गाजियाबाद। ( ब्यूरो डेस्क ) द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने की पृष्ठभूमि में देश में कई प्रकार के राजनीतिक समीकरण बने बिगड़े हैं। उधर 2024 के लोकसभा चुनावों की छाया भी अब राजनीति पर पड़ती हुई दिखाई देने लगी है। भाजपा 2024 की तैयारी में लग चुकी है। उसकी नीतियां और कार्यशैली इस समय बहुत ही स्पष्टता से बता रही हैं कि सारा फोकस इस समय 2024 पर केंद्रित कर दिया गया है। यद्यपि भारत का विपक्ष इस समय बहुत ही निराशाजनक ढंग से न केवल बिखरा पड़ा है बल्कि वह किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में भी जा चुका है।
प्रत्येक समझदार और चतुर प्रधानमंत्री के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने मंत्रीमंडल में हमेशा 2 – 4 पद रिक्त रखता है। इससे विरोधियों को शांत रखने का एक बहुत अच्छा उपाय प्रधानमंत्री के हाथों में रहता है। जिस किसी को भी मंत्री बनने की इच्छा होती है वह खाली पड़े पदों को देखकर ललचाई आंखों से देखता रहता है और अपने विरोध के स्वरों को शांत रखता है। इस प्रकार कई स्वरों को शांत रखने के लिए मंत्री पद को रिक्त रखना एक रणनीति के अंतर्गत बहुत ही उपयुक्त हथियार सिद्ध होता है। प्रधानमंत्री मोदी भी इस कला में माहिर हैं। उनके कई विरोधी भाजपा उनके द्वारा खाली रखे गए मंत्री पदों की ओर ललचाई आंखों से देखते रहते हैं और प्रधानमंत्री शानदार ढंग से सरकार चलाते रहते हैं।
अब जबकि कुछ नई परिस्थितियां बनी हैं तो प्रधानमंत्री 2024 के चुनावों के दृष्टिगत अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार की संभावनाओं को टटोल रहे हैं, ऐसी चर्चाएं अब राजनीतिक गलियारों में फैल रही हैं।
माना जा रहा है कि संसद के मानसून सत्र के बाद फ्री अपने मंत्रिमंडल में विस्तार या फेरबदल कर सकते हैं। विस्तार में जद (यू) व शिवसेना के बागी गुट को जगह मिल सकती है। सरकार में अभी सहयोगी दलों से कुछ ही कैबिनेट मंत्री हैं, फेरबदल होता है तो इसकी संख्या बढ़ सकती है। अभी केंद्र सरकार में पशुपति पारस कैबिनेट मंत्री और अनुप्रिया पटेल व रामदास अठावले बतौर राज्य मंत्री शामिल हैं।
बीते दिनों राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने और फिर से चुन कर न आने से जदयू के आरसीपी सिंह व भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी ने इस्तीफा दे दिया था। यह दोनों पद अभी रिक्त हैं। इनमें इस्पात मंत्रालय ज्योतिरादित्य सिंधिया व अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय स्मृति ईरानी को दिया गया है।
इस बीच, शिवसेना के बागी गुट के भाजपा के साथ आने और महाराष्ट्र में सरकार बनने के बाद उसे भी केंद्र में जगह दिए जाने की संभावना है। इससे उद्धव ठाकरे को एक और झटका देने के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे वाले गुट का असली शिवसेना का दावा और मजबूत किया जा सकेगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में अभी प्रधानमंत्री समेत 29 कैबिनेट मंत्री हैं। दो स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्रियों के साथ 47 राज्यमंत्री हैं। राज्य मंत्रियों में दो स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह व राव इंद्रजीत सिंह भी शामिल हैं।
सूत्रों के अनुसार, मंत्रिपरिषद में छोटा फेरबदल किया जा सकता है, जिसमें अधिकतम एक दर्जन मंत्री शामिल या प्रभावित होंगे। गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रियों में अभी पांच मंत्रियों के पास तीन-तीन मंत्रालय हैं। इनमें पीयूष गोयल, प्रहलाद जोशी, सर्वानंद सोनोवाल, अश्विनी वैष्णव व जी किशन रेड्डी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री को अपनी सरकार को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए अपना मंत्रिमंडल बनाने और उसमें योग्य मंत्रियों को सम्मिलित करने का संवैधानिक अधिकार है। परंतु देश के विपक्ष को भी ऐसी परिस्थितियों में पाला मार जाए या सांप सूंघ जाए, यह देश के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत है। माना कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने विपक्ष को इस समय कई मुद्दों में उलझा कर रख दिया है, परंतु यह भी सत्य है कि विपक्ष की नीतियां भी ऐसी नहीं है कि जो जनता के गले उतर रही हों। राहुल गांधी 2019 के चुनावों तक तो कंफ्यूज ही दिखाई दे रहे थे ,पर अब तो वह फ्यूज ही हो गए लगते हैं। उनके पीछे जिस प्रकार केजरीवाल को लोग पसंद कर रहे हैं वह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है। केजरीवाल की नीतियां आतंकवादियों के हाथों में खेलने की हैं। निश्चित रूप से उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री बनना हो सकता है, परंतु देश के हित उनके हाथों में कितने सुरक्षित रहेंगे ? – समझदार लोग इस बात को अभी से समझ रहे हैं। ऐसे में विपक्ष को भी इस समय अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए एक होना चाहिए।
मुख्य संपादक, उगता भारत