मनुष्य के सुधार एवं बिगाड़ के बहुत से कारण हैं। “जैसे माता पिता आचार्य पड़ोसी मित्र प्रेस मीडिया सरकार के कानून अपने पूर्व जन्मों के संस्कार और वर्तमान जीवन का पुरुषार्थ इत्यादि।” “उनमें से मुख्य कारण हैं, माता-पिता और आचार्य। जिस व्यक्ति को ये तीन शिक्षक उत्तम मिल जाते हैं, उसका कल्याण हो जाता है। वह स्वयं भी अच्छा व्यक्ति बनता है, सुखी रहता है, और दूसरों को भी सुख देता है।” “जिस व्यक्ति को ये तीन शिक्षक अच्छे नहीं मिलते, उस व्यक्ति का बिगाड़ होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।”
“परंतु इन तीन कारणों के अतिरिक्त दो कारण और भी हैं, जो इनसे भी अधिक बलवान हैं। उनमें से एक है, व्यक्ति के अपने ‘पूर्व जन्मों के संस्कार।’ और दूसरा है, व्यक्ति का ‘इस जन्म का अपना पुरुषार्थ।’ ये दो कारण सबसे अधिक बलवान हैं।”
“यदि माता पिता और आचार्य अच्छे भी मिल जाएं, उसके बाद भी यदि व्यक्ति के पूर्व जन्मों के संस्कार अच्छे न हों, और वह वर्तमान जीवन में भी अपने सुधार के लिए ठीक प्रकार से कोई पुरुषार्थ नहीं करता, तो उसका विनाश होना निश्चित है।” इतिहास में इसके बहुत से उदाहरण मिलते हैं। जैसे कि रावण दुर्योधन शिशुपाल इत्यादि। “इन लोगों के पूर्व जन्मों के संस्कार अच्छे नहीं थे, और इन्होंने वर्तमान जीवन में भी अपने सुधार के लिए कोई विशेष पुरुषार्थ नहीं किया। इसलिए इनका सुधार नहीं हो पाया।”
“इसके विपरीत श्रीराम जी, श्रीकृष्ण जी, अर्जुन विभीषण इत्यादि, ये इतिहास के ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके पूर्व जन्मों के संस्कार बहुत अच्छे थे, और वर्तमान जीवन में भी इन्होंने बहुत पुरुषार्थ किया, इसलिए इन सबका कल्याण हो गया।”
“आप भी इतिहास के इन उदाहरणों पर यदि गहराई से चिंतन करें, अपने पूर्व संस्कारों को देखें, तथा वर्तमान में पूर्ण पुरुषार्थ करें, तो आपका भी निश्चित रूप से कल्याण हो जाएगा।” “यदि आपको पता चले, कि ‘मुझ में पूर्व संस्कार कुछ कम अच्छे हैं,’ तो उनसे संघर्ष करें। उन बुरे संस्कारों के साथ युद्ध करें। इस वर्तमान पुरुषार्थ से आप पूर्व बुरे संस्कारों को बदल सकते हैं, और अच्छे नए संस्कार बनाकर जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।”
यह कैसे पता चलेगा, कि आपके पूर्व जन्मों के संस्कार अच्छे हैं या बुरे? यह आत्म निरीक्षण से पता चलेगा। “आंख बंद करके एकांत में बैठ कर अपना परीक्षण निरीक्षण स्वयं करें। आपकी किन कामों में रुचि है? यदि आपकी यज्ञ ईश्वर भक्ति सेवा परोपकार दान दया आदि शुभ कर्मों में आंतरिक रुचि है, तो समझ लीजिए आपके पूर्व जन्मों के संस्कार अच्छे हैं।” “यदि झूठ छल कपट चोरी बेईमानी धोखाधड़ी अन्याय शोषण इत्यादि बुरे कर्मों में आपकी रुचि है, तो समझ लीजिए कि आपके पूर्व जन्मों के संस्कार खराब हैं।” “कोई बात नहीं, फिर भी आप अपने इन बुरे संस्कारों से युद्ध करें। आप निश्चित रूप से जीत जाएंगे।” “क्योंकि वर्तमान जीवन में किया गया पुरुषार्थ सबसे अधिक बलवान होता है।”
“बुरे संस्कारों का नाश कैसे होगा? बुरे कर्मों से बचें। बुरे लोगों से बचें। बुरे वातावरण से बचें। अपनी पुरानी बुरी घटनाओं को याद न करें।” “अच्छे नए संस्कार कैसे बनेंगे? ऊपर बताए यज्ञ ईश्वर भक्ति आदि शुभ कर्मों का वर्तमान में आचरण करें। अच्छे लोगों के साथ रहें। अच्छी बातें करें। अच्छे दृश्य देखें। अच्छा वैदिक साहित्य पढ़ें। इससे आपके नए अच्छे संस्कार बनेंगे।”
“इन बुरे संस्कारों का नाश करने में और नए अच्छे संस्कारों को बनाने में माता पिता और आचार्य का सहयोग भी लेवें। उनसे भी आपको बहुत सहयोग मिलेगा, और आप अपने जीवन में सफल हो जाएंगे।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
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