिस्थितियों पर एकतरफा क्यों हस्तक्षेप किया? कितना अच्छा होता की वे अपना परामर्श सऊदी अरब में भी देते जहाँ उनकी धर्मपत्नी को (सिर न ढकने व पुरुषो से हाथ मिलाने पर) धार्मिक कट्टरता के कारण अपमानित किया गया ।
भारत में पाकिस्तान को खरी खरी बोलने वाले ओबामा को अमेरिका जाते ही लगा की उनका परम् मित्र पाकिस्तान नाराज हो गया है तो उसको पुचकारते हुए 6000 करोड़ रूपये का अनुदान और दे दिया जिससे वह आतंकवाद से भी ( दिखाने के लिए ही) लड सके।अर्थात मोदी के साथ चाय पीने पर पाकिस्तान की भरपाई जो करनी थी ।वास्तव में ये अमेरिका की वर्षो पुरानी कुटिल नीति है। एक हाथ से पाक का कान ऐंठता है तो दूसरे हाथ को सिर पर फेरकर पुचकारता है। जिससे भारत सरकार को सावधान रहने की आवश्यकता है। अमेरिका कोई भारत का हितैषी नही बल्कि केवल कारोबारी और सामरिक सहयोगी है जो अपने फायदे के लिए केवल दिखावा करता है।
श्रीमान बराक ‘हुसैन ‘ओबामा को कोई अधिकार नही है की वो भारत या भारतीयों को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाये। वे कोई स्वयंभू धर्माधिकारी नही कि जो वो बोले सबको मानना ही पड़े। जबकि यह अस्पष्ट है कि उनकी धार्मिक निष्ठां ईसाई या इस्लाम किस्मे है ? भारत जिसने पूरी वसुधा (पृथ्वी) को अपना कुटुम्ब माना और जहां आज भी सबके कल्याण की व शांति के लिए मंत्रो का जाप होता हो, जहां बाहर से आने वाले आक्रमणकारियो के वंशजो को भी अपने मूल भूमि पुत्रो से अधिक विशेषाधिकार दिये जाते हो , उस भारत भूमि पर अपनी विशेष धर्मान्धता के कारण ऊँगली उठा कर ओबामा भले ही विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति हो , ने अपनी भारत (हिन्दू) विरोधी संकीर्ण मानसिकता को उजागर कर ही दिया।
अमरीका में 11/09/2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर मुस्लिम आतंकवादियो के जिहादी आक्रमण के बाद से देश की रक्षा को सर्वोपरि बनाये रखने के लिये वहां आने वाले हर दाड़ी ,मूंछ ,गोल टोपी और पगड़ी वालो को संदेह की नज़र से देखा जाता हैं।अनेक उदाहरण है जिनको अमरीकी एयरपोर्ट पर जांच पड़ताल के समय उनके मुस्लिम होने के कारण ही अवरोध उत्पन्न किया गया ।तब अमरीका की धार्मिक सहिष्णुता कहां चली जाती है , यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि देश की सुरक्षा सर्वोच्च होती है।
अमरीका की नीतियां अपने आप में ही अस्पष्ट है क्योकि उसने मोदी जी को कुछ विदेशी सहायता प्राप्त (विशेषतः ईसाई मिशनरियो से) समाजिक संस्थाओ के बहकावे में आकर लगभग 10 वर्ष तक धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर वीसा न देकर अपमानित किया परंतु अरब आदि मुस्लिम देशो मे जहां वास्तव में ही धार्मिक स्वतंत्रता का हनन होता है वहां के शासको को कभी भी अपमानित नहीं किया अर्थात वीसा देने में कोई अवरोध नहीं।
इसप्रकार भारत को अमेरिकी दोगलेपन से सदा सावधान व सतर्क रहना होगा ।ओबामा जी को मित्रता की परिभाषा समझने के लिए भारतीय संस्कृति का भी अध्य्यन करके कृष्ण व सुदामा के चरित्र को समझना चाहिए और हमारे संविधान के आधे अधूरे ज्ञान के बखान से बचना चाहिए ।