विदेशों में नियुक्त हमारे सभी राजदूतों और उच्चायुक्तों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने काफी पते की बात कह डाली। प्रणब दा खुद विदेश मंत्री रह चुके हैं, इसलिए वे विदेशी मामलों के अच्छे जानकार हैं, जैसे कि प्रायः राष्ट्रपति बननेवाले लोग नहीं होते। वे कूटनीतिक भाषा का कैसे प्रयोग करना, यह भी भली-भांति जानते हैं। उन्होंने हमारे कूटनीतिज्ञों को संबोधित करते समय अपने कूटनीतिक कौशल के साथ-साथ राष्ट्रपति पद के कर्तव्य का भी बखूबी निर्वाह कर दिया है। नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में किसी मंत्री की आज इतनी हिम्मत नहीं है कि वह प्रधानमंत्री की कारगुजारी पर ऊंगली उठा सके।
पहले प्रणब दा ने मोदी सरकार द्वारा की गई कई अपूर्व पहलों का जिक्र किया। उन्होंने दक्षेस-राष्ट्रों के नेताओं को शपथ-विधि में बुलाने का स्वागत किया। उन्होंराष्ट्रपति ने की सरकार की खिंचाईने चीनी और अमेरिकी राष्ट्रपतियों की यात्राओं को भी सराहा। उन्होंने हमारे दूतावासों द्वारा संकटग्रस्त स्थानों से भारतीयों को निकालकर लाने की भी तारीफ की। संसार में फैले हुए प्रवासी भारतीयों से जुड़ने के प्रयत्न को भी राष्ट्रपति की शाबासी मिली। आतंकवादियों के खिलाफ चलाए गए कूटनीतिक अभियान को भी राष्ट्रपति ने रेखांकित किया। उन्होंने मोदी सरकार की इस नीति को भी काफी सामयिक बताया कि उसने पड़ौसी राष्ट्रों से साफ-साफ पूछा है कि वे अनवरत तनाव में रहना चाहते हैं या दक्षिण एशिया में स्थाई शांति चाहते हैं।
लेकिन इतनी मीठी-मीठी बातें बोलने के बाद राष्ट्रपति ने अपनी सरकार की विदेश नीति को आड़े हाथों लेने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अच्छी खिंचाई कर दी है। पहली बात तो उन्होंने यह कही कि नेपाल, भूटान और मालदीव से जो वादे हमने किए हैं, उन्हें हम पूरे करें और बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता अभी तक क्यों नहीं हुआ? वह संसदीय हंगामे की भेंट क्यों चढ़ गया? इससे भी बड़ी चोट उन्होंने मोदी सरकार के मर्म पर कर दी। उन्होंने पूछा कि आपने पड़ौस से संबंध सुधारने के लिए जो जबर्दस्त पहल की थी, उसका क्या हुआ? अभी तक कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? उनकी बातों को प्रश्न-रुप में तो मैंने रखा है। उन्होंने तो उस बात को एक बुजुर्ग द्वारा दी गई सलाह के रुप में कहा है।
पाकिस्तान से वार्ता-भंग को सबसे पहले मैंने उठाया था और मैंने कहा था कि हुर्रियत के बहाने विदेश सचिवों की वार्ता को भंग करना अनुचित है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और विदेश सचिव- तीनों से मेरी विस्तृत बातचीत इस्लामाबाद में हुई थी। तीनों बहुत उत्साहित थे। वे तो चाहते थे कि अक्तूबर 2014 में ही मोदी पाकिस्तान की यात्रा करें लेकिन पता नहीं किस नौकरशाह ने मोदी की गाड़ी को पटरी से उतार दिया। अब शायद वह फिर पटरी पर आ जाए।