दिल्ली में स्व.इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए हिन्दू-सिक्ख दंगो पर राजनीति की रोटियाँ अभी तक सैकी जा रही है। अभी तक इन दंगो की जांच-पड़ताल के लिए लगभग 10 आयोग व कमेटियो का गठन हो चूका है। कमोवेश उनकी रिपोर्टस भी आयी व उनके अनुसार कार्यवाहियां हुई और सहायता राशियां भी बांटी गयी। परंतु राजनीति की क्या ऐसी विवशता है कि अब फिर एक नया जांच दल केंद्र की बीजेपी सरकार ने इनकी जांच के लिए बनाया है।
याद करो वह 80 के दशक का पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद का रक्तरंजित इतिहास जो तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की नृशस् हत्या , 31 अक्टूबर 1984 से 4-5 वर्ष पूर्व ही पाकिस्तान की शह पर भिंडरवाला व उसके साथियो द्वारा जोर पकड़ चुका था। जब पंजाब में पार्को में व मुख्य मार्गो पर बसो एवं अन्य वाहनों से यात्रियों को उतार कर ‘हिन्दुओ’ को दिन दहाड़े निशाना बनाया जाता था।उस समय के समाचार पत्रो में खालिस्तानियो के भयंकर नरसंहारों की व वहां से हिन्दुओ के पलायन की निरंतर सूचनाये आती रही वह किसी से छुपी नही थी ।
बड़ी विचित्र विडम्बना है कि विस्थापित ,लूटे,पिटे व मारे गये हज़ारो प्रताड़ित हिन्दुओ की जांच-पड़ताल की न तो पहले की सरकारो ने तथा न ही वर्तमान सरकार ने कभी भी कोई आवश्यकता समझी? आज भी आप देश के विभिन्न स्थानों में “खालिस्तानी आतंकवादियो के शिकार बने हिन्दू व सिक्ख परिवारों की दुर्दशा” को ढूंढ़ेंगे तो अवश्य पायेंगे? याद करो अपने को राष्ट्रवादी मानने वाली बीजेपी जो कि चुनावो में केवल हिन्दुओ के मताधार से ही विजयी होती है ने भी हिन्दुओ की इस दुर्दशा पर न तो कोई संज्ञान ही लिया और न ही कोई चिंतन नहीं किया ।
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में प्रताडित हिन्दू का कोई अधिकार नहीं, क्या वह सर्व धर्म समभाव व शान्ति के नाम पर अपने धर्म व देश की रक्षा में अपना दायित्व भूल कर पलायन करता रहे ? हिन्दूओ को सहिष्णु व उदार बनाये रखकर उसे क्यों कायर व भीरु बनाया जाता है ? क्यों है उसमे शत्रु के प्रति संघर्ष का अभाव ? क्यों नहीं वह अपने धर्म व देश की अस्मिता व अस्तित्व की रक्षा का विचार करता ? क्यों नहीं उसमें अपने देश व धर्म के प्रति श्रद्धा व भक्ति का भाव जगा कर राष्ट्रप्रेम भरा जाता ?
हिन्दू समाज का कैसा दुर्भाग्य है कि उसकी उदारता व सहनशीलता का लाभ सभी उठाना चाहते है पर उसके अस्तित्व व अस्मिता की रक्षार्थ कोई भी आगे नहीं आना चाहता ? क्यों, क्योकि वह जातिगत आधार पर बटा होने के कारण असंगठित है ? लोकतांत्रिक व्यवस्था का यह कैसा दुष्परिणाम है कि हमारे राजनेताओ का ध्यान, हिन्दुओ का बहुसंख्यक होते हुए भी अल्पसंख्यको के मताधार पर अधिक केंद्रित हो गया है।
हमारे समाज की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि वह अपने ऊपर ढहाये गए अत्याचारो की पीड़ा को भुल कर सरकार से न्याय की मांग ही नहीं करती। जबकि अन्य समुदाय के लोग निरंतर सरकार पर अपना दबाब बना कर उचित-अनुचित मांगो के लिए संघर्षरत रहते है।इसी का परिणाम है कि कथित हिन्दू -सिक्ख दंगो की एकपक्षीय जांच का सिलसिला थम ही नहीं पा रहा।
विनोद कुमार सर्वोदय
नया गंज, गाज़ियाबाद